केरल रैगिंग की ऐसी पहली घटना नहीं, अमन काचरू केस से हिल गया था देश
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• THIRUVANANTHAPURAM 14 Feb 2025, (अपडेटेड 14 Feb 2025, 6:53 PM IST)
रैगिंग मजाक नहीं, बल्कि एक अपराध है। 2009 में अमन काचरू रैगिंग केस के बावजूद देश में अभी भी कई छात्र रैगिंग के शिकार हो रहे हैं। आखिर भारत में रैगिंर को लेकर कितने सख्त कानून है?

रैगिंग कानून, Photo Credit: AI Generative
केरल के कोट्टायम स्थित सरकारी नर्सिंग कॉलेज में रैगिंग की एक भयावह घटना सामने आई है। थर्ड ईयर के पांच छात्रों ने फर्स्ट ईयर के एक छात्र के साथ क्रूरता की, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस वीडियो में पीड़ित छात्र को बिस्तर पर बांधा हुआ है और चेहरे पर क्रीम लगाकर उसके शरीर पर ज्योमेट्री डिवाइडर चुभा रहे है। इसके अलावा उसके गुप्तांगों पर डंबल रखकर परेशान कर रहे है। इस दौरान पीड़ित दर्द से कराहता रहा, जबकि आरोपी हंसते हुए उस छात्र के साथ ऐसी क्रूरता करते रहे।
पुलिस ने इस मामले में सैमुअल जॉनसन (20), राहुल राज (22), जीवा (18), रिजिल जीत (20), और विवेक (21) नामक पांच छात्रों को गिरफ्तार किया है। उन्हें दो दिन की पुलिस रिमांड पर भेजा गया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, यह रैगिंग नवंबर 2024 से शुरू हुई और लगभग तीन महीने तक चली। आरोप है कि सीनियर छात्र जूनियर्स से शराब खरीदने के लिए पैसे वसूलते थे, और न देने पर उनकी पिटाई करते थे। एक पीड़ित छात्र ने अपने पिता को इस बारे में बताया, जिसके बाद पुलिस में शिकायत दर्ज की गई।
इस घटना के बाद कॉलेज प्रशासन और हॉस्टल वार्डन की भूमिका की भी जांच की जा रही है, ताकि यह पता चल सके कि उन्होंने छात्रों की सुरक्षा में कोई लापरवाही तो नहीं बरती। रैगिंग के इस गंभीर मामले ने एक बार फिर से शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों की सुरक्षा और रैगिंग रोकने के उपायों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या देश में रैगिंग को लेकर इतने ढीले कानून है कि 2009 के अमन काचरू केस के बावजूद कुछ भी नहीं बदला? रैगिंग को लेकर भारत में कितने सख्त कानून है इसको जानने से पहले जानें 2009 का वो केस जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। दरअसल, केरल का यह विवाद अमन काचरू केस से हूबहू मेल खाती है।
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2009 अमन काचरू केस
अमन काचरू केस भारत में रैगिंग के सबसे कुख्यात मामलों में से एक था, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया था। करीब 17 साल पहले हिमाचल प्रदेश के एक छात्र की मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को स्वत: संज्ञान लिया था। रैगिंग टू मर्डर अमन काचरू केस के बाद ही देश में रैगिंग विरोधी कानूनों को सख्त बनाने की दिशा में बड़ा बदलाव लाया गया। हालांकि, केरल में जो हुआ उससे अब रैगिंग के इस कानून पर भी सवाल खड़े हो रहे है।
अमन काचरू केस (2009), पूरी घटना जानें
19 साल का अमन काचरू मेडिकल का स्टूडेंट था, जो हिमाचल प्रदेश के टांडा मेडिकल कॉलेज में MBBS फर्स्ट ईयर का छात्र था। 7 मार्च, 2009 को चार सीनियर छात्रों ने नशे की हालत में उसके और कुछ अन्य छात्रों के साथ रैगिंग की। इस दौरान अमन को बुरी तरह पीटा गया, जिससे उसे गंभीर चोटें आईं। मारपीट के अगले दिन, 8 मार्च 2009 को अमन काचरू की मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि उसकी मौत सिर में गंभीर चोटों के कारण हुई थी।
चार सीनियर छात्र
अजित सिंह
नवीन वर्मा
अभिमन्यु सिंह
विशाल वर्मा
इन सभी को गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में अदालत ने उन्हें दोषी करार देते हुए सजा सुनाई गई।
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सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान में लिया मामला
अमन काचरू की मौत के बाद भारत में रैगिंग के खिलाफ कड़े कानून लागू किए गए। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कॉलेजों में रैगिंग को रोकने के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए। इसके अलावा यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन (UGC) ने अमन काचरू रैगिंग विरोधी गाइडलाइंस लागू किए। इसके तहत हर एक कॉलेज में एंटी-रैगिंग कमेटी और हेल्पलाइन अनिवार्य कर दिए गए। वहीं, भारत सरकार ने 24x7 एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन (1800-180-5522) शुरू की, जहां छात्र अपनी पहचान छुपाकर शिकायत कर सकते हैं।
2009 केस के बाद 2025 का केरल केस, क्या बदला अबतक?
