महाराष्ट्र के पुणे जिले के लोहेगांव के रहने वाले 17 वर्षीय पहलवान सनी फुलमाली की हर तरफ चर्चा है। बेहद विपरीत परिस्थितियों से निकालकर सनी फुलमाली ने बहरीन में आयोजित एशियाई युवा कुश्ती चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता है। उनकी मेहनत और लगन के अलावा उनके उस्ताद यानी कोच संदीप अप्पा भोंडवे की खूब चर्चा हो रही है।
संदीप पिछले कई वर्षों से सन्नी की ट्रेनिंग के अलावा अन्य खर्च उठाते हैं। सन्नी खुद कहते हैं कि मैं आज जो भी हूं, वह कोच संदीप अप्पा भोंडवे की वजह से हूं। सन्नी का परिवार बीड जिले के आष्टी का रहने वाला है। करीब 15 साल पहले पुणे शहर के बाहरी इलाके में स्थित लोहेगांव में रहने लगा। परिवार के पास खुद का मकान नहीं है। सनी के माता-पिता और दो भाई खुले आसमान के नीचे तिरपाल से बनी एक झोपड़ी में रहते हैं।
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सनी ने बताया कि मेरे दादाजी गांव में कुश्ती लड़ते थे। उन्होंने मेरे पिता को पहलवान बनाया। बाद में पापा ने मुझे और मेरे भाइयों को ट्रेनिंग दी। मेरे दादा भी हमेशा मिट्टी पर ही खेले थे। पापा भी अच्छा खेलते थे। मगर वह भी सिर्फ दंगल में कुश्ती लड़ते थे। पापा को कुश्ती से बहुत लगाव है। उन्होंने हम तीनों भाइयों को झोपड़ी के पास खेत में ही कुश्ती लड़ाना शुरू किया। पैसा नहीं था, इसलिए आखड़ा भी नहीं गए।
कोच ने पहले फीस आधी की, बाद में पूरा खर्च उठाया
सनी ने बताया कि कुछ समय बाद घरवालों ने मुझे रायबा तालीम भेजा। यहां सोमनाथ मोझे और सदा रखपासरे ने पहलवानी की ट्रेनिंग दी। घरवालों को लगा कि मैं अच्छा कर सकता हूं तो उन्होंने लोनीकंद भेजा। यहां दो-तीन महीने परिवार के खर्च से ट्रेनिंग ली। वहां के उस्ताद संदीप अप्पा भोंडवे ने हमारी फीस भी आधी कर दी। मगर घर की हालत ठीक न होने के कारण बीच में ही ट्रेनिंग बंद करनी पड़ी।
मैं जो कुछ भी हूं, उस्ताद की वजह से हूं: सन्नी
कुछ दिन बाद उस्ताद संदीप अप्पा भोंडवे ने घर आकर पूरा खर्च उठाने की बात कही। उन्होंने कई वर्षों तक मेरा पूरा खर्च उठाया। वह मेरे लिए सुबह चार बजे उठते हैं। मैंने महाराष्ट्र, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड जीता है। आज जो कुछ भी हूं, उनकी ही वजह से हूं।
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'गोल्ड मेडल का नाम सुनकर मां रो पड़ी'
एशियाई युवा कुश्ती चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने पर सन्नी ने कहा कि उस्ताद ने दो दिन महीने इंटरनेशल मैच की अलग से प्रैक्टिस करवाई। मेरे घर में टीवी नहीं है। मैंने जब अपने मम्मी को गोल्ड मेडल जीतने की बात बताई तो वह रोने लगीं। हमारा लक्ष्य ओलंपिक है। हमारे उस्ताद संजय ही खाने-पीने, कपड़े और एयर टिकट का इंताजम करते हैं। पहलवान सन्नी ने बताया कि उनके पास अपना घर नहीं है। पिछले 15 साल से जमीन मालिक की इजाजत से परिवार झोपड़ी में रह रहा है। माता-पिता सड़क किनारे सामान बेचकर 10-12 हजार रुपये कमाते हैं। वो भी हमारे ऊपर खर्च कर देते हैं।