रूस ने क्यों बेचा था अलास्का, जहां होनी है ट्रंप-पुतिन की मीटिंग?
शुक्रवार को अलास्का में डोनाल्ड ट्रंप और व्लादिमीर पुतिन की मीटिंग होने वाली है। वह अलास्का कभी रूस का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन उसे अमेरिका को बेच दिया था।

डोनाल्ड ट्रंप और व्लादिमीर पुतिन। Photo Credit: PTI
1867 का साल विश्व राजनीति और सामरिक भूगोल के इतिहास में एक अद्वितीय घटना का गवाह बना, जब रूसी साम्राज्य ने 30 मार्च को अलास्का, जो आज अमेरिका का एक महत्त्वपूर्ण राज्य है, महज़ 72 लाख डॉलर में अमेरिका को बेच दिया। यह सौदा 'Alaska Purchase' के नाम से इतिहास में दर्ज हुआ। यह सौदा उस समय शायद किसी को बहुत खास नहीं लगा, लेकिन आज इसे इतिहास के सबसे चौंकाने वाले और लंबे समय तक असर डालने वाले भू-राजनीतिक समझौतों में गिना जाता है। अलास्का उस समय रूस का एक दूरस्थ प्रांत था, जिसका क्षेत्रफल करीब 1,518,800 वर्ग किलोमीटर था—जो आज अमेरिका का सबसे बड़ा राज्य है।
19वीं सदी के मध्य में रूस कई मोर्चों पर चुनौतियों से जूझ रहा था। क्रीमियन युद्ध (1853-56) ने उसकी अर्थव्यवस्था को कमजोर कर दिया था। कनाडा में ब्रिटिश उपस्थिति के कारण उसे डर था कि भविष्य में कोई भी युद्ध उसके हाथ से अलास्का को छीनकर ब्रिटेन के हाथों में दे सकता है। इतनी दूर स्थित, बर्फीली और विरल आबादी वाली इस भूमि की रक्षा करना कठिन था और रखरखाव का खर्च उसकी क्षमता से अधिक था।
यह भी पढ़ेंः क्या कुछ बड़ा करने वाले ट्रंप? वॉशिंगटन में नेशनल गार्ड की होगी तैनाती
दूसरी ओर, अमेरिका अपने 'Manifest Destiny' के विस्तारवादी विचार के तहत पश्चिम से पूर्व तक फैलने के मिशन में था। अलास्का खरीदने से अमेरिका को न केवल विशाल प्राकृतिक संसाधन मिलते, बल्कि उत्तरी प्रशांत में सामरिक बढ़त भी हासिल होती।
यह सौदा रूसी राजदूत एडुअर्ड डी स्टोकल और अमेरिकी विदेश मंत्री विलियम एच. सीवर्ड के बीच हुआ। उस दौर में इसे 'Seward’s Folly' यानी 'सीवर्ड की मूर्खता' कहा गया, लेकिन समय ने साबित किया कि यह अमेरिका के लिए एक बेहतरीन सौदा था। इस लेख में हम देखेंगे कि रूस ने यह निर्णय क्यों लिया, सौदा कैसे हुआ, तत्कालीन प्रतिक्रियाएं क्या थीं और इसके दीर्घकालिक प्रभाव क्या रहे।
रूस के पास कैसे आया अलास्का?
