ओसामा बिन लादेन के आखिरी दिनों की पूरी कहानी क्या है?
दुनिया के सबसे कुख्यात आतंकियों में से एक ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बारे में अमेरिका ने एक कहानी बताई। कुछ लोग इसे सच मानते हैं और कुछ इसे सिरे से नकार देते हैं।

लादेन के मारे जाने की कहानी, Photo Credit: Khabargaon
2 मई, 2011, सुबह का वक्त। नॉर्थ अरेबियन सी। समंदर के बीच खड़ा था अमेरिकी नेवी का एयरक्राफ्ट कैरियर, यूएसएस कार्ल विंसन। कुछ घंटे पहले, पाकिस्तान के एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन मारा जा चुका था। अब उसकी बॉडी को इसी शिप पर लाया गया था। दुनिया को बताया गया कि सब कुछ इस्लामिक रिवाज़ से होगा। इलेन लैंडाउ अपनी किताब "ओसामा बिन लादेन: द लाइफ एंड डेथ ऑफ द 9/11 अल-कायदा मास्टरमाइंड" में बताती हैं कि बिन लादेन की बॉडी को पहले वॉश किया गया। फिर उसे एक सफेद कपड़े में लपेटा गया। एक अमेरिकी मिलिट्री अफसर ने कुछ मज़हबी लाइनें पढ़ीं। फिर एक वज़नदार बैग में डालकर, ओसामा की बॉडी को समंदर में स्लिप कर दिया गया। दुनिया का सबसे बड़ा टेररिस्ट। उसका ऐसा गुमनाम अंत। यही कहानी पूरी दुनिया को बताई गई लेकिन क्या यह सच था? क्या कहानी वाकई इतनी सीधी थी?
मशहूर खोजी पत्रकार सेमुर हर्ष इस ऑफिशियल कहानी को सिरे से खारिज कर देते हैं। हर्ष कहते हैं कि समंदर में कोई दफ़नाया ही नहीं गया। क्यों? क्योंकि हर्ष के मुताबिक, दफ़नाने के लिए कोई साबुत बॉडी बची ही नहीं थी। अमेरिकी सील्स ने ओसामा के जिस्म पर इतनी गोलियां चलाईं कि वह बुरी तरह क्षत-विक्षत हो गया था। कुछ सैनिकों ने तो यहां तक दावा किया कि उन्होंने बॉडी के कुछ पार्ट्स हिंदू कुश के पहाड़ों पर ही फेंक दिए थे। फिर समंदर में दफ़नाने की यह पूरी कहानी आई कहां से? हर्ष के अनुसार, यह व्हाइट हाउस में मची अफरा-तफरी के बाद तैयार की गई एक नकली कहानी थी। एक मजबूरी का ड्रामा।
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नेटफ्लिक्स पर इसी से जुड़ी एक डॉक्यूमेंट्री सीरीज आई, नाम- "अमेरिकन मैनहंट: ओसामा बिन लादेन"। यह सीरीज काफी हद तक उसी ऑफिशियल कहानी को दिखाती है। जिसे हम सालों से सुनते आए हैं। दिखाया और बताया कि कैसे सालों की खोज के बाद एक कुरियर माने सामान लाने और ले जाने वाले से पता चला कि ओसामा एबटाबाद में छिपा हुआ है। सील टीम गई और ओसामा को मारकर उसकी डैड बॉडी ले आई। पाकिस्तान को कानों-कान खबर तक नहीं लगी लेकिन क्या यह कहानी सच थी? पाकिस्तान को वाक़ई कोई खबर नहीं थी?
