बच्चे को उल्टा लटकाकर पीटा, नियमों के मुताबिक टीचर ऐसे मार सकते हैं?
हरियाणा के पानीपत में दूसरी कक्षा के एक बच्चे के साथ होम वर्क ना करने के कारण क्रूरता का मामला सामने आया है। आरोपी टीचर और ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया गया है।

बच्चे के साथ क्रूरता, Photo Credit: Social Media
हरियाणा के पानीपत से एक परेशान करने वाला वीडियो सामने आया है। पानीपत के एक स्कूल में दूसरी क्लास के बच्चे को एक टीचर ने इसलिए पीटा क्योंकि उसने अपना होमवर्क नहीं किया था। इसके बाद टीचर ने स्कूल के ड्राइवर को बुलाकर बच्चे को ऐसी सजा देने के लिए कहा जो वह जिंदगीभर याद रखे। अब बच्चे को कोई एक-दो चांटा नहीं लगाया गया बल्कि उसे खिड़की से रस्सी बांधकर उल्टा लटका दिया। उल्टा लटकाकर फिर से बच्चे को थप्पड़ मारे गए।
यह घटना पानीपत के जटल रोड पर बने पब्लिक स्कूल की है। बस ड्राइवर ने बड़ी बेरहमी से बच्चे को उल्टा लटकाकर थप्पड़ मारे। इतना ही नहीं ड्राइवर ने अपने दोस्तों को वीडियो कॉल करके यह सब दिखाया भी और फिर सोशल मीडिया पर भी वीडियो डाल दिया। वीडियो वायरल होने के बाद बवाल हो रहा है और स्कूल में बच्चों की पिटाई को लेकर नियमों पर चर्चा शुरू हो गई है।
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शर्मनाक!
— Rahul Chauhan (@journorahull) September 29, 2025
*7 साल के बच्चे को होमवर्क न करने पर रस्सी से खिड़की पर उल्टा लटकाकर बेरहमी से पीटा*
हरियाणा के पानीपत में शिक्षा के नाम पर हैवानियत
-प्राइवेट स्कूल ड्राइवर ने 7 साल के बच्चे को होमवर्क न करने पर रस्सी से खिड़की पर उल्टा लटकाकर बेरहमी से पीटा, वीडियो बना वायरल… pic.twitter.com/6N8Y0MnUzM
आरोपी टीचर और ड्राइवर गिरफ्तार
टीचर ने क्लास में बाकी बच्चों के सामने ही उस बच्चे को थप्पड़ मारती हैं। इसके बाद वह एक अन्य बच्चे को भी थप्पड़ मारती हैं। स्कूल पर आरोप है कि स्कूल में कुछ बच्चों को टॉयलेट साफ करने की सजा भी दी गई थी। पीड़ित परिवार की शिकायत पर पुलिस ने FIR दर्ज कर ली और आरोपी महिला टीचर और ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस मामले की जांच कर रही है।
बच्चों की पिटाई से जुड़े नियम
भारत में बच्चों को शारीरिक दंड देना अपराध माना गया है। इससे बच्चों पर बुरा असर पड़ता है। इसको लेकर कई नियम, कोर्ट के फैसले, बोर्ड के दिशानिर्देश और संसद और राज्य विधानसभाओं की ओर से बनाए गए कानून हैं। समय-समय पर स्कूल में बच्चों के साथ होने वाली क्रूरता को लेकर नियम बदलते रहे हैं। पहली बार इसे लेकर नियम कब बना इसके बारे में दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि बच्चों की पिटाई पर रोक पहले बयानों के जरिए यानी मौखिक आदेश देकर लगाई गई और धीरे-धीरे इसे कानून में बदल दिया गया। हालांकि, साल 1992 में संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि (UNCRC) को इस दिशा में अहम कदम माना गया।
संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि (UNCRC)
भारत ने 11 दिसंबर 1992 को बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनी UNCRC की पुष्टि की। इस संधि के अनुच्छेद 19, 28 और 37 में स्पष्ट रूप से शारीरिक दंड पर बैन लगा दिया गया था। यह संधि भारत पर बाध्य नहीं थी लेकिन इस संधि ने भारत में नीतिगत बदलावों की शुरुआत की। इसमें कहा गया था कि राज्य को बच्चों को शारीरिक या मानसिक हिंसा, चोट, दुर्व्यवहार, उपेक्षा, दुर्व्यवस्था या शोषण से बचाना चाहिए, जिसमें स्कूलों में शिक्षकों की ओर से किया जाने वाला दुर्व्यवहार भी शामिल है।
