बेगूसराय जिले को बिहार की औद्योगिक और वित्तीय राजधानी कहा जाता है। मिथिला क्षेत्र में आने वाला यह जिला गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर बसा हुआ है। 7 विधानसभा सीटों वाला यह जिला आज भी वामपंथ राजनीति का गढ़ है। आरजेडी के साथ मिलकर भाकपा माले यहां काफी मजबूत हैं, जिसकी वजह से एनडीए की बीजेपी-जेडीयू के सामने चुनौती पेश होती है। शहरी क्षेत्रों में औद्योगिक इकाईयों के अलावा यहां ग्रामीण क्षेत्र में लोग खेती-किसानी करते हैं। जिले की अर्थव्यवस्था मूल रूप से कृषि पर निर्भर है। जिले की अर्थव्यवस्था में उद्योग का भी योगदान है। धान, गेहूं, उड़द, अरहर, मसूर आदि यहां की प्रमख फसलें हैं। इसके अलावा तंबाकू, जूट आलू, मिर्च की खेती भी यहां बड़े पैमाने पर होती है। यहां इंडियन ऑयल कारपोरेशन लिमिटेड की रिफाइनरी, बरौली थर्मल पावर और सुधा डेयरी प्रमुख उद्योग हैं। इसके अलावा कई छोटे-बड़े उद्योग यहां हैं।
जिले का इतिहास
बेगूसराय को साल 1870 में मुंगेर जिले के उपविभाग के रूप में स्थापित किया गया था। बाद में 1972 में बेगूसराय को एक स्वतंत्र जिला बना दिया गया। बेगूसराय के इतिहास की बात करें तो इसका जिक्र प्राचीन काल में 'अंगुत्तराप' के रूप में मिलता है। बेगूसराय का एक समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल है, जिसमें कई हजार साल पुरानी धरोहरें शामिल हैं। 12वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत के आने के साथ ही बेगूसराय मुस्लिम शासकों के अधीन आया। इस काल में यहां इस्लामी शिक्षा और संस्कृति का प्रभाव पड़ा, लेकिन प्राचीन हिंदू-बौद्ध परंपराएं जस की तस बनी रहीं। मिथिला क्षेत्र के रूप में, यह विद्वानों और कलाकारों का केंद्र रहा, जहां मैथिली भाषा और संस्कृति फली-फूली।
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यह राष्ट्रकवि दिनकर का जिला है। वह यहां पैदा हुए थे। जिले में सिमरिया जैसा तीर्थ स्थान है। जिले में ही विशाल कावर झील है, जहां हर साल लाखों की तादाद में प्रवासी पक्षियां आते हैं। इसे मिथिला का हिस्सा माना जाता है। खास बात यह कि इस जिले की सीमाएं राजधानी पटना से जुड़ती हैं। इसे वामपंथी राजनीति का बड़ा केंद्र माना जाता है।
राजनीतिक समीकरण
इस जिले की 7 विधानसभा सीटों पर आरजेडी और भाकपा माले की मजबूत पकड़ है। सात विधानसभा सीटों में से महागठबंधन के हिस्से में 4 सीटें हैं। इसके अलावा 3 सीटें एनडीए के पास हैं। जिन तीनों सीटों को एनडीए ने जीता है वह काफी कम अंतर से जीती हुई हैं। इसमें से चेरिया-बरियारपुर और साहेबपुर कमाल राष्ट्रीय जनता दल। तेघरा और बखरी विधानसभा पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने जीत दर्ज की थी। वहीं, बछवाड़ा और बेगूसराय विधानसभा सीटें बीजेपी ने मामूली अंतर से जीती थी, जबकि मटिहानी सीट लोजपा के हिस्से में आई थी।
साहेबपुर कमाल सीट पर आरजेडी लगातार तीन बार, तेघरा और बखरी में दो बार से महागठबंधन जीतती आ रही हैं। वहीं, बेगूसराय लोकसभा सीट की बात करें तो यह 2014 के बाद से बीजेपी का मजबूत किला बन चुका है। 2014 में यहां से भोला सिंह और 2019 और 2024 में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह सांसदी का चुनाव जीते हैं। इससे पहले बेगूसराय 2004 और 2009 में जेडीयू के खाते में थी। मगर, जिले की 7 विधानसभाओं में महागठबंधन की पकड़ मजबूत है।