ओसामा की खबर किसी कुरियर से मिली थी? इन सारे दावों पर सेमुर हर्ष अपनी किताब में कुछ अलग कहानी बताते हैं। आज हम जानेंगे ओसामा के मारे जाने की "असली कहानी", या यूं कहें कि कहानी का एक दूसरा, अनसुना पहलू।
सबसे पहले सेमुर हर्ष के बारे में जानते हैं। सेमुर हर्ष एक जाने-माने खोजी पत्रकार हैं। जिन्हें CIA और अमेरिकी फौज के बारे में कई खुलासों के लिए जाना जाता है। वियतनाम युद्ध के दौरान हर्ष ने माई लाई नरसंहार का खुलासा किया था। जब अमेरिकी सैनिकों ने निहत्थे वियतनामी नागरिकों की हत्या कर दी थी। हर्ष ने इस खबर को उजागर किया, जिससे युद्ध की क्रूरता सामने आई और अमेरिका में युद्ध विरोधी भावनाएं बढ़ीं। इसी तरह, इराक युद्ध के समय हर्ष ने अबू ग़रेब जेल कांड का पता लगाया। यहां क्या था? अबू ग़रेब एक जेल थी जहां अमेरिकी सैनिक इराकी कैदियों को टॉर्चर करते थे। हर्ष को उनके बेहतरीन काम के लिए पुलित्जर पुरस्कार भी मिला है। ओसामा की मौत के करीब 6 साल बाद हर्ष ने एक किताब लिखी - 'द किलिंग ऑफ़ ओसामा बिन लादेन'। इस किताब में ओसामा की हत्या की एक अलग ही कहानी है। क्या कहानी है? चलिए शुरू से शुरुआत करते हैं।
ओसामा मिला कैसे?
सबसे पहला सवाल यही है कि ओसामा बिन लादेन आखिर छिपा कहां था- अमेरिका को इसका पता कैसे चला? जो कहानी हमें आमतौर पर सुनाई जाती है और जिसे नेटफ्लिक्स की डॉक्यूमेंट्री भी दिखाती है, वह कुछ यूं है। CIA ने सालों तक खुफिया जानकारी जुटाई। सबसे बड़ा सुराग साबित हुए ओसामा के कूरियर्स। इलेन लैंडाउ अपनी किताब "ओसामा बिन लादेन: द लाइफ एंड डेथ ऑफ द 9/11 अल-कायदा मास्टरमाइंड" में बताती हैं कि अमेरिकी खुफिया अधिकारियों को सबसे पहले बिन लादेन के एक खास कूरियर के बारे में तब पता चला, जब उन्होंने अल-कायदा के पकड़े गए आतंकियों से पूछताछ की। इनमें खालिद शेख मोहम्मद जैसे बड़े नाम भी शामिल थे। इन आतंकियों ने कुछ कूरियर्स के निक-नेम बताए थे।
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इसके बाद कई साल लगे उस कूरियर का असली नाम पता करने में और फिर उसे ढूंढना भी एक बड़ी चुनौती थी। ओसामा खुद बहुत चालाक था। वह अपने आसपास किसी को फोन या इंटरनेट इस्तेमाल नहीं करने देता था। इसलिए ताकि कोई उसकी लोकेशन ट्रेस न कर सके लेकिन फिर लैंडाउ के अनुसार, 2010 के बीच में अमेरिकी एजेंट्स की किस्मत चमकी। उस कूरियर ने एक फोन कॉल की। वह कॉल उसने ओसामा के कंपाउंड से नहीं की थी लेकिन एजेंट्स उसे ट्रैक करने में कामयाब रहे और फिर अगस्त 2010 में, वह कूरियर अनजाने में ही उन्हें एबटाबाद के उस कंपाउंड तक ले गया, जहां ओसामा छिपा था। व्हाइट हाउस ने भी ओबामा के भाषण के फौरन बाद एक प्रेस ब्रीफिंग में यही बताया था कि ये सालों के "एडवांस्ड इंटेलिजेंस वर्क" का नतीजा था, जिसमें कूरियर्स को ट्रैक करने पर फोकस किया गया। नेटफ्लिक्स डॉक्यूमेंट्री में भी CIA के कई अधिकारी इस पूरी प्रक्रिया के बारे में बताते हैं। डॉक्यूमेंट्री में यह भी बताया गया है कि यह जानकारी हासिल करने के लिए 'एनहैंस्ड इंटेरोगेशन टेक्नीक्स' यानी टॉर्चर का भी इस्तेमाल किया गया था।
