अगस्त 2024 में एक महिला गुरुग्राम की किसी पॉश सोसाइटी में घर ढूंढ रही थीं। DLF कैमेलियाज़ उसकी लिस्ट में था, लेकिन वह उनके बजट से बाहर था। जल्द ही, वह अभिनव पाठक नाम के एक दवा डिस्ट्रीब्यूटर से मिलीं, जिसने दावा किया कि वह ऐसे लोगों को जानता है जो उसे DLF कैमेलियाज़ में 12.04 करोड़ रुपये में घर दिलवा सकते हैं, जो कि असली कीमत का लगभग आधा था।
एक पुलिस अधिकारी ने बताया, 'उसने दावा किया कि उसने पहले ही बैंक नीलामी के ज़रिए एक प्रीमियम प्रॉपर्टी खरीदी है और उसे कम कीमत पर महिला को ट्रांसफर करने की पेशकश की।' बैंक आमतौर पर 'बैड लोन' वसूलने के लिए प्रॉपर्टी की नीलामी करता है। ऐसा तब होता है जब प्रॉपर्टी का मालिक बैंक का बकाया चुकाने में फेल हो जाता है। इस तरह नीलाम की गई प्रॉपर्टी कम कीमतों पर बेची जाती हैं। इसके बाद महिला उसके झांसे में आ गई।
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बनवाए जाली दस्तावेज
DCP (क्राइम ब्रांच) आदित्य गौतम ने बताया, 'अगस्त 2024 में, शिकायतकर्ता से M/s MG लीजिंग एंड फाइनेंस ने संपर्क किया। कंपनी के रिप्रेजेंटेटिव्स ने उसे बहुत सावधानी से बनाए गए जाली दस्तावेज़ जैसे सेल सर्टिफिकेट, कवरिंग लेटर और नीलामी की रसीदें इत्यादि दिखाईं। ये सभी कथित तौर पर भारतीय स्टेट बैंक के थे।'
यकीन होने पर, महिला ने पिछले साल अगस्त और अक्टूबर के बीच RTGS और डिमांड ड्राफ्ट के ज़रिए 12.04 करोड़ रुपये ट्रांसफर कर दिए। बाद में, जब बैंक ने पुष्टि की कि सभी दस्तावेज़ जाली थे, तब पीड़िता को एहसास हुआ कि ऐसा कोई फ्लैट उपलब्ध ही नहीं था। फिर इस साल 13 जून को शिकायत दर्ज की गई।
क्राइम ब्रांच ने की जांच
दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच के इंटर स्टेट सेल ने मामला अपने हाथ में लिया और पैसे का पता लगाया। बैंक स्टेटमेंट से पता चला कि इतनी बड़ी रकम मोहित गोगिया नाम की एक प्रोप्राइटरशिप फर्म के अकाउंट में जमा की गई थी। इसके बाद दिल्ली-एनसीआर, भोपाल और मुंबई में बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चलाया गया। लेकिन तब तक आरोपी अंडरग्राउंड हो चुका था।
इस मामले में सफलता टेक्निकल सर्विलांस और मैनुअल इंटेलिजेंस से मिली। इस साल 22 नवंबर को इंस्पेक्टर सतेंद्र पूनिया और सोहन लाल के नेतृत्व में एक स्पेशल टीम ने गोगिया को तब ट्रैक किया जब वह मुंबई से उत्तराखंड भाग रहा था। उसे ऋषिकेश-देहरादून रोड पर डोईवाला के पास पकड़ा गया।
चार और लोग थे शामिल
गोगिया ने चार और लोगों के शामिल होने का खुलासा किया, जिन्हें बाद में गिरफ्तार कर लिया गया। प्रॉपर्टी डीलर विशाल मल्होत्रा (42) ने धोखाधड़ी के पैसे लेने और ट्रांसफर करने के लिए HDFC बैंक में एक करंट अकाउंट खोला था। उसने कमीशन के बदले राम सिंह को देने के लिए बड़ी रकम निकाली थी। आपराधिक रिकॉर्ड वाले सचिन गुलाटी (40) पैसे को घुमाने के लिए अपने IDFC फर्स्ट बैंक अकाउंट का इस्तेमाल किया।
शिकायतकर्ता से गोगिया को मिलवाने और डील करवाने वाले पाठक को भी उसका हिस्सा मिल गया था। भरत छाबड़ा (33) एक टेक्निकल एक्सपर्ट के तौर पर काम करता था, जिसने जाली दस्तावेज़ बनाने में मदद की।
फर्जी प्रॉपर्टी बताकर फ्रॉड
पुलिस के अनुसार, गोगिया विवादित, गिरवी रखी हुई या फर्जी प्रॉपर्टीज़ की पहचान करता था, फिर छाबड़ा के लैपटॉप पर नकली टाइटल दस्तावेज़ बनाता था। उन्होंने लोगों से पैसे ठगे, जिन्हें कई बैंक खातों, फर्मों और लोगों के ज़रिए घुमाया गया ताकि पैसे का पता न चल सके। ये पैसे आखिर में राम सिंह की बाबाजी फाइनेंस में गए, जहां उन्हें ऊंची ब्याज दरों पर सर्कुलेट किया गया। गोगिया 40 प्रतिशत मुनाफा रखता था जबकि राम सिंह 60 प्रतिशत रखता था।
पुलिस रिकॉर्ड से पता चलता है कि गोगिया दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश और गोवा में 16 मामलों में वांटेड है, जो 2019 से जुड़े हैं और सभी में जाली गिरवी और नीलामी दस्तावेज़ों के साथ इसी तरह के धोखे शामिल हैं।
200 करोड़ से ज्यादा की ठगी
अब तक, आरोपियों ने कई राज्यों में लोगों से कुल 200 करोड़ रुपये से ज़्यादा की ठगी की है। इस मामले में मास्टरमाइंड गोगिया समेत पांच मुख्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन राम सिंह उर्फ बाबाजी समेत अन्य लोगों की तलाश जारी है।
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डीसीपी गौतम ने कहा, 'आरोपियों ने पीड़ितों को बहुत कम कीमत पर प्रीमियम प्रॉपर्टी देने का लालच दिया, जाली दस्तावेज़, नकली अलॉटमेंट लेटर और फर्जी रजिस्ट्रेशन ड्राफ्ट बनाए।'
पुलिस ने ऐसे पैसों से खरीदी गई दो कारें ज़ब्त की हैं, जिनका इस्तेमाल राम सिंह कर रहा था। जुड़े हुए बैंक खातों पर रोक लगा दी गई है और जांचकर्ता इस देशव्यापी नेटवर्क में कई और लाभार्थियों की पहचान कर रहे हैं।