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विधानसभा सीटें:-
चेरिया-बरियारपुर: साल 1977 में अस्तिव में आई चेरिया-बरियारपुर सीट पर सबसे पहले कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद के चुनावों में कांग्रेस के अलावा सीपीआई, जनता दल, आरजेडी, लोजपा और जेडीयू जीतती रही हैं। 2020 में राष्ट्रीय जनता दल ने जीत दर्ज की थी। 2020 में आरजेडी ने दो दशक के बाद जोरदार वापसी की थी। पार्टी प्रत्याशी राजबंशी महतो ने चुनाव जीता था। राजबंशी महतो ने जेडीयू की मंजू वर्मा को बड़े वोटों के मार्जिन से हराया था। हार का अंतर 40,897 वोटों का था।
साहेबपुर कमाल: साहेबपुर कमाल विधानसभा संसदीय एवं विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन आदेश, 2008 के बाद अस्तित्व में आई थी। इसपर 2010 में पहली बार चुनाव हुए थे। पहले चुनाव में यहां से जेडीयू ने जीत हासिल की थी लेकिन इसके बाद 2014 का उपचुनाव और 2015-2020 के चुनावों में आरजेडी ने परचम लहराया।
तेघरा: तेघरा विधानसभा सीट पर सबसे पहले 1952 में चुनाव हुए थे। कांग्रेस ने पहले चुनाव में जीत दर्ज की थी। 1957 में कांग्रेस और 1962 में सीपीआई ने जीती। इसके बाद तेघरा में चुनाव नहीं हुए। मगर 2008 के परिसीमन के बाद 2010 में यहां फिर से चुनाव करवाए गए। 2010, 2015 और 2020 में क्रमश: बीजेपी, आरजेडी और सीपीआई ने चुनाव जीता है।
बखरी: बखरी विधानसभा में सबसे पहली बार चुनाव 1952 में हुए, जिसमें कांग्रेस को जीत मिली थी। इसके बाद के चुनावों में 1967 से लेकर 1995 तक सीपीआई का एकछत्र कब्जा रहा। इसके बाद सीपीआई ने 2005 और 2020 में बखरी सीट को जीतने में कामयाब रही। यहां वामपंथ की मजबूती को देखते हुए अंदाजा लगाया जा रहा है कि 2025 के चुनाव में भी सीपीआई जीत सकती है।
बछवाड़ा: बछवाड़ा विधानसभा सीट पर भी सबसे पहले आजादी के बाद 1952 में चुनाव हुए थे। यहां सबसे पहला विधायक कांग्रेस का बना था। इसके बाद बछवाड़ा प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, सीपीआई, आरजेडी के हिस्से में रही। मगर, 2020 में बीजेपी ने बछवाड़ा विधानसभा पर पहली बार 484 वोटों से जीत दर्ज की।
बेगूसराय: बेगूसराय एक शहरी सीट है। यह बीजेपी का मजबूत किला है। 2000 से लेकर 2010 तक यह सीट बीजेपी के कब्जे में रही। मगर, 2015 में कांग्रेस ने बेगूसराय सीट जीतकर बीजेपी के किले में सेंधमारी कर दी थी। मगर, 2020 में बेगूसराय पर बीजेपी ने एक बार फिर से परचम लहराया।
मटिहानी: मटिहानी विधानसभा पर जेडीयू की मबजूत पकड़ रही है। यही वजह है कि 2020 में यहां से जेडीयू के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी। मटिहानी में सबसे पहली बार 1977 में चुनाव हुए थे। यहां पहले चुनाव में सीपीआई ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद यह सीट कांग्रेस, निर्दलीय और लोजपा के पास रही। मटिहानी में वामपंथ की मजबूत पकड़ है।
जिले की प्रोफाइल
करीब 1918 वर्ग किलोमीटर में फैले बेगूसराय जिले में पांच अनुमंडल बेगूसराय, बलिया, तेघरा, मंझौल और बखरी हैं। जिलमें 18 प्रखंड हैं। इनमें बेगूसराय, बरौनी, तेघरा, मटिहानी, खोदाबंदपुर, बछवारा, नावकोठी, मंसूरचक, साहेबपुर कमाल, चेरिया बरियारपुर, बखरी, डंडारी, बीरपुर, गढ़पुरा, बलिया, छौड़ाही, भगवानपुर और साम्हो आते हैं। बेगूराय की आबादी लगभग 38 लाख है। जिले की साक्षरता दर तकरीबन 60 प्रतिशत है।
कुल सीटें-7
RJD- 2
CPI-2
BJP-2
JDU-1
