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पूर्वी चंपारण: NDA के गढ़ में अस्तित्व की जंग लड़ रही RJD

पूर्वी चंपारण में कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल का प्रदर्शन लचर रहा है। भारतीय जनता पार्टी ने इसे अपना गढ़ बनाया है। बिहार की सत्ता में आने के लिए यहां मजबूत होना जरूरी है।

East Champaran

पूर्वी चंपारण। (Photo Credit: Khabargaon)

भारत के सबसे प्राचीन शहरों में से एक चंपारण जिला का अतीत गौरवशाली रहा है। चंपारण का जिक्र पुराणों में भी आता है और देश के स्वाधीनता संग्राम के लिखित इतिहास में भी। आजादी के दशकों बाद भी यह जिला चंपारण ही रहा लेकिन साल 1971 में इसका विभाजन हुआ। पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण अब अलग-अलग जिले हैं। पूर्वी चंपारण में कुल 12 विधानसभाएं और एक लोकसभा क्षेत्र है। यहां से बीजेपी के राधा मोहन सिंह सांसद हैं। 12 विधानसभा सीटों से 9 पर एनडीए का कब्जा है, 3 सीटों पर राष्ट्रीय जनता दल के विधायक हैं। 

चंपारण में गुप्त और पाल वंशों का शासन रहा है। यहां अशोक के स्तंभ हैं। गुप्त और पाल वंश के बाद यहां का राज्य कर्नाट वंश के अधीन रहा। यहां स्वतंत्रता सेनानी राज कुमार शुक्ल ने महात्मा गांधी को न्योता दिया था, तब अप्रैल 1927 में महात्मा गांधी मोतिहारी आए थे। नील किसानों के लिए उन्होंने पहला सत्याग्रह किया था। यह आजादी की लड़ाई की आधारशिला बनी। आज भी यहां खेती-किसानी ही आय का प्रमुख साधन है। बड़े उद्योग नहीं हैं। बड़ी संख्या में लोग रोजगार के लिए पलायन कर चुके हैं। 

पूर्वी चंपारण का जिले का मुख्यालय मोतिहारी है। चंपारण शब्द का शाब्दिक अर्थ है 'चंपा का अरण्य', आसान भाषा में इसे चंपा का जंगल भी कह सकते हैं। उत्तर में नेपाल, दक्षिण में मुजफ्फरपुर, पूरब में शिवहर और पश्चिम में पश्चिमी चंपारण से घिरा यह जिला, पूर्वी चंपारण है। पूर्वी चंपारण में भोजपुरी बोली जाती है। यहां वाल्मीकि नगर अभयारण्य है, जो अक्सर पर्यटन की वजह से सुर्खियों में रहता है। ऐसी मान्यता है कि चंपारण के तपोवन में राजा उत्तानपाद के पुत्र भक्त ध्रुव ने तपस्या की थी। ऐसी मान्यता है कि राजा जनक के साम्राज्य का विस्तार भी यहां तक था। चंपारण देवी सीता की शरण स्थली भी रहा है। महात्मा गांधी का चंपारण अध्याय ने आजादी के आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी।  

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राजनीतिक समीकरण

पूर्वी चंपारण की 12 विधानसभाएं 3 संसदीय क्षेत्रों में बंटी हुई हैं। पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण और शिवहर में। पू्वी चंपारण भारतीय जनता पार्टी का गढ़ बन गया है। पूर्वी चंपारण में 6 विधानसभा सीटें आती हैं। हरसिद्धि, गोविंदगंज, केसरिया, कल्याणपुर, पिपरा और मोतिहारी। ये 6 सीटें एनडीए के पास हैं। पश्चिम चंपारण में रक्सौल, सुगौली और नरकटिया विधानसभाएं आती हैं। 2 विधानसभाओं पर आरजेडी और एक पर बीजेपी को जीत मिली।

मधुबन, चिरैया और ढाका विधानसभाएं, शिवहर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आतीं हैं। तीनों पर बीजेपी के विधायक हैं। बीते कई चुनावों में यहां समीकरण एनडीए के पक्ष में ज्यादा रहे हैं। कुछ विधानसभाओं पर आरजेडी का भी कब्जा बरकरार है। 

विधानसभा सीटें:- 

रक्सौल: यह विधानसभा साल 1952 से अस्तित्व में है। रक्सौल, कांग्रेस का गढ़ रही है। अब बीजेपी का गढ़ बन चुकी है। 1952 के बाद से इस सीट सीट से कांग्रेस कभी चुनाव नहीं जीत पाई। 8 बार कांग्रेस, 1 बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और 6 बार बीजेपी ने चुनाव जीता है। बीजेपी के प्रमोद कुमार सिन्हा विधायक हैं।

सुगौली: सुगौली सीट 1952 से अस्तित्व में है। शुरुआत में यहां कांग्रेस का दबदबा रहा, फिर लेफ्ट, जनसंघ ने भी सीटें जीतीं। 2005 से 2015 तक बीजेपी ने चुनाव जीता। यह दिग्गज कांग्रेस नेता जय नारायण प्रसाद की सीट रही है। आरजेडी नेता शशिभूषण सिंह यहां से विधायक हैं।