अमन काचरू केस में चारों आरोपियों को 4 साल की सजा हुई लेकिन उन्होंने 2014 में समय से पहले रिहाई पा ली। हालांकि, अमन काचरू का मामला आज भी रैगिंग के खिलाफ एक महत्वपूर्ण उदाहरण बना हुआ है। अमन काचरू की दर्दनाक मौत ने भारत में रैगिंग के प्रति लोगों की सोच बदली और सख्त कानूनों की नींव रखी। इसके बावजूद, हालिया केरल रैगिंग केस जैसे मामले यह दर्शाते हैं कि रैगिंग को खत्म करने के लिए अभी भी और सख्ती की जरूरत है। ऐसे में भारत में रैगिंग को लेकर क्या कनून है, इस पर भी जरा गौर करें...
भारत में रैगिंग को रोकने के लिए कानूनी प्रावधान काफी सख्त हैं। सुप्रीम कोर्ट, यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन (UGC), और कई राज्यों की सरकारों ने इसे खत्म करने के लिए कड़े कानून बनाए हैं। जैसे, रैगिंग को आपराधिक अपराध घोषित किया गया। सभी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में एंटी-रैगिंग कमेटी और स्क्वॉड बनाना अनिवार्य किया गया। वहीं, UGC ने 2009 में "अमन काचरू केस" के बाद रैगिंग को रोकने के लिए सख्त नियम लागू किए जैसे रैगिंग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया गया। सभी शैक्षणिक संस्थानों को एंटी-रैगिंग कमेटी और हेल्पलाइन नंबर रखना अनिवार्य किया गया। कॉलेजों को छात्रों और अभिभावकों से एंटी-रैगिंग अंडरटेकिंग लेना अनिवार्य कर दिया गया।
हालांकि, कुछ राज्यों ने अपने अलग कानून बनाए हैं जैसे -
- केरल प्रोहेबिशन ऑफ रैगिंग एक्ट, 1998
- तमिलनाडु प्रोहेबिशन ऑफ रैगिंग एक्ट, 1997
- महाराष्ट्र रैगिंग प्रतिबंध अधिनियम, 1999
- भारत में रैगिंग को लेकर होने चाहिए सख्त कानून
रैगिंग मजाक नहीं, कानून का सख्त होना जरूरी क्यों?
रैगिंग मजाक नहीं, बल्कि एक अपराध है। इसे जड़ से खत्म करने के लिए और भी सख्त कानून और उनका कड़ाई से पालन जरूरी है। केवल कानून बनाने से कुछ नहीं होगा, जब तक कॉलेज प्रशासन और समाज इसे गंभीरता से नहीं लेता, क्योंकि मौजूदा कानूनों का सख्ती से पालन नहीं हो रहा। शिकायत करने पर पीड़ित को डराया जाता है। मौजूदा सजा पर्याप्त नहीं है और केरल में जो हुआ उससे यह समझ आ गया है कि कई कॉलेजों में अब भी रैगिंग जारी है और ऐसे में कानून का सख्त होना जरूरी क्यों है?
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