रूसी कंपनी पर अमेरिकी प्रतिबंध का भारत पर कैसा असर होगा?
पिछले तीन साल से भारत ने रूसी कच्चे तेल का जमकर आयात किया। उसे अमेरिकी टैरिफ के तौर पर खामियाजा भी भुगतना पड़ा। इस बीच रूस की सबसे बड़ी तेल कंपनी रोसनेफ्ट पर ट्रंप ने प्रतिबंध लगा दिया है। इसका असर भारत पर भी पड़ सकता है। जानते हैं पूरा मामला।

रूसी तेल कंपनी पर अमेरिकी प्रतिबंध। (AI generated image)
रूस की एनर्जी कंपनियों के खिलाफ अमेरिका और यूरोप ने एक साथ बड़ा कदम उठाया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूसी तेल कंपनी लुकोइल और रोसनेफ्ट पर प्रतिबंध लगाया है। दूसरी तरफ यूरोप ने रूसी एलएनजी पर रोक लगा दी है। इन कदमों का उद्देश्य ईंधन निर्यात से रूस की होने वाली कमाई पर लगाम लगाना है। चीन के बाद भारत रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार है। इस प्रतिबंध का असर न केवल भारत, बल्कि दुनियाभर के उन तमाम देशों पर पड़ेगा, जो रूस की इन कंपनियों से तेल खरीदते हैं। रोसनेफ्ट और भारतीय कंपनियों के बीच गहरे व्यापारिक संबंध हैं। भारत में उसने लगभग 20 बिलियन डॉलर का निवेश कर रखा है।
क्या भारत और चीन को भी लगेगा झटका?
रोसनेफ्ट और लुकोइल प्रतिदिन 31 लाख बैरल तेल का निर्यात करते हैं। यह रूस की विदेश में किए गए कच्चे तेल निर्यात का करीब 70 फीसद है। अगर केवल रोसनेफ्ट की बात करें तो यह कंपनी रूस के आधे से अधिक कच्चे तेल का उत्पादन करती है। सितंबर में रूस के कच्चे तेल का करीब 47 फीसद हिस्सा चीन और 38 फीसद भारत ने खरीदा है। मगर अमेरिका के नए प्रतिबंध से भारत और चीन को झटका लग सकता है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कई वरिष्ठ रिफाइनरी अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इन प्रतिबंधों के कारण रूस से तेल खरीद जारी रखना असंभव हो जाएगा।
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गुरुवार को समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने बताया कि भारतीय सरकारी रिफाइनरियां अपने रूसी तेल व्यापार दस्तावेजों की समीक्षा कर रही हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि रोसनेफ्ट और लुकोइल से सीधे तौर पर कोई आपूर्ति न हो। बीबीसी की खबर के मुताबिक रिलायंस भी प्रतिबंधों के जवाब में रूस से अपने कच्चे तेल के आयात को पुनः संतुलित कर रहा है।
क्या भारतीय कंपनियों पर भी एक्शन लेगा अमेरिका?
अमेरिका ने साफ कहा है कि अगर रूस ने युद्ध नहीं रोका तो वह आगे भी एक्शन लेगा। इस बीच अमेरिकी विदेश विभाग के पूर्व वरिष्ठ प्रतिबंध अधिकारी एडवर्ड फिशमैन ने एक्स पर लिखा, 'क्या अमेरिका चीनी बैंकों, यूएई व्यापारियों और रोसनेफ्ट व लुकोइल के साथ लेन-देन करने वाली भारतीय रिफाइनरियों पर द्वितीयक प्रतिबंध लगाने की धमकी देगा?' अब आशंका इस बात की है कि यूरोपीय यूनियन की तरह कहीं अमेरिका भी भारतीय कंपनियों को अपना निशाना न बना ले।
नायरा एनर्जी पर रोसनेफ्ट ने कितना पैसा लगाया?
साल 2017 में रोसनेफ्ट में भारत की निजी रिफाइनर एस्सार ऑयल का अधिग्रहण 12.9 बिलियन डॉलर में किया। बाद में एस्सार ऑयल का नाम बदलकर नायरा एनर्जी किया गया। नायरा एनर्जी के पास गुजरात के वाडिनार में दो करोड़ टन क्षमता की रिफाइनरी और 6,750 पेट्रोल पंप हैं। इसमें रोसनेफ्ट की 49.13 फीसद हिस्सेदारी है। रोसनेफ्ट भारत को एक रणनीतिक साझेदार मानती है। कंपनी के मुताबिक भारत और उसके बीच तेल और पेट्रोलियम प्रोडक्ट के उत्पादन, तेल शोधन और व्यापार में भारतीय कंपनियों के साथ गहरा सहयोग है। पिछले साल भारत सरकार ने एक बयान में बताया था कि रोसनेफ्ट ने भारत में 20 अरब डॉलर का निवेश किया है।
रूसी तेल कंपनियों में भारत की कितनी हिस्सेदारी?
