वे 5 जज जिन पर महाभियोग लाने की हुई तैयारी, जानें क्या है प्रक्रिया?
भारत में समय समय पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कई जज विवादों के घेरे में आते रहे हैं और इनमें से तमाम को हटाने की प्रक्रिया भी शुरू की गई। जानें कौन से ये जज और क्या है इनको हटाने की प्रक्रिया?

वी रामास्वामी, सौमित्र सेन और दीपक मिश्रा । Photo Credit: Khabargaon
दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर में कैश मिलने के बाद से ही यह मामला न सिर्फ मीडिया में छाया हुआ है बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने भी जांच के लिए तीन सदस्यीय पैनल गठित कर दिया है।
जज से जुड़ी करप्शन की खबर काफी चौंकाने वाली होती है। लोगों के लिए इस बात को स्वीकार कर पाना काफी मुश्किल होता है, लेकिन यह पहली बार नहीं है जब ऐसा हुआ है। इससे पहले भी कई जज विवादों में रहे हैं और उनके ऊपर तरह तरह के चार्जेज़ लग चुके हैं।
इस लेख में हम आपको बताएंगे कि इनसे पहले कौन कौन से जज रहे हैं जिनके खिलाफ चार्जेज़ लगे हैं।
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वी रामास्वामी
जस्टिस वी रामास्वामी पहले जज थे जिनके खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई शुरू की गई थी। जस्टिस वी रामास्वामी पर आरोप लगाया गया था कि पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश रहते हुए उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान आधिकारिक आवास पर गलत खर्चों को दिखाया था।
इस मामले में बीजेपी औऱ वामपंथी दलों ने उन्हें पद से हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव दिया था। इस मामले में उनके खिलाफ 1993 में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया। हालांकि, यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका और उन्हें पद से नहीं हटाया जा सका।
सौमित्र सेन
जस्टिस सौमित्र सेन कलकत्ता हाई कोर्ट के पूर्व जज थे जिनके ऊपर पैसे का हेरफेर करने का आरोप लगा था। उनके ऊपर 1983 के एक मामले में 33.23 लाख रुपये की हेराफेरी और कलकत्ता की एक अदालत के सामने तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने के आरोप का दोषी पाया गया था।
इसके बाद उनके खिलाफ महाभियोग लाया गया। प्रस्ताव राज्यसभा में पास भी हो गया था लेकिन लोकसभा में प्रस्ताव आने के पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
जेबी पारदीवाला
गुजरात हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस जेबी पारदीवाला द्वारा आरक्षण पर दिए गए बयान ने विवादों को जन्म दिया। एक मामले की सुनवाई करते हुए उन्होंने कहा था कि आरक्षण 'एमीबॉइड मॉन्स्टर' की तरह है जो कि लोगों के बीच कलह पैदा कर रहा है। उन्होंने आगे कहा कि किसी भी समाज में योग्यता के महत्त्व को कम करके नहीं आंका जा सकता।
जस्टिस पारदीवाला की इस टिप्पणी से कुछ राज्यसभा सांसद इतने नाराज हो गए कि उनके खिलाफ शिकायत लेकर तत्कालीन उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति मोहम्मद हामिद अंसारी के पास पहुंच गए. इन सांसदों ने पारदीवाला के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की अर्जी भी दे दी. जिसके बाद कोर्ट ने टिप्पणियां वापस ले लीं.
सीवी नागार्जुन
साल 2016 में आंध्र एवं तेलंगाना हाई कोर्ट के जस्टिस नागार्जुन रेड्डी पर एक दलित जज को प्रताड़ित करने के लिए अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने का आरोप लगा था। उनके खिलाफ राज्यसभा के 61 सदस्यों ने महाभियोग चलाने के लिए याचिका दी थी। हालांकि बाद में उनमें से 19 सदस्यों ने अपना हस्ताक्षर वापस ले लिया था।
दीपक मिश्रा
जस्टिस दीपक मिश्रा भारत के एक मात्र मुख्य न्यायाधीश हैं जिनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की गई। उनके ऊपर कांग्रेस पार्टी ने कई आरोप लगाए थे जिनमें जमीन हड़पने से लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज के खिलाफ सीबीआई को केस दर्ज करने की मंजूरी न देने तक के आरोप शामिल थे।
कांग्रेस ने जस्टिस दीपक मिश्रा के ऊपर कुल 5 आरोप लगाए थे और 64 सांसदों ने इस संदर्भ में हस्ताक्षर किया हुआ नोटिस तत्कालीन उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति वैंकैया नायडू को सौंपा था। हालांकि, वैंकैया नायडू ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया था।
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जस्टिस पीडी दिनाकरन
साल 2009 में सिक्किम हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस पीजी दिनाकरन पर भ्रष्टाचार और कदाचार का आरोप लगा था। उनके ऊपर जमीन पर कब्जा करने और आय से अधिक संपत्ति के मामले में राज्यसभा की एक समिति जांच कर रही थी। लेकिन सुनवाई से एक दिन पहले ही उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उनका तर्क था कि उनके पद पर बने रहने से ज्युडिशियरी को लेकर लोगों के मन में विश्वास में कमी आएगी।
क्या है महाभियोग की प्रक्रिया
संविधान में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज को हटाने की एक खास प्रक्रिया निर्धारित की गई है जिसे महाभियोग की प्रक्रिया कहा जाता है। संविधान के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के किसी जज को संसद की ओर से निर्धारित प्रक्रिया के जरिए केवल प्रमाणित कदाचार और अक्षमता के आधार पर ही हटाया जा सकता है।
प्रावधान के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के किसी जज को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जा सकता जब तक कि संसद के दोनों सदन बहस के बाद महाभियोग प्रस्ताव को उस सदन के कुल सदस्यों में से कम से कम दो तिहाई सदस्यों का समर्थन न हासिल हो।
इसके बाद उस प्रस्ताव को राष्ट्रपति मंजूरी देते हैं. यह प्रस्ताव जिस सत्र में लाया जाता है, उसी सत्र में उसे पारित कराना जरूरी है. इसमें जज के कदाचार या उसकी अक्षमता का साबित करना होता है. इसका मतलब यह हुआ कि महाभियोग के प्रस्ताव का लोकसभा और राज्य सभा के सदस्यों में से 50 फीसदी से अधिक का समर्थन होना जरूरी है. संसद में मतदान के जरिए प्रस्ताव के पारित हो जाने पर राष्ट्रपति जज को हटाने का आदेश जारी करते हैं.
किसी भी सदन में हो सकता है शुरू
महाभियोग की प्रक्रिया किसी भी सदन में शुरू हो सकती है। प्रस्ताव लाने के लिए लोकसभा में कम से कम 100 सदस्यों और राज्य सभा में कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन होना जरूरी है।
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गठित होती है जांच समिति
लोकसभा के अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति जांच के लिए एक तीन सदस्यीय पैनल का गठन करते हैं। यह पैनल जांच करने के बाद अपनी रिपोर्ट को संबंधित सदन में रखता है। फिर इसे सदन के पटल पर रखा जाता है। अगर रिपोर्ट में दोष सिद्ध नहीं होता तो वह वहीं खत्म हो जाता है और अगर दोष सिद्ध होता है तो संबंधित सदन जांच रिपोर्ट को स्वीकार करता है। इसके बाद दोनों सदन दो तिहाई बहुमत से अगर प्रस्ताव को पास कर देते हैं तो राष्ट्रपति जज को हटाने का आदेश पारित करते हैं।
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