नेहरू, जिन्ना, वफादारी का सर्टिफिकेट... 'वंदे मातरम्' पर संसद में क्या-क्या हुआ?
लोकसभा में सोमवार को राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम्' पर चर्चा हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी शुरुआत की। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इसमें हिस्सा लिया।

प्रियंका गांधी, पीएम मोदी और ओवैसी। (Photo Credit: PTI)
वंदे मातरम् के 150 साल पूरे होने पर संसद में चर्चा हो रही है। सोमवार को लोकसभा में वंदे मातरम् पर चर्चा हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी शुरुआत की। चर्चा की शुरुआत करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि यह हमारे लिए गर्व की बात है कि जब वंदे मातरम् के 150 साल पूरे हो रहे हैं तो हम सभी इस ऐतिहासिक अवसर के साक्षी बन रहे हैं। पीएम मोदी ने अपने भाषण में जवाहरलाल नेहरू की 1937 वाली गलती को भी दोहराया।
सरकार की तरफ से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी चर्चा में भाग लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने हमेशा भारत की सभ्यता, संस्कृति और संविधान की बलि चढ़ाई।
वहीं, कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि वंदे मातरम् के उस स्वरूप पर सवाल उठाना, जिसे संविधान सभा ने स्वीकार किया, न सिर्फ यह उन महापुरुषों का अपमान है, बल्कि संविधान विरोधी मंशा को भी उजागर करता है। कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा कि कांग्रेस ने ही वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया था। वहीं, AIMIM से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि वंदे मातरम् को वफादारी का टेस्ट न बनाया जाए।
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नेहरू की किस गलती पर PM ने घेरा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में 1937 की उस घटना का जिक्र किया, जिसमें वंदे मातरम् के कुछ हिस्सों को हटा दिया गया था।
उन्होंने कहा, 'वंदे मातरम् की 150 वर्ष की यात्रा अनेक पड़ावों से गुजरी है, लेकिन जब वंदे मातरम् के 50 वर्ष हुए, तब देश गुलामी में जीने के लिए मजबूर था। जब वंदे मातरम् के 100 वर्ष हुए, तब देश आपातकाल की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, और जब वंदे मातरम् का अत्यंत उत्तम पर्व होना चाहिए था, तब भारत के संविधान का गला घोंट दिया गया था। जब वंदे मातरम् के 100 वर्ष हुए, तब देशभक्ति के लिए जीने-मरने वाले लोगों को जेल की सलाखों के पीछे बंद कर दिया गया था। जिस वंदे मातरम् के गीत ने देश को आजादी की ऊर्जा दी थी, उसके 100 वर्ष पूरे होने पर हमारे इतिहास का एक काला कालखंड दुर्भाग्य से उजागर हो गया।'
पीएम मोदी ने कहा, 'वंदे मातरम् के प्रति मुस्लिम लीग की विरोध की राजनीति तेज होती जा रही थी, मोहम्मद अली जिन्ना ने लखनऊ से 15 अक्टूबर 1937 को वंदे मातरम् के विरुद्ध नारा बुलंद किया। फिर कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू को अपना सिंहासन डोलता दिखा, जवाहरलाल नेहरू ने मुस्लिम लीग के आधारहीन बयानों को करारा जवाब देने, निंदा करने की बजाय, उल्टा वंदे मातरम् की पड़ताल शुरू कर दी।'
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उन्होंने कहा, 'जिन्ना के विरोध के 5 दिन बाद ही 20 अक्टूबर को जवाहरलाल नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को चिट्ठी लिखी और जिन्ना की भावना से सहमति जताते हुए लिखा कि वंदे मातरम् की आनंदमठ वाली पृष्ठभूमि मुसलमानों को भड़का सकती है।'
