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रूसी तेल की बड़ी खरीदार है रिलायंस, ट्रंप के प्रतिबंधों का असर क्या होगा?

यूक्रेन में जंग खत्म हो सके, इसलिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस की दो बड़ी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत की रिलायंस इन कंपनियों की बड़ी खरीदार है। इसका असर क्या होगा? समझते हैं।

Reliance Russian Oil Imports

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)

रूस के तेल पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सख्ती और बढ़ा दी है। ट्रंप बार-बार दावा करते हैं कि रूस सस्ते में अपना तेल भारत जैसे देशों को बेच रहा है और उससे जो कमाई हो रही है, उसका इस्तेमाल यूक्रेन में जंग लड़ने के लिए कर रहा है। ट्रंप तो इस बात से भी नाराज हैं कि भारत, रूस से तेल क्यों खरीद रहा है? भारत को रोकने के लिए ट्रंप ने पहले ही 50% टैरिफ लगा दिया है। 


अब ट्रंप इससे भी आगे चले गए हैं। उन्होंने रूस की दो बड़ी तेल कंपनियों- Rosneft और Lukoil पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। ट्रंप के इस फैसले को रूस पर यूक्रेन में जंग खत्म करने के 'प्रेशर' के तौर पर देखा जा रहा है। इतना ही नहीं, इसे ट्रंप सरकार की रूस पर की गई अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई भी माना जा रहा है। 


ट्रंप के इस फैसले का असर अब भारत पर भी दिखने लगा है। रूस की दो बड़ी तेल कंपनियों पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद अब देश की सबसे बड़ी प्राइवेट तेल रिफाइनरी रिलायंस ने भी रूसी तेल का विकल्प तलाशने शुरू कर दिए हैं। मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज रूसी तेल की सबसे बड़ी खरीदार मानी जाती है। कंपनी ने एक बयान जारी कर कहा है कि इन प्रतिबंधों के प्रभावों का आकलन किया जा रहा है और कंपनी सरकार की निर्देशों का पालन करेगी।

 

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रूस के तेल से ट्रंप को क्या है दिक्कत?

8 जंग को खत्म करने का क्रेडिट ले रहे ट्रंप की बात रूस-यूक्रेन में जम नहीं रही है। राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार के दौरान ट्रंप ने बार-बार दावा किया था कि अगर वह राष्ट्रपति होते तो यह जंग शुरू ही नहीं होती। उन्होंने तब यह भी दावा किया था कि उनके राष्ट्रपति बनने के बाद रूस और यूक्रेन की जंग खत्म हो जाएगी। 


हालांकि, ऐसा हुआ नहीं। इस साल 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद ट्रंप ने कई बार रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से बात की है। अगस्त में तो उन्होंने पुतिन के साथ अलास्का में आमने-सामने बैठकर कई घंटों तक बातचीत भी की थी। मगर इसका भी कोई असर नहीं दिखा और जंग अब भी जारी है।


ट्रंप और अमेरिकी सरकार का दावा है कि प्रतिबंधों के बावजूद रूस कच्चा तेल बेचकर अपनी अर्थव्यवस्था चला रहा है। रूस सस्ते में भारत और चीन को कच्चा तेल बेच रहा है और पैसा कमा रहा है। ट्रंप तो कई बार यह तक कह चुके हैं कि भारत सस्ते में तेल खरीदकर रूस की 'वॉर मशीन' में मदद कर रहा है। इतना ही ट्रंप और उनकी सरकार यह भी दावा करती है कि भारत सस्ते में रूस से तेल खरीदता है और उसे बाहर बेचकर मोटा मुनाफा कमा रहा है।


रूसी तेल खरीद का हवाला देते हुए ट्रंप ने अगस्त में अमेरिका आने वाले भारतीय सामानों पर 50% टैरिफ बढ़ा दिया था। ट्रंप बार-बार भारत पर रूस से तेल खरीद बंद करने का दबाव बना रहे हैं। हालांकि, जब इससे भी बात नहीं बनी तो उन्होंने अब रूस की दो बड़ी तेल कंपनियों- Rosneft और Lukoil पर ही प्रतिबंध लगा दिया।

 

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क्या है ट्रंप का फैसला?