यह तो हुई ऑफिशियल कहानी। शानदार जासूसी। CIA की बड़ी कामयाबी लेकिन सेमुर हर्ष अपनी किताब में इस पूरी कहानी को एक सिरे से नकार देते हैं। हर्ष के मुताबिक, CIA को ओसामा का पता किसी कूरियर को ट्रैक करके नहीं मिला था। ये सारी बातें मनगढ़ंत थीं। तो फिर कैसे मिला? हर्ष का दावा है कि इसकी शुरुआत अगस्त 2010 में एक 'वॉक-इन' से हुई थी। 'वॉक-इन' खुफिया एजेंसियों की भाषा में ऐसे शख्स को कहते हैं जो खुद चलकर कोई जानकारी देने आए। हर्ष लिखते हैं कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI का एक पुराना, बड़ा अफसर खुद CIA के पास आया। वह इस्लामाबाद में अमेरिकी एम्बेसी में तैनात CIA के स्टेशन चीफ जोनाथन बैंक से मिला। इस पाकिस्तानी अफसर ने CIA को ओसामा बिन लादेन का पक्का पता बताने का ऑफर दिया। बदले में उसने क्या मांगा? अमेरिका ने ओसामा पर जो 25 मिलियन डॉलर का इनाम रखा था, उसका एक बड़ा हिस्सा।
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हर्ष बताते हैं कि CIA आमतौर पर ऐसे 'वॉक-इन' पर भरोसा नहीं करती। इसलिए, उस पाकिस्तानी अफसर का पॉलीग्राफ टेस्ट यानी लाई डिटेक्टर टेस्ट करवाया गया और वह अफसर टेस्ट में पास हो गया तो अगस्त 2010 तक CIA के पास ओसामा के एबटाबाद वाले कंपाउंड में होने की खबर आ चुकी थी और यह खबर किसी लंबे-चौड़े ट्रैकिंग ऑपरेशन से नहीं, बल्कि एक खबरी से मिली थी। हर्ष यह भी बताते हैं कि बाद में उस पाकिस्तानी अफसर और उसके परिवार को चुपचाप पाकिस्तान से निकालकर अमेरिका में बसा दिया गया और वह CIA के लिए एक कंसलटेंट के तौर पर काम करने लगा।
पाकिस्तान को सब पता था?
ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान के अंदर, एक बड़े से कंपाउंड में रह रहा था। वह भी ऐबटाबाद जैसे मिलिट्री शहर में। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या पाकिस्तान को इसकी कोई खबर नहीं थी? या फिर ये सब उसकी जानकारी में हो रहा था? अमेरिकी सरकार की ऑफिशियल कहानी तो यही है कि यह पूरा ऑपरेशन इतना सीक्रेट था कि पाकिस्तान को इसकी हवा तक नहीं लगने दी गई। इलेन लैंडाउ अपनी किताब में बताती हैं कि अमेरिकी रेड टीम के साथ बैकअप हेलिकॉप्टर्स भी थे। इनका काम था कि अगर पाकिस्तानी फोर्स ने रोकने की कोशिश की, तो वे लड़कर बाहर निकल सकें। उन्हें कहा गया था कि पाकिस्तानी फोर्स से जितना हो सके, भिड़ना नहीं है लेकिन ज़रूरत पड़े तो जवाब देने की पूरी छूट थी।
सेमुर हर्ष भी अपनी किताब 'द किलिंग ऑफ़ ओसामा बिन लादेन' में इस बात का जिक्र करते हैं कि व्हाइट हाउस का यही स्टैंड था कि पाकिस्तान के टॉप आर्मी जनरल, जैसे जनरल कियानी और ISI चीफ जनरल पाशा, को इस रेड के बारे में पहले से कुछ नहीं बताया गया था। नेटफ्लिक्स की डॉक्यूमेंट्री "अमेरिकन मैनहंट: ओसामा बिन लादेन" में भी अमेरिकी अधिकारी इसी बात पर ज़ोर देते हैं। हालांकि, हर्ष बताते हैं कि हमले के बाद राष्ट्रपति ओबामा ने अपने भाषण में पाकिस्तान के काउंटर-टेररिज्म सहयोग की तारीफ की थी, जिसने बिन लादेन और उसके कंपाउंड तक पहुंचने में मदद की लेकिन बाद में व्हाइट हाउस के अधिकारियों ने इस बात को गोलमोल कर दिया और कहा कि पाकिस्तान का ओसामा को मारने में कोई रोल नहीं था। ओबामा के सीनियर सलाहकार जॉन ब्रेनन ने तो साफ कहा था कि अमेरिका ने पाकिस्तानियों से तब तक कोई कांटेक्ट नहीं किया जब तक उनके सारे लोग और एयरक्राफ्ट पाकिस्तानी एयरस्पेस से बाहर नहीं निकल गए।