उन्होंने कहा कि 'इसके बाद कांग्रेस का बयान आया कि 26 अक्टूबर को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक कोलकाता में होगी, जिसमें वंदे मातरम् के उपयोग की समीक्षा की जाएगी। पूरे देश में इस प्रस्ताव के विरोध में लोगों ने प्रभात फेरियां निकालीं, लेकिन दुर्भाग्य से 26 अक्टूबर को कांग्रेस ने वंदे मातरम् पर समझौता कर लिया, वंदे मातरम् के टुकड़े कर दिए।'
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'वंदे मातरम् गली-गली का नारा बन गया'
पीएम मोदी ने कहा कि वंदे मातरम् सिर्फ राजनीतिक लड़ाई का मंत्री नहीं था। उन्होंने कहा, 'वंदे मातरम्, सिर्फ राजनीतिक लड़ाई का मंत्र नहीं था। सिर्फ अंग्रेज जाएं और हम अपनी राह पर खड़े हो जाएं, वंदे मातरम् सिर्फ यहां तक सीमित नहीं था। आजादी की लड़ाई, इस मातृभूमि को मुक्त कराने की जंग थी। मां भारती को उन बेड़ियों से मुक्त कराने की एक पवित्र जंग थी।'
उन्होंने कहा, 'बंकिम दा ने जब वंदे मातरम् की रचना की, तब स्वाभाविक ही वह स्वतंत्रता आंदोलन का पर्व बन गया। तब पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण, वंदे मातरम् हर भारतीय का संकल्प बन गया।'
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उन्होंने आगे कहा कि 'अंग्रेजों ने 1905 में बंगाल का विभाजन किया, तो वंदे मातरम् चट्टान की तरह खड़ा रहा। यह नारा गली-गली का स्वर बन गया। अंग्रेजों ने बंगाल विभाजन के माध्यम से भारत को कमजोर करने की दिशा पकड़ ली थी, लेकिन वंदे मातरम् अंग्रेजों के लिए चुनौती और देश के लिए शक्ति की चट्टान बनता गया। बंगाल की एकता के लिए वंदे मातरम् गली-गली का नारा बन गया था, और यही नारा बंगाल को प्रेरणा देता था।'
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 'हमारे जांबाज सपूत बिना किसी डर के फांसी के तख्त पर चढ़ जाते थे और आखिरी सांस तक वंदे मातरम् कहते थे। खुदीराम बोस, अशफ़ाक उल्ला ख़ान, राम प्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी… हमारे अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों ने वंदे मातरम् कहते हुए फांसी को चूम लिया। यह अलग-अलग जेलों में होता था, लेकिन सबका एक ही मंत्र था, वंदे मातरम्।'
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राजनाथ सिंह ने क्या कहा?
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी वंदे मातरम् पर चर्चा में हिस्सा लिया। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि वंदे मातरम् के साथ जो न्याय होना चाहिए, वह नहीं हुआ।
उन्होंने कहा, 'वंदे मातरम् सिर्फ एक गीत नहीं है, यह हमारी राष्ट्रीयता का सूत्र है, भारत की अंतरात्मा का स्वर है। आज जब हम वंदे मातरम् की डेढ़ शताब्दी की गौरवशाली यात्रा का उत्सव मना रहे हैं, तब ये सच स्वीकार करना पड़ेगा कि वंदे मातरम् के साथ जो न्याय होना चाहिए था, वह न्याय नहीं हुआ।'
उन्होंने कहा, 'वह धरती, जिस पर वंदे मातरम् की रचना हुई थी, उसी धरती पर वर्ष 1937 में कांग्रेस ने वंदे मातरम् गीत को खंडित करने का निर्णय लिया था। इसलिए वंदे मातरम् के साथ हुए राजनीतिक छल और अन्याय के बारे में सभी पीढ़ियों को जानना चाहिए। क्योंकि यह अन्याय केवल एक गीत के साथ नहीं था, बल्कि आजाद भारत के लोगों के साथ था। वंदे मातरम् स्वयं में पूर्ण है, लेकिन इसे अपूर्ण बनाने की कोशिश की गई। वंदे मातरम् हमेशा राष्ट्रीय भावना का अमर-गीत रहा है और मैं बल देकर कहना चाहता हूं कि यह सदैव बना रहेगा, दुनिया की कोई ताकत इसे कमतर नहीं कर सकती। इसलिए वंदे मातरम् के साथ हुआ अन्याय एकमात्र घटना नहीं थी, यह तुष्टिकरण की राजनीति की शुरुआत थी, जिसे कांग्रेस ने अपनाया।'
