भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित तुंगनाथ मंदिर न केवल धार्मिक रूप से बल्कि भौगोलिक दृष्टि से भी अत्यंत विशेष स्थान रखता है। यह मंदिर हिमालय की गोद में बसा हुआ है और इसे विश्व का सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर माना जाता है। समुद्र तल से लगभग 3,680 मीटर (12,073 फीट) की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर, पंचकेदारों में से तीसरा केदार है।
तुंगनाथ मंदिर का पौराणिक इतिहास
तुंगनाथ से जुड़ी कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। जब पांडवों ने कुरुक्षेत्र युद्ध में अपने ही भाइयों और गुरुजनों का वध किया, तो वे अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की शरण में गए। लेकिन भगवान शिव पांडवों से क्रोधित थे और उनसे छिप गए। उन्होंने स्वयं को एक बैल (नंदी) के रूप में छुपा लिया।
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पांडवों ने शिव को ढूंढते हुए हिमालय की ओर प्रस्थान किया। भीम ने एक स्थान पर दो पहाड़ों के बीच खड़े होकर अपना विशाल शरीर फैलाकर बैल को रोकने का प्रयास किया। तब वह बैल जमीन में समा गया और उसके शरीर के विभिन्न भाग अलग-अलग स्थानों पर प्रकट हुए। इन्हीं स्थानों को पंचकेदार कहा गया।
- तुंगनाथ में भगवान शिव की भुजा (हाथ) प्रकट हुई।
- केदारनाथ में पीठ,
- मध्यमहेश्वर में नाभि,
- रुद्रनाथ में मुख,
- और कल्पेश्वर में जटाएं प्रकट हुईं।
तुंगनाथ में भगवान शिव की भुजाओं की पूजा की जाती है, और यही कारण है कि इसे ‘तुंग’ (उच्च) और ‘नाथ’ (ईश्वर) कहा गया है — अर्थात ऊंचाई पर विराजमान भगवान।

मंदिर की बनावट और स्थापत्य कला
तुंगनाथ मंदिर लगभग 1,000 वर्ष पुराना माना जाता है। इसका निर्माण कत्युरी शासकों द्वारा करवाया गया था। मंदिर की बनावट उत्तर भारतीय नागर शैली की है जिसमें पत्थरों को जोड़कर मंदिर का मुख्य ढांचा बनाया गया है। मंदिर छोटा लेकिन भव्य है, और इसके चारों ओर ऊंचे पर्वतों की श्रृंखला इसे अत्यंत दिव्यता प्रदान करती है। मुख्य गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है, जिसे काले पत्थर से तराशा गया है। गर्भगृह के बाहर एक छोटा मंडप है जहां भक्त पूजा-अर्चना करते हैं।
धार्मिक महत्व और मान्यताएं
तुंगनाथ मंदिर को शिवभक्तों के लिए अत्यंत पवित्र स्थल माना जाता है। यह मंदिर केवल आस्था का केंद्र नहीं है, बल्कि यह तीर्थयात्रियों की आत्मा को शुद्ध करने वाला स्थान माना जाता है। यह भी मान्यता है कि यहां की यात्रा करने से मनुष्य के सारे पापों का नाश हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, जो श्रद्धालु पंचकेदार की यात्रा पूरी करता है, वह भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करता है। यहां न केवल पांडवों ने तप किया, बल्कि कई ऋषियों और तपस्वियों ने भी इस स्थान को अपनी साधना स्थली बनाया।
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यात्रा
तुंगनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को चोपता से लगभग 3.5 किलोमीटर की ट्रेकिंग करनी होती है। यह रास्ता सुंदर जंगलों, फूलों की घाटियों और हिमालय की चोटियों से होकर गुजरता है। रास्ते में हिमालय की चोटियों का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है।
मंदिर वर्ष के कुछ ही महीनों के लिए खुला रहता है, क्योंकि सर्दियों में यहां भारी बर्फबारी होती है। सामान्यतः अक्षय तृतीया के दिन मंदिर के कपाट खुलते हैं और भैयादूज या दीपावली के बाद बंद हो जाते हैं। सर्दियों के दौरान भगवान तुंगनाथ की पूजा मक्कू गांव में की जाती है, जहां उनका डोला (पालकी) ले जाया जाता है।
तुंगनाथ और चंद्रशिला
तुंगनाथ मंदिर से लगभग 1.5 किलोमीटर ऊपर एक और पवित्र स्थान है, जिसे चंद्रशिला शिखर कहा जाता है। यह वह स्थान है जहां भगवान राम ने अपने वनवास के समय तपस्या की थी। यहां से नंदादेवी, त्रिशूल, केदारनाथ, चौखम्बा जैसे पर्वत शिखरों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।