ट्रंप बार-बार धमका रहे थे कि अगर यूक्रेन में जंग खत्म नहीं होती है तो वह रूस पर सख्त से सख्त प्रतिबंध लगा देंगे। आखिरकार, उन्होंने 22 अक्टूबर को रूस की दोनों तेल कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया। उन्होंने रूस से तत्काल सीजफायर करने की बात भी कही।


CNN की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप ने यह फैसला ऐसे वक्त लिया है, जब उन्होंने पुतिन के साथ होने वाली एक मीटिंग रद्द कर दी है, क्योंकि उनका मानना है कि इस बैठक का वह नतीजा नहीं निकलेगा, जो निकलना चाहिए।


प्रतिबंध का एलान करते हुए ट्रंप ने कहा था कि 'अब इन्हें लागू करने का समय' आ गया है। उन्होंने यह भी कहा था कि इन प्रतिबंधों को लागू करने के लिए उन्होंने 'काफी इंतजार' भी किया। साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा कि यह प्रतिबंध 'ज्यादा समय' तक नहीं रहेंगे, क्योंकि युद्ध जल्द ही खत्म हो जाएगा।

 


अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा था कि अब हत्याएं रोकने और सीजफायर करने का समय आ गया है। उन्होंने कहा था, 'राष्ट्रपति पुतिन ने इस जंग को खत्म करने से इनकार कर दिया है, इसलिए अब रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है।' उन्होंने यह भी कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो और भी सख्ती की जाएगी।


बताया जा रहा है कि यह अमेरिकी प्रतिबंध 21 नवंबर से लागू होंगे। अगर उसके बाद कोई भी कंपनी इनके साथ कारोबार करती हैं तो उन पर प्रतिबंध या जुर्माना लग सकता है।


अमेरिका के ये प्रतिबंध Rosneft और Lukoil के साथ-साथ उनकी तीन दर्जन से ज्यादा सब्सिडियरी कंपनियों पर भी लागू होंगे। अमेरिका ने यह प्रतिबंध तब लगाए हैं, जब हफ्तेभर पहले ही ब्रिटेन ने भी इन दोनों कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। वहीं, यूरोपियन यूनियन भी रूस के LNG इम्पोर्ट पर पूरी तरह बैन लगा चुका है।

 

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भारत पर कैसे पड़ रहा इसका असर?

फरवरी 2022 में यूक्रेन जंग शुरू होने से पहले तक भारत रूस का बहुत बड़ा खरीदार नहीं था। भारत रूसी तेल बहुत कम खरीदता था। भारत अपनी जरूरत का लगभग 85% कच्चा बाहर से आयात करता है। भारत में हर दिन 52 लाख बैरल तेल की खपत होती है।


रूस-यूक्रेन में जंग शुरू होने से पहले तक भारत अपनी जरूरत का ज्यादातर कच्चा तेल इराक और सऊदी अरब जैसे खाड़ी मुल्कों से खरीदता था। तब भारत के कच्चे तेल के आयात में रूस का हिस्सा सिर्फ 0.2% था। मगर अब यह एक तिहाई से भी ज्यादा हो गया है। 


ऐसा कैसे हुआ? हुआ यह कि यूक्रेन जंग शुरू होने के बाद अमेरिका समेत यूरोपीय देशों ने रूस पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे। दिसंबर 2022 में रूस के तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की कैप लगा दी थी। यानी, रूस अपना तेल 60 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा नहीं बेच सकता था। ऐसे में उसने भारत और चीन का रुख किया। 


भारत ने अपनी जरूरतों का ध्यान रखते हुए रूस से तेल खरीदना शुरू कर दिया। एनालिटिक्स फर्म ICRA के मुताबिक, रूस से तेल खरीदने पर दो साल में भारत को लगभग 13 अरब डॉलर की बचत हुई है।

 

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रिलायंस इंडस्ट्री पर क्या पड़ेगा असर?

