भारत में हजारों मंदिर हैं, जिनमें कई मंदिर अपनी अनोखी बनावट, सुंदरता, पौराणिक कथाओं और अध्यात्मिक शांति के लिए प्रसिद्ध हैं। दक्षिण भारत के केरल राज्य में भी ऐसे कई मंदिर हैं, जो पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। केरल के कासरगोड जिले में स्थित अनंतपुरा झील मंदिर (Ananthapura Lake Temple) भी इनमें से एक है। इतिहासकारों के अनुसार, इस मंदिर को 9 वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था।
यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्री पद्मनाभस्वामी को समर्पित है और यह अकेला ऐसा मंदिर है जो झील के बीचों-बीच स्थित है। मंदिर जिस झील के बीचों-बीच स्थित है वह कोई बनावटी झील नहीं है, बल्कि यह एक प्राकृतिक झील है। यह मंदिर न केवल अपनी खूबसूरत लोकेशन के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके साथ जुड़ी पौराणिक कथाएं, रहस्य और धार्मिक महत्व भी लोगों को आकर्षित करते हैं।
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यह मंदिर किस भगवान को समर्पित है?
अनंतपुरा झील मंदिर भगवान विष्णु के एक रूप 'अनंत पद्मनाभ भगवान' को समर्पित है। यह भगवान का वही स्वरूप है जिन्हें भक्त त्रिवेंद्रम स्थित पद्मनाभस्वामी मंदिर में देखते हैं। मान्यता है कि अनंतपुरा झील मंदिर में ही सबसे पहले भगवान पद्मनाभस्वामी ने दर्शन दिए थे। इसका मतलब यह है कि त्रिवेंद्रम के प्रसिद्ध मंदिर की शुरुआत यहीं से मानी जाती है।

मंदिर की पौराणिक कथा
मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा भगवान विष्णु और एक ऋषि दिवाकर मुनि की है। कथा के अनुसार, बहुत समय पहले एक तपस्वी दिवाकर मुनि यहां रहते थे। वह भगवान विष्णु के परम भक्त थे और हर दिन भगवान का ध्यान करते थे। एक दिन उनके सामने अचानक से एक सुंदर लड़का प्रकट हुआ, जो बहुत तेजस्वी था। लड़के ने मुनि से कहा कि वह उनके साथ रहना चाहता है लेकिन एक शर्त पर, अगर कभी मुनि उसे अपमानजनक नजरों से देखेंगे, तो वह तुरंत वहां से चला जाएगा।
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मुनि ने शर्त मान ली और वह लड़का उनके साथ रहने लगा। कुछ समय बाद, लड़के की शरारतों से मुनि परेशान होने लगे। एक दिन गुस्से में आकर मुनि ने उसे डांट दिया। उसी समय लड़का मुस्कराया और बोला, 'अब मैं जा रहा हूं अगर आप मुझे पाना चाहें तो दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते जाइए।' ऐसा कहकर वह लड़का वहां से चला गया।
मुनि उसकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े और अंत में त्रिवेंद्रम पहुंचकर भगवान पद्मनाभस्वामी के रूप में उसी लड़के को देखा, जो शेषनाग पर लेट कर आराम कर रहे थे। तभी से यह माना गया कि अनंतपुरा मंदिर वही स्थान है जहां भगवान ने पहले दर्शन दिए थे।
मंदिर की विशेषता
यह मंदिर एक प्राकृतिक झील के अंदर बना हुआ है। झील के बीच एक छोटा सा द्वीप है, जहां पूरा मंदिर परिसर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए एक छोटा सा पुल बना हुआ है। चारों ओर शांत पानी और हरा-भरा वातावरण इसे अत्यंत सुंदर और शांत बनाता है।
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यह स्थान न केवल धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी अनमोल है। मंदिर के आसपास हरियाली, जल जीवन और शांति का अनुभव पर्यटकों को आकर्षित करता है।
मंदिर का रहस्यमय मगरमच्छ'बबिया'
अनंतपुरा झील मंदिर की एक अनोखी विशेषता वहां रहने वाला 'बबिया' नामक मगरमच्छ था। बबिया को मंदिर का रक्षक माना जाता था। वह पूरी तरह शाकाहारी था और केवल प्रसाद के रूप में चावल और गुड़ खाता था। मंदिर के पुजारी हर दिन बबिया को खाना खिलाते थे।
बबिया कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता था और न ही किसी पर हमला करता था। इसी वजह से वहां के स्थानीय लोग उसे भगवान का सेवक मानते थे। कुछ साल पहले उसकी मृत्यु हो गई लेकिन अब भी लोग इस रहस्य और आस्था को याद करते हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
अनंतपुरा झील मंदिर न केवल एक पूजा स्थल है, बल्कि यह जगह एक आध्यात्मिक यात्रा का अनुभव कराती है। यहां आने वाले भक्तों को शांत वातावरण में ध्यान और आत्मचिंतन करने का मौका मिलता है। यहां पूजा, भजन और ध्यान करने वाले लोगों को मानसिक शांति और ईश्वर से जुड़ने की अनुभूति होती है।
इसके अलावा यह मंदिर हिंदू धर्म की प्रकृति से जुड़ाव का भी प्रतीक माना जाता है। यहां मानव, पशु और प्रकृति सब एक साथ मिलकर सामंजस्य से रहते हैं।
कैसे पहुंचें?
- अनंतपुरा मंदिर केरल के कासरगोड जिले में स्थित है। यह स्थान मंगलुरु (Mangalore) और कासरगोड शहर के बीच आता है।
- नजदीकी रेलवे स्टेशन: कासरगोड
- नजदीकी हवाई अड्डा: मंगलुरु अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा
- मंदिर तक सड़क के रास्ते जा सकते हैं।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।
