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दोस्ती, अपराध और अदावत..., क्या है धनजंय सिंह और अभय सिंह की दुश्मनी की कहानी?

धनंजय सिंह और अभय सिंह की अदावत इन दिनों फिर से चर्चा में है। दोनों इंटरव्यू के जरिए एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। आखिर क्या है इन दोनों की कहानी?

abhay singh vs dhananjay singh

अभय सिंह vs धनंजय सिंह, Photo Credit: Sora AI

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इन दिनों सोशल मीडिया पर दो बाहुबली नेता खूब चर्चा में हैं। एक हैं उत्तर प्रदेश की जौनपुर लोकसभा सीट से सांसद रहे धनंजय सिंह और दूसरे हैं गोसाईंगंज विधानसभा सीट के मौजूदा विधायक अभय सिंह। कहा जाता है कि एक वक्त पर दोनों की अच्छी बनती थी लेकिन लंबे समय से दोनों एक-दूसरे के दुश्मन बन हैं। यह दुश्मनी इस कदर बढ़ चुकी है कि आज भी दोनों एक-दूसरे के खिलाफ देश की कई अदालतों में मुकदमे लड़ रहे हैं। हाल ही में कफ सिरप के मामले में जब धनंजय सिंह के करीबियों का नाम आया तो उन्होंने एक इंटरव्यू में अपना पक्ष रखा। इसी बहाने वह अभय सिंह पर भी निशाना साधते नजर आए। हमला हुआ तो पलटवार करने के लिए अभय सिंह ने भी एक इंटरव्यू में कई जवाब दिए और कुछ सवाल दिए। 

 

अब इन दोनों नेताओं की अदावत की कहानी खूब चर्चा में है। इस कहानी के कई किरदारों में एक किरदार का नाम मुख्तार अंसारी है, एक किरदार का नाम गुड्डू मुस्लिम है तो एक किरदार का हरिशंकर तिवारी है। एक फोन कॉल का जिक्र है, कभी अखिलेश यादव तो कभी योगी आदित्यनाथ से करीबी का जिक्र है और जिक्र है खुद को बड़ा बाहुबली साबित करने की कोशिश का। आइए विस्तार से समझते हैं कि आखिर ये दो ठाकुर नेता आखिर एक-दूसरे के जानी दुश्मन कैसे बन गए।

लखनऊ यूनिवर्सिटी से शुरू हुई दोस्ती

 

1991 में लखनऊ यूनिवर्सिटी में धनंजय सिंह, अभय सिंह और अरुण उपाध्याय खूब सक्रिय थे। तीनों जौनपुर से ही आए थे। 1994 में अरुण उपाध्याय को महामंत्री को चुनाव लड़वाया गया लेकिन चुनाव में हार हुई। धीरे-धीरे जौनपुर से आए ये युवा ठेकों में अपनी पकड़ बनाने लगे। इन लोगों ने उस वक्त के माफिया अजीत सिंह से टक्कर ली। अभय सिंह को एक बड़ा ठेका मिला लेकिन कुछ दिन बाद मनीष सिंह की हत्या कर दी गई। कहा जाता है कि इसी घटना ने अभय सिंह और धनंजय सिंह की दोस्ती में दरार डाल दी। मामला था ठेके में हिस्सेदारी का लेकिन बात नहीं बनी।

 

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1996 में अभय सिंह की गिरफ्तारी हुई और धनंजय सिंह फरार हो गए। कहा जाता है कि उस वक्त दोनों के बीच मनमुटाव की एक वजह यह थी कि जेल में बंद अभय सिंह को ठेके और अन्य कामों की कमाई से कम पैसे मिल रहे थे। अभय सिंह को सूचना मिली के सारे पैसे धनंजय सिंह के पास जा रहे हैं। इसी बीच धनंजय सिंह के फेक एनकाउंटर की भी खबरें आईं। अभय सिंह के जेल में रहते ही उनके रिश्तेदार संतोष सिंह की हत्या हुई और इसने आग में घी का काम कर दिया। 

धनंजय सिंह से क्यों नाराज हुए अभय सिंह?