नरकटिया: नरकटिया विधानसभा 2010 में अस्तित्व में आई थी। तब से लेकर अब तक 3 चुनाव हो चुके हैं। यहां एक बार जेडीयू और दो बार आरजेडी जीती है। यह आरजेडी का गढ़ है। नरकटिया से आरजेडी के शमीम अहमद विधायक हैं।

हरसिद्धि: साल 1952 में पहली बार कांग्रेस जीती। फिर कांग्रेस, जनता पार्टी आरजेडी ने सीटें जीतीं। 6 बार कांग्रेस, एक बार CPI, एक बार LJP, एक बार समता पार्टी, एक बार आरजेडी और दो बार बीजेपी जीत चुकी है। अभी यह सीट बीजेपी के कब्जे में है। कृष्णानंद पासवान यहां से विधायक हैं। 

गोबिन्दगंज: यह विधानसभा 1952 में अस्तित्व में आई थी। यहां से 7 बार कांग्रेस जीत चुकी है, जनसंघ एक बार, सपता पार्टी 2 बार, जनता दल एक बार और जेडीयू 2 बार चुनाव जीत चुकी है। लोक जनशक्ति पार्टी को भी एक बार जीत मिली। 2020 में यहां से सुनील मणि तिवारी चुनाव जीते, वह बीजेपी से हैं। 

केसरिया: साल 1952 में पहली बार चुनाव हुए थे। शुरुआत के 2 चुनावों में कांग्रेस जीती। 4 बार कांग्रेस, 6 बार CPI, एक बार जनता पार्टी, एक बार समपा पार्टी, 2 बार जेडीयू, एक बार बीजेपी और दो बार आरजेडी जीती। यहां से जेडीयू की शालिनी मिश्रा विधायक हैं। 

कल्याणपुर: कल्याणपुर (एससी) विधानसभा साल 2008 में अस्तित्व में आई थी। साल 2010 में यहां पहली बार चुनाव हुए। जेडीयू की नेता रजिया खातून चुनाव जीतीं। 2015 में सचिंद्र प्रसाद सिंह और 2020 में आरजेडी के मनोज कुमार यादव चुनाव जीते। 

पीपरा: पिपरा विधानसभा साल 1969 में अस्तित्व में आई। यहां से 3 बार कांग्रेस, 2 बार CPI, 2 बार जनता दल,  आरजेडी एक बार, जेडीयू एक बार और बीजेपी 3 बार चुनाव जीती है। बीजेपी नेता श्यामबाबू प्रसाद यादव यहां से विधायक हैं। 

मोतिहारी: मोतिहारी विधानसभा सीट साल 1952 में अस्तित्व में आई थी। यहां 7 बार कांग्रेस, एक बार भारतीय जनसंघ, 3 बार CPI, एक बार RJD और 4 बार बीजेपी चुनाव जीत चुकी है। बीजेपी नेता प्रमोद कुमार यहां से विधायक हैं। 

मधुबन: इस विधानसभा पर साल 1957 में पहली बार चुनाव हुए। निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। यहां वामदल भी एक अरसे तक मजबूत रहे। 3 बार कांग्रेस, 3 बार CPI, एक बार जनता पार्टी, 2 बार जनता दल, 2 बार आरजेडी, एक बार जेडीयू और दो बार बीजेपी चुनाव जीती। यहां से राणा रणधीर सिंह विधायक हैं। 

चिरैया: साल 2008 में हुए परिसीमन के बाद पहली बार 2010 में चुनाव हुए। यह विधानसभा बीजेपी का गढ़ बन गई है। पहले विधायक अवनीश कुमार सिंह हैं। दो बार से लगातार लाल बाबू प्रसाद गुप्ता चुनाव जीत रहे हैं।  

ढाका: साल 1952 में पहली बार यहां चुनाव हुए। तब कांग्रेस पार्टी के मसदूर रहमान विधायक चुने गए थे। यहां 6 बार कांग्रेस, एक बार CPI, एक बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, एक बार जनता पार्टी, 4 बार बीजेपी, 2 बार आरजेडी चुनाव जीती है। मौजूदा विधायक बीजेपी नेता पवन कुमार जायसवाल हैं।

जिले का प्रोफाइल

पूर्वी चंपारण की आबादी करीब  5,099,371 है। जिले में लिंगानुपात 1000 पुरुषों पर 902 महिला है। साक्षरता दर 55 फीसदी से ज्यादा है। जनसंख्या घनत्व 1,285 है। यह जिला 3968 वर्ग किलोमीटर में फैला है।  क्षेत्रफल 1285 वर्ग किलोमीटर है। 

  • कुल सीटें- 12
    किसके पास कितनी सीटें?
  • बीजेपी- 9
  • आरजेडी- 3
  • जेडीयू-1

चुनाव कब हैं?

पूर्वी चंपारण में 11 नवंबर को चुनाव होगा। 13 से 20 अक्टूबर तक नामांकन होगा। 

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