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यह तो हुई एक बात। अब सेमुर हर्ष की किताब 'द किलिंग ऑफ़ ओसामा बिन लादेन' का दूसरा पहलू सुनिए, जो इस ऑफिशियल कहानी से बिल्कुल मेल नहीं खाता। हर्ष का दावा है कि यह कहना कि पाकिस्तानी मिलिट्री लीडर्स को कुछ पता नहीं था, सरासर झूठ है। हर्ष लिखते हैं कि पाकिस्तान के तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल कियानी और ISI चीफ जनरल पाशा को न सिर्फ इस रेड की पहले से पूरी जानकारी थी, बल्कि उन्होंने इसमें अमेरिका की भरपूर मदद भी की थी। हर्ष के सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने ही ये पक्का किया था कि अमेरिकी सील्स को लेकर जाने वाले हेलीकॉप्टर्स पाकिस्तानी एयरस्पेस में बिना किसी रोक-टोक या अलार्म बजे दाखिल हो सकें और इससे भी बड़ी बात जो हर्ष कहते हैं, वह यह कि ओसामा बिन लादेन 2006 से ही ISI की कैद में ऐबटाबाद के उसी कंपाउंड में रह रहा था। वह कंपाउंड ISI के कंट्रोल में था और वहां कोई बहुत बड़ी हथियारबंद सुरक्षा नहीं थी क्योंकि उसकी ज़रूरत ही नहीं थी।
सवाल उठता है कि पाकिस्तान ने अमेरिका की मदद क्यों की? हर्ष इसके पीछे की वजह बताते हैं: कैरेट एंड स्टिक को। 'कैरट' यानी गाजर और 'स्टिक' यानी छड़ी, या जिसे हम कह सकते हैं 'ब्लैकमेल'। 'कैरट' के तौर पर पाकिस्तान को अमेरिकी मिलिट्री एड जारी रखने का वादा मिला। ISI लीडरशिप की पर्सनल सिक्योरिटी, जैसे बुलेटप्रूफ गाड़ियां और गार्ड्स के लिए भी फंड मिलने की बात थी और कुछ 'अंडर-द-टेबल' यानी छुपे हुए निजी फायदे भी थे और 'ब्लैकमेल' यह था कि अमेरिका ने पाकिस्तान को धमकाया कि अगर उन्होंने मदद नहीं की तो अमेरिका दुनिया को बता देगा कि पाकिस्तान ओसामा को अपने पिछवाड़े में छिपाए हुए है।
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हर्ष के अनुसार, ISI ओसामा बिन लादेन को अफगानिस्तान और पाकिस्तान में तालिबान और अल-कायदा की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए एक 'मोहरे' या 'बंधक' की तरह इस्तेमाल कर रही थी। जनरल पाशा ने कथित तौर पर अमेरिका से यह भी तय किया था कि इस मदद के बदले अमेरिका पाकिस्तान पर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में ढिलाई बरतने के आरोप लगाना बंद कर देगा। जनरल कियानी और पाशा की ही ज़िम्मेदारी थी कि पाकिस्तानी आर्मी और एयर डिफेंस कमांड अमेरिकी हेलीकॉप्टरों को न तो ट्रैक करे और न ही उन पर कोई एक्शन ले। हर्ष तो यहां तक लिखते हैं कि रेड से कुछ घंटे पहले ISI के कहने पर ऐबटाबाद शहर की बिजली भी काट दी गई थी और सबसे दिलचस्प बात, हर्ष के मुताबिक, अमेरिका और पाकिस्तान के बीच यह भी तय हुआ था कि रेड की खबर फौरन पब्लिक नहीं की जाएगी। कुछ दिनों बाद एक कवर स्टोरी जारी की जानी थी कि ओसामा बिन लादेन हिंदुकुश के पहाड़ों में एक ड्रोन हमले में मारा गया। ऐसा इसलिए ताकि पाकिस्तान की भूमिका छिपी रहे और उसे अपने ही देश में लोगों के गुस्से का सामना न करना पड़े।
मुठभेड़ या सीधा सफाया?