 

संतोष सिंह नाम के शख्स की हत्या के मामले पर अभय सिंह कहते हैं, 'हमारे बगल के गांव सराय राशि का रहने वाला लड़का था संतोष सिंह। हमारी पटीदारी थी, भैवादी थी, हमसे मिलने वह आता था। धनंजय सिंह ने इन्होंने फोन करके बुलाया और दूसरी पार्टी से पैसा लेकर उसकी हत्या कर दी। इन्होंने हमारे हमारे नाम पर उसे बुलाया और हत्या की और हमारे संबंधों को कलंकित करने का काम किया। इन परिस्थितियों में संबंध कैसे रह सकता था?'

 

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1996 से साल 2000 तक अभय सिंह जेल में बंद रहे और धनंजय सिंह फरार रहे। 17 अक्टूबर 1998 को भदोही पुलिस ने एलान किया कि 50 हजार के इनामी धनंजय सिंह को एनकाउंटर में मार गिराया गया। असलियत यह थी कि धनंजय सिंह का पुलिस से आमना-सामना ही नहीं हुई। 11 जनवरी 1999 में धनंजय सिंह सबके सामने आ गए। धनजंय सिंह ने साल 2002 में विधानसभा का चुनाव लड़ लिया। धनंजय सिंह ने रारी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और विधायक बन गए। अभय सिंह ने भी चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं मिली। कहा जाता है कि अदावत इतनी बढ़ गई कि अभय सिंह ने धनंजय सिंह पर हमला कर दिया और वह घटना टकसाल सिनेमा शूटआउट के नाम से मशहूर हो गई।

 

मुकदमों के बारे में धनंजय सिंह का कहना है कि अब उनके खिलाफ सिर्फ 4 मुकदमे चल रहे हैं। एक मामले में उन्हें 7 साल की सजा भी हुई है लेकिन हाई कोर्ट से जमानत मिलने के बाद वह जेल से बाहर हैं। अभय सिंह के बारे में धनंजय सिंह का कहना है, '1997 का एक मामला है। अंबेडकर उद्यान के एक JE गोपाल शरण श्रीवास्तव का मर्डर हुआ। मेरा कोई लेनादेना नहीं था। तत्कालीन SSP रजनीकांत मिश्रा से मैंने फोन पर बात की और कहा कि ऐसे केस में मेरा भविष्य खराब हो जाएगा। उन्होंने कहा कि आप सरेंडर कर दीजिए वरना आप मार दिए जाएंगे। हमने बहुत कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली। उसी दौरान हम पर इनाम घोषित कर दिया।'

 

वह आगे कहते हैं, 'छात्रसंघ चुनाव के समय हम लोग जौनपुर से आए। हमारे साथ एक लड़का अरुण उपाध्याय था, उसकी इच्छा चुनाव लड़ने की थी। मैंने उसे चुनाव लड़वाया। उसी दौरान अभय सिंह, बबलू श्रीवास्तव गैंग के संपर्क में आ गया था। उसी वक्त यह नेपाल चला गया था और मिर्जा बेग के संपर्क में आ गया था। तब यह भागकर मेरे घर आ गया कि मुझे चुनाव लड़वा दो, वरना मेरा एनकाउंटर हो जाएगा। तब मैंने कहा कि नहीं चुनाव तो अरुण लड़ेंगे। फिर चुनाव नहीं लड़ा और चला गया। वहीं से टकराव शुरू हुआ। उसी के बाद 6 जनवरी 1996 को इन लोगों ने लखनऊ में एक मर्डर कर दिया। उस वक्त मैं जौनपुर में था। हेमेंद्र सिंह का मर्डर हुआ, उसमें मैं नामजद आरोपी बना। अभय सिंह मुख्य अभियुक्त था, केडी सिंह आरोपी थे। राजेश पांडेय (रिटायर्ड IPS) सीओ सिटी जौनपुर रहे थे तो हम लोगों का संपर्क था। हमने उनसे बात की लेकिन हम लोग मुल्जिम बन गए।'

 