साल 2016 से भारत की ओएनजीसी विदेश लिमिटेड, ऑयल इंडिया लिमिटेड, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन और भारत पेट्रोरिसोर्सेज की वैंकोरनेफ्ट की सहायक कंपनी में 49.9% हिस्सेदारी है। इसके अलावा ऑयल इंडिया लिमिटेड, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन और भारत पेट्रोरिसोर्सेज के पास तास-युर्याख नेफ्टेगाजोडोबाइचा में भी 29.9% हिस्सेदारी है। इन कंपनी के अन्य शेयरधारकों में रोसनेफ्ट भी शामिल है। वैंकोरनेफ्ट कंपनी का स्वामित्व भी रोसनेफ्ट के पास है। साल 2001 से सखालिन-1 प्रोजेक्ट में भारत की कंपनी ओएनजीसी विदेश लिमिटेड की पार्टनरशिप है। अन्य शेयरधारकों में रोसनेफ्ट, एक्सॉनमोबिल और जापान की सोडेको शामिल है।
नायरा पर यूरोपीय यूनियन लगा चुका प्रतिबंध
कुछ दिन पहले यूरोपीय संघ ने अपने 18वें प्रतिबंध के तहत नायरा एनर्जी पर प्रतिबंध लगाया था। रूसी कंपनी के कनेक्शन के चलते यूरोपीय यूनियन ने यह कदम उठाया है। हालांकि डोनाल्ड ट्रंप ने सिर्फ रूसी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया है। अभी चीन और भारत को इससे अलग रखा गया है।
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रूस से कितना तेल खरीदता है भारत?
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के आंकड़ों के मुताबिक चीन के बाद भारत रूसी तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार है। सितंबर महीने में रूस के कच्चे तेल निर्यात का 47 प्रतिशत चीन ने खरीदा। वहीं 38 प्रतिशत हिस्सा भारत ने खरीदा। साल 2024 में चीन ने 109 मिलियन टन कच्चा तेल रूस से मंगवाया। वहीं भारत ने 88 मिलियन टन कच्चा तेल रूस से आयात किया। शिपिंग एनालिटिक्स कंपनी केप्लर के आंकड़े बताते हैं कि भारत ने सितंबर महीने में हर रोज 1.6 मिलियन बैरल कच्चा तेल रूस से मंगवाया।
अमेरिका ने क्यों लगाया प्रतिबंध?
अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप ने पहली बार रूस पर प्रतिबंध लगाया है। इस बीच यूरोपीय संघ ने भी 19वें रूसी प्रतिबंध पैकेज को हरी झंडी दे दी। ट्रंप का कहना है कि यूक्रेन युद्ध को खत्म करने की खातिर रूस युद्धविराम वार्ता में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेन्ट का दावा है कि पुतिन यूक्रेन युद्ध को खत्म करने से मना कर रहे हैं। इसलिए यह प्रतिबंध रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों लुकोइल और रोसनेफ्ट को निशाना बनाएंगे।
प्रतिबंध लगाकर क्या हासिल करना चाहता है अमेरिका?
अमेरिका को लगता है कि रूसी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने से पुतिन झुक जाएंगे। यूक्रेन युद्ध रोकने का यही सर्वोत्तम तरीका है। रूस से पहले अमेरिका ने भारत को निशाना बनाया। रूसी तेल खरीदने के बहाने भारतीय सामान पर 50 फीसद टैरिफ लाद दिया। बावजूद इसके भारत ट्रंप के आगे नहीं झुका। अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेन्ट ने कहा, 'आज की कार्रवाई से रूस के ऊर्जा क्षेत्र पर दबाव बढ़ेगा और क्रेमलिन को युद्ध मशीन के लिए राजस्व जुटाने और अपनी कमजोर अर्थव्यवस्था को सहारा देने की क्षमता में कमी आएगी'
आगे क्या?
अमेरिकी वित्त विभाग ने लुकोइल और रोसनेफ्ट और उनकी दर्जनों सहायक कंपनियों को निशाना बनाया है। अमेरिका में मौजूद इन कंपनियों की संपत्ति को सीज कर दिया जाएगा। अमेरिका का कोई भी नागरिक और कंपनी व्यापार नहीं कर सकेगी। अमेरिकी वित्त विभाग ने प्रतिबंध के साथ-साथ रूस को धमकी दी है। उसने कहा कि अगर रूस यूक्रेन युद्ध जारी रखता है तो अमेरिका आगे की कार्रवाई करने को तैयार है। वित्त मंत्री स्कॉट बेसेन्ट ने कहा कि हम अपने सहयोगियों को शामिल होने और इन प्रतिबंधों का पालन करने की अपील करेंगे। मतलब साफ है कि अमेरिका अन्य देशों पर रूस पर लगे प्रतिबंध को मानने और उस पर नए एक्शन लेने का दबाव बनाएगा।
रूस के खिलाफ यूरोप भी सख्त
अमेरिका से पहले यूनाइटेड किंगडम रोसनेफ्ट और लुकोइल कंपनी पर बैन लगा चुका है। उधर, यूरोपीय यूनियन ने मास्को के खिलाफ प्रतिबंधों के अपने 19वें पैकेज को मंजूरी दी है। नए पैकेज के तहत रूस के साथ अल्पकालिक एलएनजी अनुबंध छह महीने बाद खत्म हो जाएगा। वहीं दीर्घकालिक अनुबंध एक जनवरी 2027 से खत्म होगा।
कितनी बड़ा रोसनेफ्ट और लुकोइल का साम्राज्य?
राजस्व के लिहाज से गैस क्षेत्र की दिग्गज गजप्रोम रूस की सबसे बड़ी कंपनी है। दूसरे स्थान पर रोसनेफ्ट है। इस पर सरकार का नियंत्रण हैं। तीसरे स्थान पर लुकोइल है। यह एक गैर-सरकारी कंपनी है। दुनियाभर में प्रतिबंधों के कारण न केवल रोसनेफ्ट, बल्कि लुकोइल का राजस्व भी गिर रहा है। रोसनेफ्ट की शुद्ध आय में साल दर साल 68 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। वहीं पिछले साल लुकोइल के मुनाफे में 26.5 फीसद की कमी आई है।
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