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अधिकारियों के खिलाफ लामबंद क्यों हो रहे UP के बड़े नेता? माजरा क्या है

उत्तर प्रदेश में अधिकारियों द्वारा नेताओं, विधायकों और सांसदो का फोन नहीं उठाने का मुद्दा बड़ा होता जा रहा है। इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से लेकर विधानसभा अध्यक्ष तक जा पहुंची है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर। Photo Credit- AI Generated Image

काफी समय से आरोप लगते रहे हैं कि योगी सरकार में अधिकारी बेलगाम हो गए हैं। उत्तर प्रदेश के सरकारी अधिकारी विधायक, सांसद और मंत्री की नहीं सुनते। आरोप यह भी हैं कि यूपी के शीर्ष के अधिकारी विधायक-सांसद और पूर्व मंत्री तक के फोन नहीं उठाते हैं। इसकी बागनी कई बार देखने को भी मिली है। कई विधायकों ने इसको लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास शिकायत तक कर दी है, मगर स्थिती जस की तस बनी हुई है। अधिकारियों द्वारा फोन ना उठाना अब ट्रेंड सा बन गया है, जो आए दिन सोशल मीडिया पर दिखाई दे जाता है।

 

यह मामला यहां तक पहुंच गया है कि मुख्यमंत्री से होते हुए विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना और योगी सरकार में मंत्रियों के पास शिकायतें पहुंचने लगी हैं। धीरे-धीरे ही सही लेकिन अधिकारियों के फोन ना उठाने का मुद्दा अब बड़ा होने लगा है। देखने को मिला है कि इससे सिर्फ विपक्ष के नेता ही नहीं परेशान हैं बल्कि सत्ताधारी बीजेपी के विधायक भी इस बात को लेकर नाराज रहते हैं कि जब वह क्षेत्र की समस्या को लेकर अधिकारी के पास फोन करते हैं तो उनका फोन नहीं उठता। ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर यह पूरा मामला है क्या... 

 

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शिवपाल यादव का फोन प्रकरण

उत्तर प्रदेश की सियासत में शिवपाल यादव एक मंझे हुए दिग्गज नेता माने जाते हैं। वह यूपी के नेताओं की लिस्ट में बड़ा नाम हैं। आम जनता से लेकर सरकार में बैठे मंत्री और बड़े अधिकारी उनके नाम से वाकिफ हैं। शिवपाल यादव समाजवादी सरकार कद्दावर मंत्री रहे हैं, वह 7 बार के विधायक हैं। मंत्री रहने उनके एक फोन से अधिकारी अपनी कुर्सी पर खड़े हो जाते थे। मगर, अब शिवपाल विपक्ष के नेता और विधायक हैं। उन्होंने पिछले दिनों एक मामले को लेकर बुलंदशहर की डीएम श्रुति को फोन किया था। डीएम श्रुति ने शिवपाल का फोन नहीं उठाया। इसके बाद शिवपाल यादव ने कई बार डीएम को फोन किया लेकिन अधिकारी ने उनका फोन नहीं रिसीव किया। 

 

विधायक शिवपाल यादव ने बुलंदशहर डीएम के सीयूजी, उनके पीए और लैंडलाइन नंबर पर फोन किया था। शिवपाल इस बात से नाराज हो गए। उन्होंने नाराज होकर विधानसभा सत्र के दौरान अध्यक्ष सतीश महाना से इसकी शिकायत की थी। मामला शिवपाल यादव से जुड़ा होने के चलते सतीश महाना ने बुलंदशहर डीएम को नोटिस जारी कर दिया। नोटिस मिलने के बाद डीएम श्रुति ने खुद ही फोन करके सपा विधायक से बात की और फोन ना उठने के लिए खेद जताया था।