"अमेरिकन मैनहंट: ओसामा बिन लादेन" के मुताबिक एबटाबाद कंपाउंड में अमेरिकी नेवी सील्स और ओसामा के लोगों के बीच एक जोरदार मुठभेड़ हुई थी। इलेन लैंडाउ अपनी किताब में लिखती हैं कि यह पूरा ऑपरेशन लगभग 38 मिनट तक चला। इस दौरान पांच लोग मारे गए – खुद ओसामा बिन लादेन, उसका संदेशवाहक अबू अहमद अल-कुवैती, उस संदेशवाहक का भाई, एक औरत जो क्रॉसफायर में फंस गई और ओसामा का बेटा खालिद। लैंडाउ के अनुसार, ओसामा रेड के करीब 20 मिनट बाद मारा गया, उसे सीने और माथे पर गोली लगी थी। यह भी बताया गया कि ओसामा की एक पत्नी ने एक सील कमांडो पर झपट्टा मारा दिया था, इसी बीच उसके पैर में गोली लगी लेकिन वह बच गई। नेटफ्लिक्स डॉक्यूमेंट्री में नेवी सील रॉबर्ट ओ'नील भी हैं, जो ओसामा को गोली मारने का दावा करते हैं। ऐसी कहानियों में अक्सर मिशन के खतरे और आत्मरक्षा में की गई कार्रवाई पर ज़ोर दिया जाता है। राष्ट्रपति ओबामा ने भी अपने भाषण में कहा था, "एक फायरफाइट के बाद, उन्होंने ओसामा बिन लादेन को मार दिया"। जॉन ब्रेनन ने भी यही कहा कि बिन लादेन "एक फायरफाइट में शामिल था"।
सेमुर हर्ष अपनी किताब में इस पूरी मुठभेड़ की कहानी पर ही सवाल खड़े करते हैं। हर्ष के मुताबिक, कंपाउंड के अंदर कोई फायरफाइट यानी गोलीबारी हुई ही नहीं थी। ISI के गार्ड तो अमेरिकी हेलीकॉप्टरों की आहट सुनते ही वहां से जा चुके थे। हर्ष तो यहां तक कहते हैं कि अमेरिकी सील्स के साथ हेलीकॉप्टर में एक ISI का संपर्क अधिकारी भी था, जिसने अंधेरे में उन्हें घर के अंदर ओसामा के कमरे तक पहुंचाया था। सील्स को पाकिस्तानियों ने पहले ही बता दिया था कि अंदर लोहे के भारी दरवाजे हैं, जिन्हें सील्स ने धमाका करके उड़ा दिया।
हर्ष लिखते हैं कि ओसामा को जो गोलियां लगीं, उसके अलावा कंपाउंड में कोई और गोली चली ही नहीं। ओसामा की एक पत्नी चीख रही थी और शायद कोई भटकी हुई गोली उसके घुटने में जा लगी थी। सील्स को ओसामा का कमरा पहले से पता था – "तीसरी मंजिल, दाहिनी तरफ का दूसरा दरवाजा"। हर्ष के एक सूत्र के अनुसार, "ओसामा डरा हुआ था और पीछे हटकर अपने बेडरूम में चला गया। दो शूटर्स उसके पीछे गए और गोलियां दाग दीं।
हर्ष का यह भी कहना है कि बाद में कुछ सील्स इस बात से बहुत नाराज़ थे कि व्हाइट हाउस ने यह झूठी कहानी फैलाई कि उन्होंने ओसामा को आत्मरक्षा में मारा था। उनके एक सूत्र ने सवाल उठाया, "क्या सील्स के छह सबसे बेहतरीन, सबसे अनुभवी जवान, एक निहत्थे बूढ़े के सामने आत्मरक्षा में गोली चलाएंगे?"
हर्ष के मुताबिक, ओसामा एक कोठरी जैसे कमरे में रह रहा था जिसकी खिड़की पर सलाखें और छत पर कांटेदार तार लगे थे। रूल्स ऑफ एंगेजमेंट के तहत अगर ओसामा कोई विरोध करता या सील्स को शक होता कि उसने कोई विस्फोटक जैकेट वगैरह पहन रखी है, तो वे उसे मार सकते थे। यह दावा कि उसके सिर में सिर्फ एक या दो गोलियां मारी गईं, हर्ष के सूत्र के अनुसार "बकवास" था; "स्क्वॉड ने दरवाज़े से घुसकर उसे छलनी कर दिया था।" हर्ष का कहना है कि सील्स ओसामा को ज़िंदा रखने के मूड में बिल्कुल नहीं थे; यह "साफ तौर पर और पूरी तरह से एक सोची-समझी हत्या थी"। हर्ष ने एक पूर्व सील कमांडर के हवाले से लिखा है, "कानून के हिसाब से, हम जानते हैं कि हम पाकिस्तान के अंदर जो कर रहे हैं वह हत्या है। हम एक मर्डर करने जा रहे हैं।"
ओसामा का शरीर समंदर में डाला गया?