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2002 की घटना के बारे में धनंजय सिंह कहते हैं, '2002 में BSP की सरकार थी और धनंजय सिंह BSP से चुनाव लड़े थे। मैंने सुरक्षा मांगी थी लेकिन मुझे सुरक्षा नहीं दी गई। मेरे ऊपर हमला हुआ तब हमें सुरक्षा दी गई लेकिन मैंने इनकार कर दिया। 4 अक्टूबर को मुझ पर गोली चली और 11 अक्टूबर को सरकार ने मंत्रिमंडल का विस्तार किया। निर्दलीयों को मंत्री नहीं बनाया गया तो हमने 25 अक्टूबर को समर्थन वापस ले लिया। पुलिस ने कानपुर में सरेंडर दिखाया और अभय सिंह आदि की मदद शुरू हो गई। यह अनोखा केस था कि गैंग लीडर अभय सिंह के खिलाफ फाइनल रिपोर्ट लगाकर उसे जमानत दे दी गई और बाकी आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई।'

कृष्णानंद राय हत्याकांड और कथित ऑडियो

 

जब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के विधायक कृष्णानंद राय की हत्या हुई तो उसके कुछ दिन बाद एक ऑडियो चर्चा में आया। कथित तौर पर यह बातचीत मुख्तार अंसारी और अभय सिंह की है। इसमें एक शख्स दूसरे को सूचना देता है कि मुन्ना बजरंगी और कृष्णानंद राय पर फायरिंग हो रही है। दूसरा शख्स पूछता है- 'दोनों तरफ से हो रही है या एक तरफ से?' जवाब आता है, 'जय श्री राम।' इसमें एक शख्स कहता है, 'अच्छा हुआ आप जेल में बंद हैं वरना आप पर ही नाम आता और मेरा नाम आता कि अभय सिंह ही करवा दिए।'

 

मुख्तार अंसारी और अपने इस कथित ऑडियो के बारे में अभय सिंह कहते हैं, 'वह एक फैब्रिकेटेड ऑडियो है। उसे न तो STF और ना ही CBI किसी कोर्ट में पेश कर पाई है। ना ही उसके लिए हमारा कभी बयान लिया गया, ना ही कभी मुझे उसके लिए तलब किया गया और ना ही कभी पुलिस ने मुझसे उसके बारे में पूछताछ की। जब मन होता है, जब पुलिस की कोई असफलता होती है तो चला देते हैं।'

टकसाल सिनेमा शूटआउट

 

4 अक्तूबर 2002 को वाराणसी के टकसाल सिनेमा के पास धनजंय सिंह के काफिले पर ताबड़तोड़ गोलीबारी हुई। धनजंय सिंह का कहना है कि अभय सिंह और उनके लोगों ने यह हमला किया। कहा जाता है कि इस हमले में AK-47 का इस्तेमाल हुआ और दोनों तरफ से काफी देर तक गोलियां चलीं। यह भी कहा जाता है कि अभय सिंह की करीबी उस वक्त मुख्तार अंसारी से हो गई थी और इस हमले में मुख्तार ने ही अभय की मदद की थी। जो एफआईआर दर्ज हुई उसमें अभय सिंह के अलावा 6 अन्य लोगों के नाम भी दर्ज हुए। आज तक इसका मुकदमा चल रहा है।

 

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हाल ही में 'द रेड इंक' चैनल को दिए इंटरव्यू में अभय सिंह कहते हैं, '1992 में पेट्रोल पंप लूट केस में गुड्डू मुस्लिम जेल में बंद हुआ, राजबली यादव के बेटे को गोली मारने के मामले में धनंजय सिंह जेल में बंद हुए। वहीं से धनंजय सिंह और गुड्डू मुस्लिम की दोस्ती हो गई। मेरे नाना (राजकिशोर सिंह) प्रभावशाली नेता थे इसलिए गुड्डू मुस्लिम ने मेरा नाम लिया। उसने मेरा नाम लिया ताकि पुलिस उसका एनकाउंटर न कर दिया। अगर हम उस घटना में होते तो गुड्डू मुस्लिम के साथ हम भी गिरफ्तार होते। गोम्स का मर्डर हो, धनंजय सिंह ने संतोष सिंह के साथ गद्दारी करके उसे मार दिया।'

 

धनंजय सिंह के बारे में अभय सिंह का कहना है, 'वह खुद को ऐसे दिखाता है जैसे जेपी आंदोलन से निकला नेता हो और दूसरों को छोटा दिखाने की कोशिश करता है। आप पुराने पत्रकारों से पूछ लो, उस समय के अखबारों में छपा करता था- अभय सिंह का गुर्गा, अभय सिंह का चेला, अभय सिंह के पीछे चलने वाला। अब अपने आप को बड़ा दिखाने के लिए यह फर्जी बताएं बताया करता है।'

