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गोपालगंज: धार्मिक रूप से अहमियत रखने वाले जिले में NDA कितना मजबूत?

गोपालगंज जिला धार्मिक रूप से काफी अहमियत रखता है। यह एनडीए के लिए भी काफी मायने रखता है, क्योंकि यहां की 6 में से 4 विधानसभा सीटों पर एनडीए का ही कब्जा है।

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गोपालगंज जिला, Photo Credit: Khabargaon

बिहार का गोपालगंज जिला धार्मिक रूप से काफी महत्व रखता है। महाभारत काल में यह क्षेत्र राजा भूरी सर्वा के अधीन था। वैदिक युग में यहां राजा विदेह का शासन था। आर्यन के वक्त में यहां आदिवासी वमन राजा चेरो ने शासन किया था। उस वक्त के शासक मंदिर और धार्मिक स्थल बनवाने के शौकीन थे। यहीं कारण है कि यहां बहुत से मंदिर और धार्मिक स्थल हैं। इनमें थावे दुर्गा माता मंदिर,  मांझा का किला, दिघवा दुबौली का वामन गांडेय तालाब, सिरिसिया, कुचायकोट में राजा मलखान का किला प्रमुख हैं।


गोपालगंज जिला आंदोलनों का भी बड़ा केंद्र रहा है। आजादी की लड़ाई में भी यहां के लोगों का बड़ा योगदान रहा है। इमरजेंसी के दौरान जेपी आंदोलन के वक्त भी गोपालगंज बड़ा केंद्र था। गोपालगंज में 13वीं और 16वीं सदी में बंगाल के सुल्तान ग्यासुद्दीन अब्बास और बाबर का शासन था।


गोपालगंज 1875 तक छोटा सा गांव हुआ करता था। उसके बाद उसे सारण जिले का एक अनुमंडल बना दिया गया। आजादी के बाद भी कई सालों तक यह सारण जिले का ही छोटा सा शहर रहा। 2 अक्टूबर 1973 को गोपालगंज को नया जिला बनाया गया था। गोपालगंज के उत्तर में गंडक नदी है। गंडक और उसकी सहायक नदियों के कारण यह काफी उपजाऊ है। गोपालगंज में मुख्य रूप से गन्ने की खेती होती है। गोपालगंज की लगभग 94 फीसदी ग्रामीण इलाकों में रहती है। यहां 12.49% आबादी अनूसूचित जाति (SC) और 2.37% अनुसूचित जनजाति (ST) है।

 

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राजनीतिक समीकरण

गोपालगंज जिला एनडीए के लिहाज से काफी मायने रखता है। यहां 6 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से 4 पर एनडीए तो 2 पर आरजेडी का कब्जा है। जिन सीटों पर एनडीए का कब्जा है, उनमें से 2 बीजेपी और 2 जेडीयू के पास हैं। 


गोपालगंज की गोपालगंज विधानसभा में 2005 से बीजेपी ही जीतती आ रही है। अगस्त 2022 में मौजूदा विधायक सुभाष सिंह के निधन के बाद बीजेपी ने उनकी पत्नी कुसुम देवी को मैदान में उतारा था, जिन्होंने आरजेडी के मोहन गुप्ता को 1,794 वोटों से हराकर जीत हासिल की थी।


हथुआ विधानसभा में अब तीन ही विधानसभा चुनाव हुए हैं, जिनमें दो बार जेडीयू और एक बार आरजेडी को जीत मिली है। कुचायकोट विधानसभा में भी पिछले तीन चुनावों से लगातार जेडीयू के अमरेंद्र कुमार पांडेय जीतते आ रहे हैं। भोरे विधानसभा में जेडीयू, बरौली में बीजेपी और बैकुंठपुर में आरजेडी का कब्जा है।

 

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विधानसभा सीटें

  • बैकुंठपुर: इस सीट पर अब तक 18 बार चुनाव हो चुके हैं। पिछली बार आरजेडी उम्मीदवार प्रेम शंकर प्रसाद ने जीत हासिल की थी। उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार मितलेश तिवारी को 11,113 वोटों से हराया था। 
  • बरौली: अब तक हुए 17 चुनावों में 7 बार कांग्रेस को जीत मिली है। 2020 के चुनाव में बीजेपी के रामप्रवेश राय ने आरजेडी के रियाजुल हक उर्फ राजू को 14 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था। 
  • गोपालगंज: अब तक 19 बार चुनाव हो चुके हैं। 2020 के चुनाव में यहां से बीजेपी के सुभाष सिंह लगातार चौथी बार जीते थे। अगस्त 2022 में सुभाष सिंह का बीमारी के चलते निधन हो गया था। इसके बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी ने उनकी पत्नी कुसुम देवी को टिकट दिया। उपचुनाव में कुसुम देवी जीत गई थीं।
  • कुचायकोट: 1976 से 2008 तक यह सीट अस्तित्व में नहीं थी। परिसीमन के बाद 2010 में यहां चुनाव हुए थे। 2020 के चुनाव में जेडीयू के अमरेंद्र कुमार पांडे ने लगाातार तीसरी बार यहां से जीत हासिल की थी। उन्होंने पूर्व सांसद और कांग्रेस नेता काली प्रसाद पांडे को हराया था।
  • भोरे: अब तक यहां 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। पिछले चुनाव में यहां दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला था। 2020 में जेडीयू के सुनील कुमार ने भाकपा (माले) के जितेंद्र पासवान को सिर्फ 462 वोटों से हराया था।
  • हथुआ: सीट पर पहली बार 2010 में चुनाव हुए थे। 2020 में आरजेडी के राजेश सिंह कुशवाहा ने जेडीयू के रामसेवक सिंह कुशवाहा को 30,527 वोटों के अंतर से हराया था। राजेश सिंह को 86,731 यानी 49.84% जबकि रामसेवक सिंह को 56,204 यानी 32.29% वोट मिले थे।

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जिले की प्रोफाइल

गोपालगंज की कुल आबादी 25.60 लाख है। यहां 4 नगर पालिका, 14 ब्लॉक, 2 अनुमंडल और 1,534 गांव हैं। जिले का क्षेत्रफल 2,033 वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या घनत्व 1,260 प्रति वर्ग किलोमीटर है। जिले में 1000 पुरुषों पर महिलाओं की जनसंख्या 1,021 है। यहां की साक्षरता दर 53.98% है।

 

कुल सीट- 6
मौजूदा स्थिति
BJP-2
JDU-2
RJD-2

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