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दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला
दिसंबर 2000 में दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली स्कूल एजुकेशन एक्ट 1973 के उन प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित कर दिया जो स्कूलों में पिटाई की अनुमति देते थे। यह मामला पैरेंट्स फोरम फॉर मीनिंगफुल एजुकेशन की ओर से दायर की गई PIL पर दिया गया था। कोर्ट ने कहा था कि पिटाई संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन है, जो गरिमा, स्वतंत्रता और क्रूरता से मुक्ति का अधिकार देता है। कोर्ट ने कहा था कि यह क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक है, जो बच्चे के शरीर और मन को नुकसान पहुंचाता है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि बच्चों को स्कूलों में पिटाई से मुक्त वातावरण में शिक्षा दी जाए, जहां डर ना हो।
कोर्ट का यही फैसला साल 2009 में आए शिक्षा का अधिकार कानून का अधिकार कानून का आधार बना। इसी साल आंध्र प्रदेश स्कूल एजुकेशन रूल्स 1966 के नियम 122 में संशोधन कर स्कूलों में पिटाई को बैन कर दिया गया।
दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के बाद कई राज्यों ने इस संबंध में कानून बनाए। गोवा चिल्ड्रन एक्ट 2003 के जरिए राज्य के सभी स्कूलों में पिटाई पर बैन लगा दिया गया था। तमिलनाडु एजुकेशन रूल्स के नियम 51 में संशोधन किया गया और बच्चों की पिटाई को बैन किया गया। नेशनल चार्टर फॉर चिल्ड्रन 2003 के जरिए भी बच्चों की पिटाई को हानिकारक बताया गया।
कलकत्ता हाई कोर्ट का फैसला
कलकत्ता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के राज्य स्कूलों में केनिंग यानी चाबुक मारने को अवैध घोषित कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 और UNCRC का उल्लंघन है। कोर्ट ने इस संबंध में राज्य को दिशा-निर्देश जारी करने का आदेश दिया। इसके बाद साल 2006 में नेशनल प्लान ऑफ एक्शन फॉर चिल्ड्रन के जरिए भी पिटाई प्रथा को खत्म करने पर जोर दिया गया।
बच्चों की पिटाई के संबंध में साल 2007 में एक अहम बदलाव हुआ। नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) ने गाइडलाइंस फॉर एलिमिनेटिंग कॉर्पोरल पनिशमेंट इन स्कूल्स जारी की। जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) रूल्स 2007 के जरिए स्कूलों में बच्चों की पिटाई पर बैन लगाया गया।
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राइट टू एजुकेशन (RTE) ऐक्ट
बच्चों के साथ स्कूलों में होने वाली हिंसा रोकने के लिए साल 2009 में आए राइट टू एजुकेशन ऐक्ट में विशेष प्रावधान किए गए। 26 अगस्त 2009 को RTE ऐक्ट पारित हुआ जो 6 से 14 साल के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करता है। इस ऐक्ट के अनुच्छेद 17 (1) के अनुसार, किसी भी बच्चे को शारीरिक दंड या मानसिक उत्पीड़न नहीं दिया जाएगा। इसी ऐक्ट के अनुच्छेद 17 (2) में अगर कोई बच्चों को शारीरिक दंड देता है तो सेवा नियमों के तहत अनुशासनात्मक कार्वाई की जाएगी। यह पहला ऐसा कानून था जो राष्ट्रीय स्तर पर बाध्यकारी था। RTE नियमों की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिटाई पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया।
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