रूस का अलास्का से संबंध 18वीं सदी के मध्य में शुरू हुआ। 1741 में डेनिश मूल के खोजकर्ता विटस बेरिंग और रूसी नाविक एलेक्सी चिरिकोव ने इस क्षेत्र की खोज की और इसे रूसी साम्राज्य का हिस्सा बताया। यहां समुद्री ऊदबिलाव के कीमती फर की भरपूर उपलब्धता ने रूसियों को आकर्षित किया।
1784 में रूस ने पहली स्थायी बस्ती कोडियक आइलैंड पर बसाई। 1799 में ज़ार पॉल प्रथम ने एक प्राइवेट कंपनी को विशेषाधिकार दिया, जो फर व्यापार, मछली पकड़ने और बस्तियों के संचालन का जिम्मा संभालती थी। 19वीं सदी की शुरुआत तक रूस की पकड़ अलास्का के दक्षिणी हिस्सों में मजबूत हो चुकी थी और Sitka इसका प्रशासनिक केंद्र था।
हालांकि, जलवायु की कठोरता, लंबी सप्लाई चेन, और स्थानीय जनजातियों के साथ संघर्ष ने रूसियों के विस्तार को सीमित कर दिया। अमेरिका और ब्रिटिश कनाडा के बीच स्थित यह क्षेत्र सामरिक रूप से मूल्यवान तो था, लेकिन रूस के लिए इसे स्थायी रूप से विकसित करना मुश्किल साबित हो रहा था।
रूस के सामने थीं चुनौतियां
क्रीमियन युद्ध (1853-56) में रूस की हार ने उसकी अंतरराष्ट्रीय स्थिति कमजोर कर दी और अर्थव्यवस्था को गहरा झटका दिया। ब्रिटिश नौसेना की ताकत को देखते हुए यह आशंका बढ़ गई कि भविष्य में कनाडा के रास्ते ब्रिटेन अलास्का पर कब्जा कर सकता है।
यह भी पढ़ेंः अमेरिका में ही उठ रही विरोध की आवाज़, ट्रंप के टैरिफ की हो रही आलोचना
रूस के लिए अलास्का का सैन्य महत्व सीमित था क्योंकि वहां पर्याप्त सैनिक तैनात करना और रक्षा के लिए आपूर्ति भेजना कठिन था। सेंट पीटर्सबर्ग से अलास्का तक का समुद्री सफर महीनों का होता था और रास्ता खतरनाक भी था।
आर्थिक दृष्टि से भी अलास्का का रखरखाव महंगा था। फर व्यापार धीरे-धीरे घट रहा था, और नए संसाधनों का दोहन रूस की तकनीकी और वित्तीय सीमाओं के कारण संभव नहीं था। रूस के नीति-निर्माताओं ने निष्कर्ष निकाला कि इस क्षेत्र को किसी मित्र राष्ट्र—विशेषकर अमेरिका—को बेच देना सबसे सुरक्षित और लाभदायक विकल्प होगा।
अमेरिका की ‘Manifest Destiny’
19वीं सदी में अमेरिका में 'मैनिफेस्ट डेस्टिनी' की अवधारणा जोरों पर थी, जिसके अनुसार अमेरिका का भाग्य है कि वह पूरे महाद्वीप और उससे आगे तक फैले। 1845 में इस विचार को पहली बार मीडिया और नेताओं ने खुलकर व्यक्त किया।
अमेरिका पहले ही लुइज़ियाना ख़रीद (1803), टेक्सास अधिग्रहण (1845), और कैलिफ़ोर्निया समेत दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्रों को मैक्सिको से हासिल कर चुका था। अब उसकी नजर उत्तरी प्रशांत क्षेत्र पर थी, जो व्यापार, नौसेना और संसाधनों के लिहाज़ से महत्वपूर्ण था।
अलास्का खरीदने से अमेरिका को रूस के साथ दोस्ताना संबंध भी मजबूत करने का मौका मिला, और यह ब्रिटिश कनाडा के पास एक सामरिक ठिकाना बन सकता था। उस दौर में अमेरिका व्हेल मछली पकड़ने, फर व्यापार, और एशिया के साथ समुद्री व्यापार में भी रुचि ले रहा था—अलास्का इन सभी के लिए एक गेटवे साबित हो सकता था।
पहले टलती रही बातचीत
रूसी राजदूत एडुअर्ड डी स्टोकल और अमेरिकी विदेश मंत्री विलियम एच. सीवर्ड के बीच गुप्त बातचीत 1860 के दशक में शुरू हुई। अमेरिकी गृहयुद्ध के चलते यह वार्ता कुछ समय के लिए टल गई, लेकिन 1867 में इसे तेज़ी से आगे बढ़ाया गया।
