बिहार का वैशाली जिला ऐतिहासिक जिलों में गिना जाता है। यह जिला सदियों से जैन और बौद्ध धर्म का अहम केंद्र रहा है। प्राचीन भारत के महाजनपदों में भी वैशाली का नाम अहम रहा है। 563 ईसा पूर्व में गौतम बुद्ध के जन्म से पहले ही वैशाली में गणतंत्र की स्थापना हो चुकी थी और वैशालीदुनिया का पहले गणतंत्र बना था जहां चुनी हुई सभा थी। इसी वैशाली में अब कई ऐसे बाहुबली हैं जो कभी विधायक रहे तो कभी हत्या के दोषी पाए गए। महावीर और बुद्ध की धरती आपराधिक छवि वाले नेताओं की वजह से न सिर्फ बदनाम हुई है बल्कि ऐसे नेता ही यहां की पहचान बन गए हैं।

 

बौद्ध धर्म के लिहाज से बेहद अहम शहर वैशाली में ही गौतम बुद्ध ने अपने अंतिम संदेश दिए थे। पाटलिपुत्र भी लंबे समय से राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा है। आजादी के बाद साल 1972 में वैशाली को मुजफ्फरपुर से अलग करके नया जिला बनाया गया। इसी जिले में गंगा और गंडक नदियां बहती हैं जिनके चलते जिले के कई क्षेत्रों को बाढ़ से भी जूझना पड़ता है। राजनीतिक स्तर से देखें तो राम विलास पासवान, लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव, बृषिण पटेल, नित्यानंद राय और मुन्ना शुक्ला जैसे तमाम नेता इस क्षेत्र में ही अपनी राजनीति करते रहे हैं।

 

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राजनीतिक समीकरण

 

वैशाली जिले में आरजेडी कमोबेश मजबूत मानी जाती है। यहां की एक विधानसभा सीट वैशाली लोकसभा में 6 सीट हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में और एक सीट उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र में आती है। 2024 में इन तीनों ही लोकसभा सीटों पर एनडीए को ही जीत मिली थी। विधानसभा की स्थिति देखें तो एनडीए और महागठबंधन 4-4 से बराबरी पर हैं। अब तेज प्रताप से महुआ से उतरने की वजह से कम से कम एक सीट पर महागठबंधन का समीकरण बिगड़ सकता है।

 

दूसरी तरफ, लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन के आधार पर चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (RV) भी इसी जिले में कई सीटें मांग रही है जिससे बीजेपी और जेडीयू दोनों असहज स्थिति में आ सकती हैं। तेजस्वी यादव, नित्यानंद राय, मुन्ना शुक्ला, तेज प्रताप यादव और बृषिण पटेल जैसे दिग्गज नेताओं की सीटें इसी जिले में हैं, ऐसे में विधानसभा चुनाव में यह जिला खूब चर्चा में भी रहने वाला है।


हाजीपुर: लंबे समय तक समाजवादियों को विधानसभा भेजती आ रही हाजीपुर विधानसभा सीट अब बीजेपी का गढ़ बन गई है। साल 2000 से लेकर अब तक यहां कुल 7 चुनाव हुए हैं और हर बार बीजेपी को ही जीत मिली है। लगातार 4 बार यहां से नित्यानंद राय जीते और जब वह केंद्र में गए तो अपने साथी अवधेश सिंह को उतार दिया। अब तीन बार से अवधेश सिंह यहां से चुनाव जीतते आ रहे हैं।

 

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लालगंज: उम्रकैद की सजा काट रहे विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला की वजह से चर्चा में रहने वाली इस सीट पर 2020 में बीजेपी ने जीत हासिल की थी। मुन्ना शुक्ला की पत्नी अनु शुक्ला अब आरजेडी में हैं और उम्मीद है कि वही यहां से चुनाव लड़ने वाली हैं। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि मुन्ना शुक्ला से मुकाबला करने के लिए एनडीए अपनी रणनीति में क्या बदलाव करता है।

 

वैशाली: इस सीट पर जेडीयू लगातार 5 चुनाव जीत चुकी है। लगातार पार्टी बदल रहे पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री बृषिण पटेल अब जन सुराज के साथ हैं, ऐसे में यहां का मुकाबला त्रिकोणीय होने की पूरी उम्मीद है। कहा जा रहा है कि सीट अपने कब्जे में रखने के लिए जेडीयू एक बार फिर से अपना उम्मीदवार बदल सकती है।

 

महुआ: महुआ विधानसभा सीट पर लंबे समय से आरजेडी जीतती रही है। इस बार तेज प्रताप यादव ने यहां से उतरने का एलान करके आरजेडी को ही मुश्किल में डाल दिया है। यह सीट फिलहाल आरजेडी के कब्जे में है और तेज प्रताप यादव आरजेडी से निकाले जा चुके हैं। देखना यह होगा कि तेज प्रताप यादव अगर नई पार्टी के बैनर तले यहां से उतरते हैं तो आरजेडी क्या कदम उठाती है। 

 

राजा पाकर: 2008 में अस्तित्व में आई यह विधानसभा सीट 2020 के चुनाव में कांग्रेस के खाते में आई थी। मुकाबला जेडीयू से था और प्रतिमा कुमारी दास ने कम अंतर से ही सही लेकिन यह सीट जीत ली थी। इस बार की लड़ाई और रोमांचक हो सकती है।

 

राघोपुर: लालू परिवार की पारंपरिक विधानसभा सीट रही राघोपुर से खुद लालू प्रसाद यादव, रबड़ी देवी और फिर तेजस्वी यादव विधायक बन चुके हैं। तेजस्वी यादव एक बार फिर इस सीट से चुनाव में उतरेंगे। बड़े अंतर से चुनाव जीत रहे तेजस्वी यादव को टक्कर देने के लिए एनडीए क्या करता है, यह देखना होगा।

 

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महनार: लंबे समय से महनार में हारती आ रही आरजेडी ने 2020 के चुनाव में बाजी पलट दी थी। बाहुबली रामा किशोर सिंह की पत्नी बीना सिंह ने जेडीयू के तत्कालीन विधायक उमेश कुशवाहा को हराकर यहां जीत हासिल की थी। इस बार आरजेडी की चुनौती यही है कि वह अपनी इस सीट को बचाकर रख पाए।

 

पातेपुर: पिछले 6 चुनाव से इस सीट पर यह देखा गया है कि एक बार आरेडी जीतती है तो अगला चुनाव हार जाती है। 2020 में आरजेडी ने तत्कालीन विधायक प्रेमा चौधरी का टिकट काटकर शिवचंद्र राम को उतारा था लेकिन यह दांव काम नहीं आा। बीजेपी के लखेंद्र कुमार रौशन ने यह चुनाव जीता था। इस बार देखना रोचक होगा कि एक जीत, एक हार वाले फॉर्मूले को पलटने के लिए बीजेपी क्या करती है।

जिले का प्रोफाइल

 

ऐतिहासिक और धार्मिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण वैशाली जिले का क्षेत्रफल 2036 वर्ग किलोमीटर है। वैशाली जिले में कुल 3 सब डिवीजन और 16 ब्लॉक हैं। कुल 290 पंचायतों और 1414 गांवों वाले इस जिले की कुल जनसंख्या 3495249 (2011 की जनगणना के अनुसार) है। वैशाली में 16.08 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति की है। यहां की साक्षरता दर 68.6 प्रतिशत और लिंगानुपात 957 है।

विधानसभा सीटें- 8
BJP-3
RJD-3
JDU-1
कांग्रेस-1