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फिल्मों के लिए सेंसर बोर्ड, सोशल मीडिया बेलगाम क्यों? वजहें समझिए

इंस्टाग्राम हो या X, सोशल मीडिया पर अश्लील कॉन्टेंट बिना किसी रोकटोक के वायरल होते हैं। सुप्रीम कोर्ट की चिंता के बाद भी कोई रेग्युलेटरी बॉडी अब तक नहीं बनी है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर। (Photo Credit: Sora)

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सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया और यूट्यूब-ओटीटी कॉन्टेंट को रेग्युलेट करने के लिए एक स्वतंत्र और तटस्थ संस्था बनाने की जरूरत बताई है। सुप्रीम  कोर्ट ने कहा कि सिर्फ प्लेटफॉर्म का अपना सेल्फ-रेगुलेशन काफी नहीं है, क्योंकि बार-बार अश्लील और आपत्तिजनक कॉन्टेंट सामने आ रहे हैं।

चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की बेंच ने रणवीर अलाहबादिया और समय रैना के शो 'इंडियाज गॉट लेटेंट' से जुड़े केस की सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर सेल्फ-रेगुलेशन काम कर रहा है, तो ऐसी घटनाएं बार-बार क्यों हो रही हैं? 

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सुप्रीम कोर्ट:-
सेल्फ-स्टाइल्ड बॉडीज से कुछ नहीं होगा। एक तटस्थ और स्वायत्त संस्था चाहिए जो न तो कॉन्टेंट बनाने वालों के दबाव में आए, न सरकार के। अश्लील कॉन्टेंट से पहले साफ चेतावनी दिखनी चाहिए। सिर्फ 2 सेकंड की वार्निंग काफी नहीं। शो शुरू होने से पहले आधार कार्ड से उम्र का सत्यापन कर लिया जाए, ताकि नाबालिग न देख सकें।

क्यों रेग्यूलेट नहीं हो पाता है सोशल मीडिया?

फिल्में तब रिलीज होतीं हैं, जब सेंसर बोर्ड उन्हें पास करता है। फिल्मों की रिलीज के लिए सिनेमैटोग्राफ ऐक्ट 1952 और सिनेमैटोग्राफ (सर्टिफिकेशन) रूल 1983 है। भारत में सोशल मीडिया रेग्युलेशन के लिए ऐसी कोई एक स्वंतंत्र संस्था नहीं है। 

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दिल्ली हाई कोर्ट की वकील स्निग्धा त्रिपाठी ने इस सवाल के जवाब में कहा, 'भारत में हर हफ्ते बड़े पैमाने पर फिल्में रिलीज होतीं हैं, तब भी अधिकतम रिलीज होने वाली फिल्मों की संख्या 30 से 40 के बीच होती है। इनमें भारत की अलग-अलग भाषाओं में बनी फिल्में भी शामिल हैं। भारत में एक अनुमान के मुताबिक 362 मिलियन सिर्फ इंस्टाग्राम यूजर हैं। हर दिन लाखों रील और वीडियो अपलोड होते हैं। इन्हें रेग्युलेट करना मुश्किल है।'

स्निग्धा त्रिपाठी, एडवोकेट, दिल्ली हाई कोर्ट:-
मेटा, X और यूट्यूब जैसी कंपनियां विदेशी हैं। भारत में उनके कर्मचारी बेहद कम हैं, सर्वर बाहर है। अदालतों ने इन्हें कई बार कानूनी नोटिस दिया है लेकिन उनकी जवाबदेही सीमित रही है। IT एक्ट 2000 और IT रूल्स 2021 में कुछ खामियां हैं।

IT एक्ट में लाने होंगे कड़े प्रावधान 

एडवोकेट स्निग्धा ने कहा, 'आईटी एक्ट 2000 के दायरे को बढ़ाने की जरूरत है। नियम हैं लेकिन एक जवाबदेह संस्था की जरूरत है। बिना सेंसर के सेल्फ पब्लिकेशन पर नजर रखना, कंपनियों की जिम्मेदारी है लेकिन यह जिम्मेदारी से सब कानूनी प्रावधानों की वजह से बच जाते हैं।'

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IT Act 2000 की धारा 79 (1) कहती है सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तीसरे पक्ष की ओर से उपलब्ध कराए गए या होस्ट किए गए किसी भी सूचना, डेटा या संचार लिंक के लिए उत्तरदायी नहीं होंगे। यही सबसे बड़ी खामी है। 

एडवोकेट स्निग्धा ने कहा, '2021 के IT Rules में ग्रिवांस ऑफिसर, चीफ कम्प्लायंस ऑफिसर अनिवार्य किए गए हैं लेकिन उल्लंघन पर जुर्माना महज 50 लाख है। कोई जेल की सजा नहीं, इसलिए प्लेटफॉर्म्स टालमटोल करते हैं, बहाना बनाते हैं।'

क्या हो तो रेग्युलेट हो जाए सोशल मीडिया?

सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड विशाल अरुण मिश्रा ने कहा, 'जब तक कोई रेग्युलेटरी बॉडी नहीं बनती है, ऐसे कॉन्टेंट को रोकना मुश्किल है। डीपफेक, AI-जेनरेटेड कॉन्टेंट, एनक्रिप्टेड मैसेज, रील्स को मॉडरेट करना तकनीकी आधार पर मुश्किल है। जैसे ब्रॉडकास्टिंग के लिए टेलीकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) और नेशनल बोर्ड ऑफ एक्रिडिटेशन (NBA) जैसे तंत्र हैं, सोशल मीडिया के लिए अभी नहीं हैं। प्रस्तावित डिजिटल इंडिया एक्ट है लेकिन वह ड्राफ्ट स्टेज में ही है लेकिन ठंडे बस्ते में पड़ा है। जब तक एक रेग्युलेटरी बॉडी नहीं मिलती है, सोशल मीडिया को रेग्युलेट करना मुश्किल है।'

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