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थाने में दबा कर रखा जाता है अपराधियों के खिलाफ कोर्ट से जारी वारंट

बिहार में डीजीपी की बैठक में पता चला कि थानों में गुंडा रजिस्टर को अपडेट नहीं किया जा रहा है और गैर-जमानती वारंट धूल फांक रहे हैं।

Representational Image। Photo Credit: AI Generated

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated

संजय सिंह, पटना  बिहार में अपराध नियंत्रण को लेकर पुलिस की लापरवाही एक बार फिर सामने आई है। प्रदेश के कई थानों में गुंडा रजिस्टर वर्षों से अपडेट नहीं किया गया है, गैर-जमानती वारंट धूल फांक रहे हैं और फरार अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं। इस गंभीर लापरवाही का खुलासा तब हुआ, जब पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ने आगामी विधानसभा चुनावों से पहले पुलिस मुख्यालय में अपराध की स्थिति की समीक्षा के लिए आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक की। 

 

डीजीपी की अध्यक्षता में हुई इस समीक्षा बैठक में पाया गया कि हजारों की संख्या में गैर-जमानती वारंट थानों में लंबित पड़े हैं। कई थानों में गुंडा रजिस्टर को अपडेट करने की प्रक्रिया पूरी तरह ठप है। इस स्थिति पर गंभीर चिंता जताते हुए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने इसे तत्काल सुधारने के निर्देश दिए। डीजीपी ने सभी पुलिस अधीक्षकों (एसपी) और उपाधीक्षकों (डीएसपी) को निर्देश दिया कि वे अपने-अपने क्षेत्रों के थानों में लंबित वारंटों का हिसाब लें और तत्काल आवश्यक कार्रवाई करें।

 

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अपराधियों पर नजर रखने में नाकामी  

पुलिस नियमावली के अनुसार, अपराधियों के नाम गुंडा रजिस्टर में दर्ज किए जाते हैं ताकि उनकी गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। लेकिन कई थानों में यह प्रक्रिया लंबे समय से ऐसा नहीं किया गया है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की लापरवाही के कारण न तो रजिस्टर अपडेट हो रहे हैं और न ही अपराधियों पर प्रभावी निगरानी रखी जा रही है। थाना निरीक्षण के दौरान भी इस महत्वपूर्ण कार्य पर ध्यान नहीं दिया जाता, जिसके कारण अपराधी बिना किसी डर के खुलेआम घूम रहे हैं। 

गुंडा परेड: खानापूर्ति तक सीमित  

थानों में गुंडा रजिस्टर में शामिल अपराधियों की नियमित निगरानी के लिए गुंडा परेड का प्रावधान है। इस परेड का उद्देश्य अपराधियों की गतिविधियों पर नजर रखना और उन्हें कानून के दायरे में लाना है। लेकिन अधिकांश थानों में यह प्रक्रिया केवल खानापूर्ति तक सीमित रह गई है। पुलिस विभाग के एक सेवानिवृत्त डीएसपी, अरविंद कुमार सिंह ने बताया कि यदि थाना स्तर पर गुंडा रजिस्टर और गुंडा परेड की प्रक्रिया को गंभीरता से लागू किया जाए, तो अपराध की दर में आधे से अधिक कमी आ सकती है।

सरकार और पुलिस पर दबाव  

बिहार में बढ़ती अपराध की घटनाओं को लेकर विपक्ष सरकार पर हमलावर है और इसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहा है। सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। हाल ही में एडीजीपी कुंदन कृष्णन को अपने एक विवादित बयान के लिए किसानों से माफी मांगनी पड़ी, जो सरकार की सख्ती का एक उदाहरण है। सरकार ने पुलिस अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि इस चुनावी वर्ष में हर हाल में अपराध पर नियंत्रण करना होगा।

 

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डीएसपी और इंस्पेक्टर को जिम्मेदारी  

डीजीपी के निर्देश के बाद अब डीएसपी और इंस्पेक्टरों को इस लापरवाही को सुधारने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। उम्मीद है कि इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे और गुंडा रजिस्टर को अपडेट करने के साथ-साथ अपराधियों पर प्रभावी निगरानी स्थापित की जाएगी। यदि पुलिस इस दिशा में गंभीरता से काम करे, तो बिहार में अपराध की स्थिति में सुधार संभव है।

 

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