भारत के कई राज्यों में शीतलहर को लेकर अलर्ट जारी किया गया है। मौसम विभाग ने पहले ही पहाड़ी राज्यों के ऊंचे इलाकों में बर्फबारी की संभावना जताई थी, जो अब शुरू हो चुकी है। कश्मीर के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फ गिरने लगी है। आज यानी 21 दिसंबर से जम्मू-कश्मीर में चिल्ला-ए-कलां की शुरुआत हो गई है, जिसके साथ घाटी में 40 दिनों की सबसे कड़ी सर्दी का दौर शुरू होता है। यह घाटी के लोगों और पर्यटकों के लिए खुशी की खबर मानी जा रही है।
जम्मू-कश्मीर और उत्तर भारत में मौसम में आए इस अचानक बदलाव की वजह पश्चिमी विक्षोभ है। इसके सक्रिय होने से इस मौसम की पहली बर्फबारी देखने को मिली है। वहीं पूरे उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड, घना कोहरा और शीतलहर के कारण लोगों की परेशानियां बढ़ गई हैं।
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गुलमर्ग में बर्फबारी
अधिकारियों ने बताया कि कश्मीर के बारामूला जिले में स्थित गुलमर्ग में बर्फबारी हुई जहां लगभग 2 इंच बर्फ जमा हो गई है। साथ ही श्रीनगर-कारगिल हाइवे पर सोनमर्ग में रविवार (21 दिसंबर )सुबह बर्फबारी शुरू हुई जो आखिरी सूचना मिलने तक जारी थी।

नियंत्रण रेखा के पास तंगधार को मुख्य कश्मीर से जोड़ने वाले साधना टॉप पर बीते रात से अब तक लगातार बर्फबारी हो रही है जिससे लगभग 6 इंच बर्फ जमा हो गई। जम्मू-कश्मीर में बर्फबारी के साथ घाटी के अन्य हिस्सों में रातभर बारिश हुई जो रूक-रूक कर जारी रहेगी। मौसम विभाग ने अगले दो दिन घाटी में बर्फबारी और बारिश में बढ़ोतरी का पूर्वानुमान जताया है।
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चिल्ला-ए-कलां क्या है?
चिल्ला-ए-कलां कश्मीर घाटी में कड़ाके की ठंड की उस 40 दिनों की अवधि को कहा जाता है, जो सबसे भीषण होती है। इत्तेफाक से, यह हर साल 21 दिसंबर से शुरू होकर 31 जनवरी तक चलती है। इस दौरान डल झील और अन्य जलाशय जमने लगते हैं। हालत ये हो जाती है कि भीषण ठंड के कारण घरों में नलों के अंदर का पानी जम जाता है। इस समय होने वाली बर्फबारी 'स्थायी' होती है। यानी यह जल्दी पिघलती नहीं है और पहाड़ों पर ग्लेशियर बनाने में मदद करती है, जो साल भर पानी का स्रोत बनते हैं।
खास बात है कि कश्मीरी लोग लंबे ऊनी कपड़े पहनते हैं जिन्हें 'फेरन' कहा जाता है। ठंड से लड़ने के लिए लोग मिट्टी के बर्तन में दहकते कोयले रखकर उसे एक बेंत की टोकरी में रखते हैं, जिसे 'कांगड़ी' कहते हैं। इसे फेरन के अंदर रखकर शरीर को गर्म रखा जाता है। चिल्लई कलां को केवल मुश्किल समय नहीं माना जाता, बल्कि कश्मीरी संस्कृति में इसका जश्न भी मनाया जाता है। माना जाता है कि अगर इस दौरान अच्छी बर्फबारी हो, तो आने वाली फसल और पर्यावरण के लिए बहुत शुभ होता है।