अभय सिंह vs धनंजय सिंह

 

वहीं, धनंजय सिंह कहते हैं कि अभय सिंह मुख्तार अंसारी के गुर्गे हुआ करते थे। इसके बारे में पूछे गए सवाल पर अभय सिंह कहते हैं, 'मैं लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ता था, धनंजय मुझसे बाद में आया। इसका एडमिशन फॉर्म मेरे दोस्त पीयूष सिंह ने भरा। मैंने हॉस्टल दिलाया। उस समय यह आजमगढ़ के एक बदमाश वंश बहादुर सिंह के साथ रहता था और उनकी गाड़ी चलाता था। उन्हीं के माध्यम से इसके कई बदमाशों से संबंध थे। इसने हॉस्टल में मुख्तार चालीसा शुरू किया। सारे बदमाशों को हॉस्टल में लाना, रुकवाना यही सब यह करता था।'

 

धनंजय आगे कहते हैं, 'एक बार यह मेरे पास आया और बोला कि हरिशंकर तिवारी ने एक मकान पर कब्जा पर कर लिया है, उसे छुड़वाना है। हम लोग गए और कब्जा छुड़वा लिया। हम लोगों के साथ एक लड़का था अभिषेक सिंह। अभिषेक सिंह के फोन पर गाजीपुर जेल से फोन आया कि मुख्तार अंसारी बोल रहा हूं, धनंजय सिंह से बात करवाओ। यह कूदकर ऐसे गया जैसे भगवान का संदेश आ गया। फोन पर इसको मुख्तार ने कहा- उस मकान को छोड़ दो और जाओ बाबा (हरिशंकर तिवारी) से माफी मांग लो। यह मेरे पास आया और बोला कि माफी मांगने चलना है, मुख्तार भाई साहब का फोन आया है। मैंने कहा कि भाई साहब होंगे तुम्हारे, मैं माफी मांगने नहीं जाऊंगा। यह गया और माफी मांगकर आया कि ऐसी गलती दोबारा नहीं होगी। आप इसकी पु्ष्टि उस वक्त के छात्र नेताओं से कर सकते हैं। सारा काम इन्होंने किया और मुझे मुख्तार का चेला बताते हैं।'

 

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धनजंय सिंह की छात्र राजनीति के बारे में अभय सिंह का कहना है, 'इसको कोई जानता तक नहीं था, ना कभी इसका कोई पोस्टर लगा। मैं UPSC की तैयारी करने दिल्ली जाने लगा तो रात भर मेरा पैर पकड़कर बैठा रहा, मुझे सोने नहीं दिया कि रुके रहो अरुण उपाध्याय को चुनाव लड़ा दो। असल में इसके आका वंश बहादुर का निर्देश था कि तुम्हें अरुण उपाध्याय को चुनाव लड़ाना है।'

 

लखनऊ यूनिवर्सिटी में उस वक्त हुई घटनाओं को लेकर अभय सिंह और धनंजय सिंह अपना-अपना पक्ष रखते हैं। दोनों का कहना है कि यहीं से दोनों के खिलाफ मुकदमे दर्ज होना शुरू हुआ। दोनों एक-दूसरे को छोटा साबित करने के लिए तमाम तर्क देते हैं। जिन आपराधिक घटनाओं का जिक्र आता है, उसमें दोनों एक-दूसरे को दोषी बताते हैं। अभय सिंह का कहना है कि धनंजय सिंह, मुख्तार अंसारी के करीबी थे। वहीं, धनंजय सिंह दावा करते हैं कि जेल में बंद रहने के दौरान अभय सिंह हर दिन मुख्तार अंसारी के पैर छुआ करते थे।

 

कुल मिलाकर धनंजय सिंह और अभय सिंह ही अपने मुंह से बताते हैं कि अदावत तो है। अदावत अब अदालत में भी है और स्पष्ट रूप से प्रतिद्वंद्विता चल रही है। फिलहाल, पिछले कुछ सालों में किसी आपराधिक घटना में ये दोनों सीधे तौर पर संलिप्त तो नहीं हुए लेकिन जुबानी जंग जारी है।

 

 


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