भारत के सबसे रईस शख्स मुकेश अंबानी रिलायंस इंडस्ट्रीज के मालिक हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज वैसे तो कई कारोबार में है। लेकिन तेल रिफाइनरी से कंपनी को सबसे ज्यादा कमाई होती है। रिलायंस के मुताबिक, उसके सालाना रेवेन्यू में से 58% तेल रिफाइनरियों से आता है। 


गुजरात के जामनगर में रिलायंस की तेल रिफाइनरी है। यह दुनिया की सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी है। यहां कच्चे तेल को रिफाइन कर पेट्रोल और डीजल बनाया जाता है। इसे अमेरिका और यूरोप में एक्सपोर्ट करती है, जिससे कंपनी को अच्छा मुनाफा होता है।


न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, भारत हर दिन रूस से 17 से 18 लाख बैरल कच्चा तेल खरीदता है। इसमें से लगभग 12 लाख बैरल कच्चा तेल अकेले Rosneft और Lukoil से आता है। अब भारत हर दिन जो 17-18 लाख बैरल कच्चा तेल खरीद रहा है, उसका आधे से ज्यादा सिर्फ रिलायंस खरीदता है।


डेटा एनालिटिक्स फर्म Kpler के मुताबिक, इस साल सितंबर में रिलायंस ने रूसी कंपनियों से हर दिन लगभग 6.29 लाख बैरल से ज्यादा कच्चा तेल खरीदा था। जबकि, पिछले साल सितंबर में रिलायंस ने 4.28 लाख बैरल तेल खरीदा था। न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, यूक्रेन जंग शुरू होने के बाद से रिलायंस ने रूसी कंपनियों से लगभग 35 अरब डॉलर (लगभग 3 लाख करोड़ रुपये) का कच्चा तेल खरीदा है।


इतना ही नहीं, न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि पिछले साल ही दिसंबर में रिलायंस ने Rosneft के साथ 13 अरब डॉलर की एक डील की थी। इस समझौते के तहत अगले 10 साल तक रिलायंस रोजाना 5 लाख बैरल कच्चा तेल Rosneft से खरीदेगी। 

 

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अब क्या होगा?

अब ट्रंप के प्रतिबंधों का सीधा असर रिलायंस के कारोबार पर पड़ने की संभावना है। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने एक बयान जारी कर कहा कि वह इन प्रतिबंधों के प्रभाव का आकलन कर रही है और जरूरी निर्देशों का पालन किया जाएगा। 

 


कंपनी ने बयान में कहा, 'हमने यूरोपियन यूनियन, ब्रिटेन और अमेरिका की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों को ध्यान में लिया है। हम इन प्रतिबंधों के प्रभाव का आकलन कर रहे हैं। यूरोपियन यूनियन की गाइडलाइंस का पालन करेंगे। जब भी भारत सरकार की ओर से इसे लेकर कोई निर्देश आएगा, तो उसका भी पालन किया जाएगा।'


रिलायंस ने यह भी कहा कि वह अपने सप्लायर्स के साथ संबंध बनाते हुए इन स्थितियों का समाधान निकालेगी। 


Kpler के लीड रिसर्च एनालिस्ट (रिफाइनिंग एंड मॉडलिंग) सुमित रिटोलिया ने न्यूज एजेंसी PTI से कहा कि 21 नवंबर तक तो रूसी कंपनियों से हर दिन 16 से 18 लाख बैरल कच्चा तेल आने की उम्मीद है लेकिन उसके बाद आयात में सीधे गिरावट आने की संभावना है, क्योंकि भारतीय कंपनियां अमेरिकी प्रतिबंधों के दायरे में आने का रिस्क नहीं उठाएंगीं।

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