ऑफिशियल कहानी, जैसा कि इलेन लैंडाउ अपनी किताब "ओसामा बिन लादेन: द लाइफ एंड डेथ ऑफ द 9/11 अल-कायदा मास्टरमाइंड" में बताती हैं, कुछ ऐसी है। रेड के बाद, ओसामा की पहचान पक्की करने के लिए कई तरीके अपनाए गए। एक लंबे कद के सील कमांडो ने लाश के पास लेटकर उसका कद नापा क्योंकि ओसामा काफी लंबा था। एक तस्वीर ली गई और उसे फेशियल रिकग्निशन सॉफ्टवेयर से मिलाया गया, जिससे 95 परसेंट मैच मिला और सबसे पुख्ता सबूत के लिए, लाश से DNA सैंपल लेकर ओसामा के रिश्तेदारों के DNA से मिलाया गया, जो 99.9 परसेंट मैच हुआ। व्हाइट हाउस ने भी यही बताया कि एक DNA टेस्ट लाश पर किया गया था। इसका मतलब यह हुआ कि DNA रेड के बाद लाश से लिया और टेस्ट किया गया लेकिन सेमुर हर्ष अपनी किताब में इस DNA कहानी को भी एक और फसाना बताते हैं।
हर्ष के मुताबिक, अमेरिका के पास ओसामा का DNA रेड से पहले ही मौजूद था। यह DNA किसने दिया? हर्ष के अनुसार, यह काम किया था पाकिस्तानी आर्मी के एक डॉक्टर, मेजर आमिर अज़ीज़ ने। यह वही डॉक्टर थे जो ISI की निगरानी में ओसामा का इलाज कर रहे थे, क्योंकि ओसामा बहुत बीमार था और लगभग अपाहिज हो चुका था। डॉ. अज़ीज़ ने ही ओसामा के DNA सैंपल लेकर अमेरिकियों तक पहुंचाए थे और इसके बदले उन्हें 25 मिलियन डॉलर के इनाम का एक हिस्सा भी मिला था। ऑफिसियल कहानी के अनुसार, DNA हासिल करने के लिए एक फेल पोलियो वैक्सीनेशन प्रोग्राम चलाया गया था ताकि ओसामा के कंपाउंड से ख़ून के सैंपल मिल सकें। सेमुर हर्ष के अनुसार, यह एक कवर स्टोरी थी ताकि डॉ. अज़ीज़ और उनके असली DNA मिशन को छिपाया जा सके। व्हाइट हाउस की कहानी कि सील्स ने लाश के पास लेटकर कद नापा या बाद में DNA टेस्ट किया, यह सब इसलिए कहा गया क्योंकि शुरू में यह भी साफ नहीं था कि ओसामा की पूरी बॉडी वापस भी लाई जा सकी है या नहीं।
इंटेलिजेंस का 'खज़ाना'
ऑफिशियल बयानों और इलेन लैंडाउ की किताब के मुताबिक, अमेरिकी सील्स को ऐबटाबाद कंपाउंड से ओसामा बिन लादेन के साथ-साथ खुफिया जानकारी का एक बहुत बड़ा "खज़ाना" मिला था। व्हाइट हाउस की प्रेस ब्रीफिंग में इसे "आतंकवादी दस्तावेज़ों का अब तक का सबसे बड़ा कलेक्शन" बताया गया। कहा गया कि इसमें कंप्यूटर, हार्ड ड्राइव, स्टोरेज डिवाइस और बहुत सारे कागज़ात थे, जिनसे अल-कायदा के भविष्य के प्लान्स और ओसामा के ऐक्टिव लीडर होने का पता चलता था।
सेमुर हर्ष इस "खज़ाने" वाली बात को भी सिरे से नकारते हैं। 'द किलिंग ऑफ़ ओसामा बिन लादेन' में वह लिखते हैं कि "बहुत सारी बातों के बावजूद, वहां कंप्यूटर और स्टोरेज डिवाइस से भरे कोई गार्बेज बैग नहीं थे"। सील्स ने "बस कुछ किताबें और कागज़, जो उन्हें ओसामा के कमरे में मिले, अपने बैग में भर लिए थे"। हर्ष के अनुसार, सील्स वहां इसलिए नहीं गए थे कि ओसामा कोई बड़ा कमांड सेंटर चला रहा था। यह "खज़ाने वाली कहानी" इसलिए गढ़ी गई ताकि दुनिया को लगे कि ओसामा अब भी ऑपरेशनल तौर पर बहुत ज़रूरी था, वरना उसे मारने का क्या मतलब रह जाता? हर्ष का दावा है कि ज्यादातर सामान तो बाद में पाकिस्तानियों ने ही अमेरिका को सौंपा था।
