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BJP मंत्री खुद बोले कि तीसरी बार नहीं लड़ूंगा चुनाव, कहा- यह 'श्रापित भूमि' है

हस्तिनापुर से बीजेपी विधायक और जल शक्ति राज्यमंत्री दिनेश खटीक ने पौराणिक कथाओं का हवाला देते हुए कहा हस्तिनापुर श्रापित भूमि है।

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दिनेश खटीक । Photo Credit: SOcial Media

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उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। योगी सरकार में जल शक्ति राज्यमंत्री और मेरठ की हस्तिनापुर विधानसभा सीट से दो बार के विधायक दिनेश खटीक ने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि वे अब इस सीट से तीसरी बार चुनाव नहीं लड़ेंगे। एक सार्वजनिक कार्यक्रम में मंच से उन्होंने हस्तिनापुर को 'श्रापित भूमि' करार दिया और महाभारत काल की पौराणिक कथाओं का हवाला देते हुए अपनी अंतरात्मा की आवाज का जिक्र किया।

 

खटीक ने कहा कि उन्होंने पुराण और भागवत जैसे ग्रंथ पढ़े हैं, जिनसे उन्हें यह एहसास हुआ कि हस्तिनापुर की धरती पर द्रौपदी का श्राप है। उनका मानना है कि इस सीट से कोई विधायक लगातार तीसरी बार नहीं जीत पाता। हालांकि, खुद खटीक ने 2017 और 2022 में यहां से जीत हासिल कर एक पुरानी धारणा को तोड़ा था, जहां माना जाता था कि यहां से कोई दोबारा विधायक नहीं बनता। अब वे खुद इस सीट से दूरी बनाने की बात कर रहे हैं।

 

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आचार्य प्रमोद भी थे मौजूद

यह बयान मेरठ के एक निजी कॉलेज के वार्षिकोत्सव में आया, जहां कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम भी मौजूद थे। खटीक ने क्षेत्र के विकास पर भी निराशा जताई और कहा कि नौ वर्षों में यहां रोजगार के अवसर नहीं बढ़े, कोई बड़ा उद्योग नहीं आया और युवा मजबूरी में काम कर रहे हैं।

 

दिनेश खटीक की राजनीतिक यात्रा संघ की जड़ों से जुड़ी हुई है। वे बीजेपी के उस प्रयोग का हिस्सा रहे, जिसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलित नेतृत्व को मजबूत कर सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश की गई। 2017 में उनकी जीत ने पार्टी के लिए नया रास्ता खोला था। 2021 में मंत्री बनने के बाद 2022 में कुछ असंतोष की खबरें भी सामने आई थीं, लेकिन अब यह घोषणा उनके करियर में एक नया मोड़ लगती है।

आरक्षित सीट है हस्तिनापुर

हस्तिनापुर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है, जहां गुर्जर, दलित और मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। विपक्षी दल यहां गुर्जर लॉबी को साधने में सक्रिय रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी यहां नए चेहरे पर दांव लगा सकती है।

 

खटीक का यह कदम न तो पार्टी से बगावत लगता है और न ही पूरी तरह भावनात्मक। यह एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिसमें वे मंत्रिपद को मजबूत रखते हुए भविष्य की नई जिम्मेदारी की ओर बढ़ें। अब सबकी नजर इस पर है कि हस्तिनापुर से बीजेपी का अगला उम्मीदवार कौन होगा और क्या इस सीट से जुड़ा 'जिसकी जीत, उसी की सरकार' वाला मिथक कायम रहेगा।

 

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यह घोषणा पंचायत चुनावों से ठीक पहले आई है, जिससे स्थानीय स्तर पर भी चर्चाएं तेज हो गई हैं। खटीक के समर्थक उनके इस फैसले को सम्मान देते हुए देख रहे हैं, जबकि विरोधी इसे राजनीतिक दबाव की निशानी बता रहे हैं। 

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