30 मार्च 1867 को वॉशिंगटन डी.सी. में समझौते पर हस्ताक्षर हुए। सौदे की कीमत तय हुई 72 लाख डॉलर—जो आज के हिसाब से लगभग 140 मिलियन डॉलर के बराबर है। भुगतान सोने के सिक्कों में किया गया।
अमेरिकी सीनेट ने 37-2 के मतों से इस सौदे को मंजूरी दी। हालांकि कई अखबारों और नेताओं ने इसे 'Seward’s Folly' (सीवर्ड की मूर्खता) और 'Seward’s Icebox' (सीवर्ड का बर्फ का डिब्बा) कहकर मजाक उड़ाया, लेकिन सीवर्ड को विश्वास था कि यह क्षेत्र अमेरिका के लिए दीर्घकाल में मूल्यवान साबित होगा।
जनता में भी था विरोध
सौदे के तुरंत बाद जनता और मीडिया का एक बड़ा वर्ग नकारात्मक भाव से भरा था। उनका मानना था कि यह बर्फ से ढकी बंजर जमीन पर पैसा बर्बाद करना है। अमेरिका के गृहयुद्ध से बाहर निकलने के तुरंत बाद 72 लाख डॉलर खर्च करना कई लोगों को अव्यवहारिक लगा।
हालांकि, कुछ व्यापारी और रणनीतिकार मानते थे कि यह कदम उत्तरी प्रशांत में अमेरिका की स्थिति को मजबूत करेगा और भविष्य में एशिया से व्यापार के लिए फायदेमंद होगा।
1867 में अमेरिकी झंडा अलास्का के Sitka शहर में फहराया गया और अमेरिका ने इसका आधिकारिक अधिग्रहण कर लिया। शुरुआती दशकों में वहां बसावट और आर्थिक गतिविधियां धीमी रहीं, लेकिन 1896 के युकोन गोल्ड रश और 20वीं सदी में तेल व गैस की खोज ने अलास्का की किस्मत बदल दी।
यह भी पढ़ेंः भारत- अमेरिका तनाव के बीच ट्रंप से मिलेंगे पुतिन, क्या है वजह?
रूस के लिए कैसा रहा?
इस सौदे से रूस को कुछ लाभ तो कुछ नुकसान हुए। लाभ की बात करें तो तात्कालिक रूप से उसे आर्थिक राहत मिली और 72 लाख डॉलर का नकद भुगतान हो गया। इसके अलावा सामरिक रूप से भी जहां एक तरफ ब्रिटेन के खतरे से मुक्ति मिल गई वहीं अमेरिका से मैत्रीपूर्ण संबंध भी बन गए। वहीं रूस दूरदराज के इस बंजर क्षेत्र की रक्षा के बोझ से भी मुक्त हो गया।
वहीं नुकसान की बात करें तो दूरगामी रूप से रूस को काफी नुकसान हुआ। बेचने की वजह से रूस को विशाल प्राकृतिक संसाधनों से हाथ धोना पड़ा, वहीं उत्तरी प्रशांत महासागर में उसकी सामरिक उपस्थिति भी खत्म हो गई और आने वाले सालों में संभावित अरबों डॉलर का नुकसान हुआ। आज कई रूसी इतिहासकार मानते हैं कि यह सौदा तत्कालीन हालात में तर्कसंगत था, लेकिन दीर्घकाल में यह एक रणनीतिक गलती साबित हुई।
अमेरिका के लिए रहा लाभदायक
हालांकि, अमेरिका के लिए यह सौदा एक अक्षरशः सोने की खान साबित हुआ। युकोन और नोम में बड़े पैमाने पर सोने की खोज ने हजारों खनिकों को इसकी ओर आकर्षित किया। इसके अलावा 20वीं सदी में प्रूडो बे (Prudhoe Bay) में विशाल तेल भंडार मिले।
प्राकृतिक संसाधनों जैसे मछली व अन्य समुद्री संसाधनों जैसे सैल्मन, केकड़े इत्यादि से तो अमेरिका को लाभ मिल ही रहा था पर सामरिक रूप से भी द्वितीय विश्व युद्ध और शीत युद्ध के दौरान अलास्का एक महत्वपूर्ण सैन्य ठिकाना बना। आज अलास्का अमेरिका का ऊर्जा-समृद्ध और सामरिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य है, जिसका जीडीपी अरबों डॉलर में है।
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap