सारण: RJD के गढ़ में संख्या बढ़ाने को जूझ रही BJP, कैसे पार लगेगी नैया?
सारण एक ऐसा जिला है जहां बीजेपी के लिए अपनी सीटें बढ़ाने की चुनौती है। वहीं, आरजेडी पहले से यहां मजबूत है और वह उन सीटों को जीतने के लिए जोर लगा रही है, जहां वह हार रही है।

सारण जिला, Photo Credit: Khabargaon
नेपाल से बहकर आती नदी गंडक, उत्तर प्रदेस से बहकर आती गंगा और घाघरा के बीच के क्षेत्र में एक त्रिभुज जैसी आकृति बनती है। आकृति बनने की वजह है कि घाघरा नदी गंगा में मिलती है और फिर पटना में गंडक भी गंगा में समा जाती है। इन नदियों के बीच के क्षेत्र को ही बिहार में सारण कहा जाता है। एक तरफ पटना, एक तरफ उत्तर प्रदेश और एक तरफ सिवान और एक तरफ मुजफ्फरपुर। इस तरह सारण का नक्शा तय होता है। बिहार के बाकी जिलों की तरह इस जिले का भी मुख्यालय एक अलग नाम छपरा से चर्चित है। वही छपरा जहां से इस बार भोजपुरी फिल्मों के गायक और अभिनेता खेसारी लाल यादव राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
प्राचीन समय में अलग-अलग जंगलों के नाम से मशहूर हुए इलाकों के नाम उनका इतिहास बताते हैं। कमोबेश ऐसे ही किस्से सारण को लेकर भी हैं। कहा जाता है कि सारंग+अरण्य नाम से सारण बना है। सारंग यानी हिरण और अरण्य माने जंगल। एक और किस्सा है कि सम्राट अशोक के बनवाए एक स्तूप को सारण नाम दिया गया और उसी के नाम पर यह सारण बना। ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो आईन-ए-अकबरी में भी सारण का जिक्र है। वहां इसे ईस्ट इंडिया कंपनी से जोड़कर दर्ज किया गया है। दरअसल, 1765 में जब ईस्ट इंडिया कंपनी को दीवानी के अधिकार दिए गए तो कुछ 6 राजस्व डिवीजन में उसे टैक्स वसूलने का हक मिला। उन 6 में से एक डिवीजन सारण भी था। 1972 में सारण को अलग करके नया जिला बनाया गया और अब यह अलग ही है।
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इतना समझने के बाद सारण की राजनीति को पहले मोटे तौर पर समझते हैं। इस जिले की 10 विधानसभा सीटों को 2 लोकसभा क्षेत्रों में बांटा गया है। पहली महाराजगंज जिसमें सारण के 4 विधानसभा क्षेत्र आते हैं और दूसरा सारण जिसमें बाकी के 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2014 से इन दोनों ही लोकसभा क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) जीत हासिल करती आ रही है।
राजनीतिक समीकरण
सारण क्षेत्र लालू परिवार और आरजेडी का गढ़ रहा है। 2020 में महागठबंधन ने 10 में से 7 सीटें जीती थीं और इस बार यह संख्या बढ़ाने पर जोर है। कई सीटों पर पिछले कुछ चुनावों से से उसका दबदबा भी रहा है लेकिन इस बार कुछ किलों को बीजेपी ने भेदने का प्लान बनाया है। दोनों लोकसभा क्षेत्रों पर बीजेपी ही लगातार जीतती आ रही है, ऐसे में आरजेडी के लिए बेहद जरूरी है कि वह पूर्ण बहुमत तक पहुंचने के लिए इस जिले में खुद को और मजबूत करे। शायद यही वजह है कि उसने छपरा जैसी सीट पर जीत हासिल करने के लिए खेसारी लाल यादव पर दांव लगाया है। अमनौर और छपरा विधानसभा क्षेत्रों में उसे बहुत पसीना बहाने की जरूरत है। वहीं, बीजेपी की कोशिश है कि वह लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहराए और हर हाल में सारण में अपनी सीटें बरकरार रखते हुए संख्या में और इजाफा कर पाए।
कुल मिलाकर आरजेडी के गढ़ में यहां मुख्य चुनौती बीजेपी के सामने है। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए खुद अमित शाह ने तरैया और अमनौर विधानसभा के लिए एक रैली कर चुके हैं। बीजेपी को अपने दोनों सांसदों राजीव प्रताप रूडी और जनार्दन सिंह सिग्रीवाल से भी उम्मीद है कि वे अपने जनसंपर्क की बदौलत यहां बीजेपी को मजबूत करेंगे।
सारण के विधानसभा क्षेत्र
एकमा- 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई इस सीट पर लगातार दो बार जेडीयू के मनोरंजन सिंह ने जीत हासिल की थी। 2020 में जेडीयू ने उनका टिकट काटा और आरजेडी के श्रीकांत यादव ने पासा पलट दिया। नतीजतन इस बार फिर से जेडीयू ने उन्हीं मनोरंजन सिंह को फिर से टिकट दिया है। आरजेडी ने अपने मौजूदा विधायक श्रीकांत यादव पर फिर से भरोसा जताया है। वहीं, जन सुराज से दावेदारी ठोक रहे विकास सिंह के पिता देव कुमार सिंह को मौका दिया गया है। पिछले चुनाव में यहां से लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर उतरे कामेश्वर कुमार सिंह ने जेडीयू का गेम खराब कर दिया था। दरअसल, 2015 में कामेश्वर सिंह बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े थे और दूसरे नंबर पर रहे थे।
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मांझी- पिछले दो चुनाव में इस सीट पर महागठबंधन को जीत मिली है। 2015 में कांग्रेस के टिकट विजय शंकर दुबे चुनाव जीते तो 2020 में कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सत्येंद्र यादव ने बाजी मारी। जेडीयू ने यहां से इस बार रणधीर सिंह को मौका दिया है। वहीं, सीपीएम ने फिर से अपने मौजूदा विधायक सत्येंद्र यादव को ही उतारा है। जनसुराज ने मशहूर वकील यदुवंश गिरी को चुनाव को रोचक बना दिया है। इन तीनों के अलावा इस चुनाव के एक अहम किरदार राणा प्रताप सिंह भी हैं। फिर से निर्दलीय चुनाव में उतरे राणा प्रताप पिछले चुनाव में निर्दलीय ही लड़े थे और दूसरे नंबर पर रहे थे। 2015 में भी वह चुनाव लड़े थे और 14 हजार से ज्यादा वोट लाए थे। ऐसे में मांझी विधानसभा सीट का चुनाव बेहद रोमांचक होने की उम्मीद है।
बनियापुर- पिछले तीन चुनाव में यह सीट आरजेडी के लिए गढ़ जैसी बन गई है। 2020 में आरजेडी ने यहां से न सिर्फ हैट्रिक लगाई बल्कि जीत के अंतर को और बड़ा कर लिया। यहां अपनी दाल न गलती देख बीजेपी ने लगातार तीन चुनाव जीतने वाले केदारनाथ को अपने पाले में कर लिया है और उन्हें ही टिकट दे दिया है। आरजेडी के लिए गनीमत इतनी है कि पिछली बार उसके खिलाफ लड़ी VIP इस बार उसके साथ है और यहां से LJP भी मैदान में नहीं है तो लड़ाई बिल्कुल सीधी है। आरजेडी ने इस बार यहां से उन चांदनी देवी को टिकट दिया है जो पूर्व विधायक अशोक सिंह की पत्नी हैं। बाद में अशोक सिंह की हत्या कर दी गई थी, जिसमें प्रभुनाथ सिंह का नाम आया था। बाद में प्रभुनाथ सिंह को इसी केस में सजा भी हुई। 2021 में चांदनी देवी ने जिला परिषद का चुनाव जीतकर सबको हैरान कर दिया था। जन सुराज ने यहां से श्रवण कुमार को टिकट दिया है।
तरैया- इस विधानसभा सीट पर पिछले चार बार से एक बार बीजेपी और एक बार आरजेडी जीत रही है। बीजेपी ने अपने मौजूदा विधायक जनक सिंह पर एक बार फिर से भरोसा जताया है। आरजेडी ने 2020 में चुनाव लड़े सिपाही लाल महतो की जगह पर इस बार शैलेंद्र प्रताप सिंह को टिकट दिया है। शैलेंद्र 2020 में निर्दलीय चुनाव लड़े थे और लगभग 14 हजार वोट लाए थे। जनक सिंह के सामने अपनी सीट बरकरार रखने की चुनौती है तो शैलेंद्र के सामने चुनौती है कि वह अपने दावे को साबित करें और आरजेडी के लिए यह सीट जीतकर दिखाएं।
मढ़ौरा- मढ़ौरी विधानसभा सीट पिछले 3 बार से जितेंद्र कुमार राय चुनाव जीतते आ रहे हैं। यदुवंशी राय के बेटे जितेंद्र के सामने इस बार भोजपुरी फिल्मों की कलाकार सीमा सिंह को एलजेपी (राम विलास) को उतारा गया था। हालांकि, सीमा सिंह का नामांकन ही खारिज हो गया और अब जितेंद्र राय की राह और आसान लग रही है। हालांकि, जन सुराज के नवीन सिर्फ उर्फ अभय सिंह जरूर मजबूती से मैदान में जुटे हैं। जिला परिषद के चुनाव में अपनी पत्नी को लड़ाकर पूर्व विधायक की पत्नी को हराने वाले अभय सिंह स्थानीय स्तर पर मजबूत नेताओं में गिने जाते हैं।
छपरा- छपरा विधानसभा इस बार बिहार की चर्चित सीटों पर शामिल हो गई है। बीजेपी के कद्दावर नेता सी एन गुप्ता दो चुनाव लड़ने के बाद लगभग रिटायर हो चुके हैं और बीजेपी ने उनका टिकट भी काट दिया है। उनकी जगह पर छोटी कुमारी को टिकट दिया गया है, जो कि जिला परिषद की अध्यक्ष हैं। राष्ट्रीय जनता दल ने इस सीट पर अपना कब्जा जमाने के लिए भोजपुरी सुपर स्टार खेसारी लाल यादव को चुनाव में उतार दिया है। छपरा के ही निवासी खेसारी बेहद लोकप्रिय चेहरों में हैं, ऐसे में आरजेडी का भी दावा मजबूत नजर आ रहा है। छपरा नगर निगम की मेयर रहीं राखी गुप्ता निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं तो हिमाचल प्रदेश पुलिस में ADGP और भारतीय सेना में मेजर रहे जय प्रकाश सिंह जन सुराज के टिकट पर मैदान में हैं।
गड़खा- पिछले चुनाव में आरजेडी ने यहां से अपने मौजूदा विधायक का टिकट काटा था और उसका यह दांव सफल भी रहा था। पुराने नेता मुनेश्वर चौधरी की जगह उतरे सुरेंद्र राम भी आसानी से जीत गए थे। दो बार से चुनाव हार रही बीजेपी ने इस बार यह सीट लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) को दे दी है। चिराग पासवान ने यहां से अपने भांजे सीमांत मृणाल को चुनाव में उतारा है। वहीं, आरजेडी ने अपने मौजूदा विधायक सुरेंद्र राम पर एक बार फिर से भरोसा जताया है। वहीं, पूर्व विधायक मुनेश्वर चौधरी इस बार निर्दलीय ही मैदान में उतर गए हैं। पूर्व विधायक रघुनंदन मांझी भी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं।
अमनौर- 2008 में बनी इस विधानसभा सीट पर पिछले तीन चुनाव से एनडीए का ही दबदबा है। एक बार जेडीयू जीती और दो बार बीजेपी। तीन में से दो बार जीते कृष्ण कुमार मंटू पर ही बीजेपी ने एक बार फिर से दांव लगा दिया है। RJD ने भी पिछली बार के चुनाव में उतरे सुनील कुमार पर ही दांव लगाया है क्योंकि वह सिर्फ 3681 वोटों से चुनाव हारे थे। पूर्व विधायक शत्रुधन तिवारी उर्फ चोकर बाबा भी यहां से तैयारी कर रहे थे लेकिन जन सुराज ने उनकी जगह पर राहुल कुमार सिंह को टिकट दे दिया है।
परसा- पूर्व सीएम दरोगा प्रसाद राय और उनके बेटे चंद्रिका राय की वजह से चर्चित इस सीट पर दो बार से आरजेडी जीत रही है लेकिन उम्मीदवार हर बार बदल रहे हैं। 2020 में आरजेडी के टिकट पर जीते छोटे लाल राय अब जेडीयू में चले गए हैं और जेडीयू ने उन्हें टिकट भी दे दिया है। अपने विधायक के पाला बदलने के बाद आरजेडी ने यहां से फिर दरोगा प्रसाद के परिवार का रुख किया है। इस बार आरजेडी ने चंद्रिका राय की भतीजी डॉ. करिश्मा राय को टिकट दे दिया है। चंद्रिका राय, तेज प्रताप की पत्नी ऐश्वर्या की चचेरी बहन हैं। माना जा रहा है कि चंद्रिका के उतरने से आरजेडी ने अपना दावा फिर से मजबूत कर लिया है। वहीं, जन सुराज ने मोसाहेब महतो को उम्मीदवार बनाया है।
सोनपुर- पिछले 25 साल से 2 नाम इस विधानसभा की पहचान बन गए हैं। कभी लालू प्रसाद यादव की सीट रही सोनपुर में पिछले 6 चुनाव में चार बार आरजेडी के रामानुज प्रसाद तो 2 बार बीजेपी के विनय कुमार सिंह चुनाव जीते हैं। दोनों ही दलों ने कोई बदलाव नहीं किया है। आरजेडी ने फिर से रामानुज प्रसाद को उम्मीदवार बनाया है तो बीजेपी ने विनय कुमार सिंह को एक और मौका दिया है। 2015 में बड़े अंतर से हारे विनय सिंह ने 2020 में हार-जीत का अंतर बहुत कम कर दिया था। ऐसे में उन्हें उम्मीद है कि इस बार वह इस अंतर को खत्म करके बढ़त लेंगे। पिछली बार निर्दलीय चुनाव लड़कर तीसरे नबंर पर रहे चंदनलाल मेहता को इस बार जन सुराज ने अपना उम्मीदवार बनाकर लड़ाई को त्रिकोणीय करने की कोशिश की है।
जिले का प्रोफाइल
बिहार के चर्चित जिलों में से एक सारण का क्षेत्रफल 2641 वर्ग किलोमीटर है और इतने क्षेत्रफल में 39.43 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं। कुल 3 सब डिवीजन में पैले इस जिले के 20 ब्लॉक और 1807 गांवों में फैली जनता को विधानसभा के हिसाब से 10 क्षेत्रों और लोकसभा के हिसाब से 2 क्षेत्रों में बांटा गया है। जिले में 10 शहरी निकाय और 39 पुलिस स्टेशन हैं।
सारण जिले में सेक्स रेशियो यानी 1000 पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या 954 है। जिले की साक्षरता दर 65.96 प्रतिशत है।
विधानसभा सीटें:-
RJD-6
CPM-1
BJP-3
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