अंत में सबसे बड़ा सवाल– ओसामा की लाश का आखिर हुआ क्या? ऑफिशियल कहानी, जिसका जिक्र इलेन लैंडाउ ने भी किया है और जॉन ब्रेनन जैसे अधिकारियों ने भी दोहराया, यह है कि ओसामा के शव को अमेरिकी नेवी शिप यूएसएस कार्ल विंसन पर ले जाया गया। वहां इस्लामी रिवाज़ के मुताबिक उसे नहलाया गया, सफेद कपड़े में लपेटा गया, एक अफसर ने मज़हबी रस्में अदा कीं और फिर एक भारी बैग में डालकर उसे समंदर में दफ़ना दिया गया लेकिन सेमुर हर्ष 'द किलिंग ऑफ़ ओसामा बिन लादेन' में इस पूरी कहानी को ही व्हाइट हाउस का सबसे बड़ा झूठ बताते हैं।
हर्ष के मुताबिक, यूएसएस कार्ल विंसन पर ऐसा कोई अंतिम संस्कार हुआ ही नहीं। उनके सूत्रों ने बताया कि कुछ सील कमांडो ने तो आपस में यह तक कहा था कि उन्होंने ओसामा की लाश को गोलियों से बुरी तरह चीर-फाड़ दिया था। लाश के टुकड़े, जिसमें उसका सिर भी शामिल था (जिस पर कुछ ही गोलियों के निशान थे), एक बॉडी बैग में भरे गए और जब हेलीकॉप्टर वापस जलालाबाद, अफगानिस्तान जा रहा था, तो कुछ बॉडी पार्ट्स हिंदू कुश के पहाड़ों पर ही फेंक दिए गए थे। हर्ष का कहना है कि "शुरू में बॉडी को समंदर में ले जाने का कोई प्लान था ही नहीं और ओसामा को समंदर में दफ़नाया भी नहीं गया।" यह 'बरीयल एट सी' यानी समंदर में दफ़नाने का आइडिया नेवी के अफसरों का था क्योंकि जब राष्ट्रपति ओबामा ने फौरन रेड की खबर लीक कर दी तो व्हाइट हाउस के सामने "बॉडी कहां है?" वाला बड़ा सवाल खड़ा हो गया था।
हर्ष कहते हैं कि अगर सील्स की शुरुआती बातों पर यकीन करें, तो वैसे भी ओसामा की बॉडी के इतने टुकड़े हो चुके थे कि समंदर में डालने के लिए कुछ खास बचा ही नहीं था। हर्ष यह भी बताते हैं कि एडमिरल मैकरेवन ने रेड से जुड़ी सारी फाइल्स मिलिट्री कंप्यूटर से डिलीट करवाकर CIA को देने का आदेश दिया था, ताकि उन्हें FOIA यानी सूचना के अधिकार कानून के तहत कोई मांग न सके। इसका मतलब यह था कि कोई भी बाहरी व्यक्ति यूएसएस कार्ल विंसन के लॉग्स नहीं देख सकता था, जिसमें समंदर में हुए किसी भी अंतिम संस्कार का रिकॉर्ड ज़रूर होता।
यह थी ओसामा बिन लादेन के मारे जाने और उसके बाद की घटनाओं से जुड़ी दो बिल्कुल अलग-अलग कहानियां। एक तरफ सरकारी दावे और हीरोइज्म, दूसरी तरफ सेमुर हर्ष के सनसनीखेज खुलासे। असलियत क्या थी पता करना मुश्किल है लेकिन जहां तक CIA के ट्रैक रिकॉर्ड की बात है, विश्वास करना मुश्किल है कि एकदम असली कहानी हमें बताई गई।
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