मंत्री राकेश सचान का रियलिटी चेक

हद तो तब हो गई जब योगी सरकार में कैबिनेट खादी एवं ग्रामोद्योग, रेशम उद्योग, हथकरघा एवं वस्त्रोद्योग मंत्री राकेश सचान सोमवार (22 सितंबर) को रायबरेली पहुंचे। सचान रायबरेली के प्रभारी मंत्री हैं। वह जिले में अपने लोगों के साथ बैठक कर रहे थे। इस दौरान उनके साथ स्थानीय पत्रकार भी मौजूद थे। वहां मौजूद पत्रकारों ने वही समस्या कि जिले के बड़े अधिकारी उनका फोन नहीं उठाते। मंत्री जी शिकायत सुनने के बाद सोच में पड़ गए।

 

एक के बाद एक कई पत्रकारों ने अधिकारियों द्वारा उनका फोन ना उठाए जाने की शिकायत की। आरोप था कि रायबरेली के CDO अर्पित उपाध्याय और DFO मयंक अग्रवाल फोन नहीं उठाते और न ही आसानी से लोगों से मिलते हैं।

 

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मंत्री ने खुद ही फोन मिलाया, नहीं उठाया

इसपर राकेश सचान ने रियलिटी चेक करने के लिए फौरन CDO और DFO को खुद ही फोन मिला दिया। दोनों अफसरों का CUG फोन रिसीव नहीं हुआ। राकेश सचान के बगल में बैठे बीजेपी जिलाध्यक्ष बुद्धिलाल पासी ने भी अफसरों को फोन मिलाया। लेकिन किसी ने भी फोन नहीं उठाया। इसके बाद मंत्री राकेश सचान ने मुस्कुराते हुए बोले अपने जिला अध्यक्ष से कहा कि 'यह तो बहुत गंभीर बात है। उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।'

 

 

हालांकि, बाद में जिले के डीएफओ ने मंत्री जी को कॉल बैक किया तो राकेश सचान ने उनके भविष्य में सभी को फोन उठाने की बात कही और हिदायत दी। मगर, कैमरों के सामने ही यह तय हो गया कि सच में यूपी के अधिकारी इन दिनों किसी का फोन उठाने से कतराने लगे हैं। 

बीजेपी के विधायकों का ही नहीं उठता फोन

यूपी सरकार में मंत्री दानिश आजाद अंसारी भी ललितपुर के अधिकारी द्वारा फोन ना उठाने की शिकायत कर चुके हैं। ललितपुर सदर के बीजेपी विधायक ने भी इसी दौरान अधिकारी के फोन ना उठाने की बात कही थी। बुलंदशहर के सिकंदराबाद से बीजेपी विधायक ठाकुर लक्ष्मीराज सिंह भी सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि विद्युत विभाग के अधिकारी-कर्मचारी फोन नहीं उठाते हैं। इससे नाराज बीजेपी विधायक ने प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर मामले की जानकारी देकर कार्रवाई की मांग की थी। 

 

पिछले साल गाजियाबाद के लोनी से बीजेपी विधायक नंद किशोर गुर्जन ने भी अफसरशाही को लेकर अपनी नाराजगी जताई थी। उन्होंने कहा था कि अधिकारी बात नहीं सुनते हैं, जिससे बीजेपी सरकार की छवि खराब हो रही है। 

सरकार जारी कर चुकी है सख्त आदेश

दरअसल ऐसा नहीं है कि अधिकारियों के मनमानी की शिकायतें सरकार तर नहीं पहुंचती हैं। इस तरह की बार-बार शिकायत आने के बाद इसी साल की शुरुआत में योगी सरकार की तरफ से यूपी के प्रमुख सचिव संसदीय कार्य जेपी सिंह ने सभी अपर मुख्य सचिव, डीजीपी, मंडलायुक्त एवं डीएम को एक आदेश जारी किया था।

 

इस आदेश में कहा गया था कि सांसदों और  विधायकों के प्रति शिष्टाचार, प्रोटोकॉल एवं सौजन्य प्रदर्शन को लेकर कई शासनादेश जारी किए जा चुके हैं। अगर अधिकारी विधायक और सांसदों का फोन नहीं उठाते हैं तो ऐसे अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनिक कार्यवही की जाएगी। इन आदेशों के बावजूद भी विधायकों की शिकायतें बंद नहीं हुई हैं।

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