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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि 'आजादी के बाद कांग्रेस ने भारत की सभ्यता, संस्कृति और यहां तक कि भारत के संविधान को भी हमेशा अपने संकीर्ण हितों की बलि चढ़ाई। तुष्टिकरण की राजनीति कांग्रेस के लिए हमेशा संविधान, भारत की संस्कृति, सभ्यता, संप्रभुता और मानवता के ऊपर रही है। वंदे मातरम् के साथ कांग्रेस ने संविधान को भी खंडित करने का काम किया।'
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प्रियंका गांधी ने दिया 1937 की गलती का जवाब
पीएम मोदी से लेकर राजनाथ सिंह तक ने वंदे मातरम् पर 1937 की गलती का जिक्र किया। वायनाड से कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने इसका जवाब दिया। उन्होंने बताया कि 1930 के दशक में जब सांप्रदायिक राजनीति उभरी तो यह गीत विवादित होने लगा। प्रियंका गांधी ने यह भी आरोप लगाया कि बंगाल में चुनाव होने के कारण इस पर चर्चा की जा रही है।
उन्होंने कहा, 'आज सदन में 'वंदे मातरम्' पर बहस की दो वजहें हैं। पहली- बंगाल में चुनाव आने वाला है। ऐसे में हमारे प्रधानमंत्री महोदय अपनी भूमिका बनाना चाहते हैं। और दूसरी- जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी, देश के लिए कुर्बानियां दीं, ये सरकार उन पर नए आरोप लादने का मौका चाहती है। ऐसा कर मोदी सरकार देश का ध्यान जनता के जरूरी मुद्दों से भटकाना चाहती है।'
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उन्होंने कहा, '1930 के समय जब देश में सांप्रदायिक राजनीति उभरी, तब ये गीत विवादित होने लगा। 1937 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस, कलकत्ता में होने वाले कांग्रेस के अधिवेशन का आयोजन कर रहे थे। मोदी जी ने सदन में एक चिट्ठी का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने बताया कि 20 अक्टूबर को नेहरू जी ने नेता जी को चिट्ठी लिखी थी। लेकिन 17 अक्टूबर को लिखी गई चिट्ठी का जिक्र प्रधानमंत्री ने नहीं किया, जो नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू जी को लिखी थी।'
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उन्होंने कहा कि '28 अक्टूबर 1937 में कांग्रेस की कार्यसमिति ने अपने प्रस्ताव में 'वंदे मातरम्' को राष्ट्रगीत घोषित किया। उन्हीं दो अंतरों पर कार्यसमिति की बैठक में महात्मा गांधी जी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी, पंडित नेहरू जी, आचार्य नरेंद्र देव जी, सरदार पटेल जी, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जी ने सहमति जताई। भारत की आजादी के बाद जब इसी गीत के इन्हीं दो अंतरों को 1950 में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जी ने संविधान समिति में भारत का राष्ट्रगीत घोषित किया, अंबेडकर जी समेत तब भी लगभग यही महापुरुष वहां मौजूद थे।'
प्रियंका ने कहा, 'आज हम अपने राष्ट्रगीत पर बहस कर रहे हैं, लेकिन हमारा राष्ट्र गान भी कविता का ही एक अंश है और इन दोनों राष्ट्रगीत और राष्ट्र गान के अंश को चुनने में सबसे बड़ी भूमिका गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जी की थी। 'वंदे मातरम्' के उस स्वरूप पर सवाल उठाना, जिसे संविधान सभा ने स्वीकार किया, न सिर्फ उन महापुरुषों का अपमान करना है, जिन्होंने अपने महान विवेक से यह निर्णय लिया, मगर यह एक संविधान विरोधी मंशा को भी उजागर करता है।'
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गौरव गोगोई ने बीजेपी पर लगाए आरोप
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने आरोप लगाया कि वंदे मातरम् के जरिए बीजेपी प्रोपेगैंडा फैलाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था, तब बीजेपी के राजनीतिक पूर्वज कहां थे?
गौरव गोगोई ने कहा, '1905 में वायसराय कर्जन ने बंगाल के दो भाग कर दिए। कर्जन ने सोचा कि ऐसा कर वह बंगाल और पूरे देश पर एक गहरी चोट करेगा, लेकिन यही उसकी गलती थी। यही वो पल था, जब स्वतंत्रता संग्राम को स्वदेशी आंदोलन के जरिए एक गहरी ताकत मिली। जिसमें ये संदेश गया कि भारत को एक नई दृष्टि के साथ विद्रोह करना है। आने वाले समय में 'वंदे मातरम्' पूरे देश में बड़े व्यापक रूप से फैला।'
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उन्होंने कहा, ''वंदे मातरम्' का नारा ब्रिटिश हुकूमत के विरोध में लगाया जाता था। हम 'वंदे मातरम्' का नारा अंग्रेजी हुकूमत के दिल में खौफ पैदा करने के लिए लगाते थे- ये इसका मूल भाव था। मैं पूछना चाहता हूं कि आपके राजनीतिक पूर्वजों ने 'वंदे मातरम्' की इस मंशा को कब पूरा किया? आपके राजनीतिक पूर्वजों ने ब्रिटिश हुकूमत का कब विरोध किया?'
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा, ' जब 'भारत छोड़ो आंदोलन' हो रहा था, तब बीजेपी के राजनीतिक पूर्वज कहां थे? इतिहास में दर्ज है कि बीजेपी के राजनीतिक पूर्वजों ने कहा था- 'भारत छोड़ो आंदोलन' में भाग नहीं लेना चाहिए।'
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गौरव गोगोई ने आगे आरोप लगाते हुए कहा, 'जब पूरे देश ने 'जन-गण-मन' को राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया तो आपके राजनीतिक पूर्वजों ने 52 साल तक अपनी शाखाओं में न तिरंगा फहराया और न राष्ट्रगान गाया। ऐसे में आप क्या राष्ट्र की बात करते हैं?'
उन्होंने कहा, 'आज देश के लोग अनेक समस्या उठा रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री के भाषण में वो बातें ही नहीं हैं। देश की राजधानी में बम विस्फोट हुआ, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार भी उसकी बात नहीं की। हम 'वंदे मातरम्' की 150वीं जयंती मना रहे हैं, लेकिन क्या हम वर्तमान के भारत को सुरक्षा दे पा हे हैं? क्या हमने दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के लोगों को सुरक्षा दी?'
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ओवैसी बोले- वंदे मातरम् को वफादारी का टेस्ट न बनाएं
लोकसभा में वंदे मातरम् पर चर्चा के दौरान AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् को वफादारी का टेस्ट नहीं बनाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, 'वंदे मातरम् को वफादारी का टेस्ट न बनाया जाए। संविधान सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार देता है। इस अधिकार को किसी भी धार्मिक पहचान या प्रतीक के साथ नहीं जोड़ा जा सकता।'
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ओवैसी ने कहा कि 'अगर 'भारत में रहना है तो वंदे मातरम् गाना होगा' का नारा जरूरी करना है तो यह संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है। मैं एक मुसलमान हूं और इस्लाम को मानता हूं और खुदा के अलावा मैं किसी को नहीं मानता हूं और इसका अधिकार मुझे संविधान देता है। इससे हमारे मुल्क की मोहब्बत मेरे धर्म के बीच नहीं आती है।'
उन्होंने कहा कि भारत का संविधान 'हम भारत के लोग' से शुरू होता है, किसी देवी-देवता या किसी धार्मिक पहचान से नहीं।
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