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दक्षिण भारत के 5 प्राचीन मंदिर जिनका है भगवान शिव से खास संबंध

उत्तर भारत के साथ-साथ दक्षिण भारत में भी भगवान शिव के कई धार्मिक स्थल हैं, जिनका भगवान शिव से विशेष संबंध है। आइए जानते हैं, इस स्थान से जुड़ी खास बातें।

Image of Rameshwaram Mandir

रामेश्वरम रामनाथस्वामी मंदिर।(Photo Credit: Wikimedia Commons)

भगवान शिव के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनसे जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। ये मंदिर भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थापित हैं। बता दें कि भगवान शिव को समर्पित कई मंदिर उत्तर भारत में स्थित हैं, जिनमें केदारनाथ, काशी विश्वनाथ, भूतेश्वर महादेव और पशुपतिनाथ मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। हालांकि, दक्षिण भारत में भी कई ऐसे मंदिर हैं जिनका संबंध भगवान शिव और उनकी पौराणिक कथाओं से जुड़ता है। आज हम ऐसे ही पांच मंदिरों के विषय में जानेंगे, जिनका उल्लेख शास्त्रों में विस्तार से किया गया है।

रामेश्वरम मंदिर

दक्षिण भारत के तमिलनाडु में स्थित रामेश्वरम मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसकी स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। रामायण कथा के अनुसार, जब भगवान राम रावण का वध करने के लिए लंका की ओर प्रस्थान कर रहे थे, तब उन्होंने इस शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव की उपासना की। इसी वजह से इस ज्योतिर्लिंग को "रामनाथ स्वामी" के नाम से भी जाना जाता है। साथ ही, मान्यता यह भी है कि जब रावण का वध कर भगवान राम अयोध्या लौट रहे थे, तब उन्होंने इसी स्थान पर महादेव की उपासना कर प्रायश्चित किया था।

 

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अरुणाचलेश्वर मंदिर

तमिलनाडु में स्थित अरुणाचलेश्वर मंदिर पंचभूत लिंगों में से एक है, जो अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इस ज्योतिर्लिंग से जुड़ी एक पौराणिक कथा यह है कि जब भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच यह विवाद हुआ कि दोनों में से कौन श्रेष्ठ है, तब भगवान शिव एक अनंत अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट हुए। भगवान विष्णु ने वराह रूप लेकर इस अग्नि स्तंभ की सतह को ढूंढना शुरू किया, वहीं ब्रह्मा जी हंस बनकर ऊपर की ओर उड़े। भगवान विष्णु ने अंततः अपनी हार स्वीकार कर ली, लेकिन ब्रह्मा जी ने झूठ बोल दिया कि वह इस अग्नि स्तंभ के छोर तक पहुंच गए थे। इस पर भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि उनकी पूजा नहीं होगी।

चिदंबरम मंदिर

दक्षिण भारत के तमिलनाडु में स्थित चिदंबरम मंदिर भगवान शिव के नटराज रूप का प्रतीक है। यह शिवलिंग पंचभूत लिंगों में से एक है और आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब ऋषि व्याघ्रपाद और पतंजलि ने भगवान शिव से उनके तांडव नृत्य को देखने की इच्छा प्रकट की, तब भगवान शिव ने इसी स्थान पर उन्हें अपने दिव्य तांडव नृत्य का दर्शन दिया। भगवान शिव यहां आकाशीय आभा में प्रकट हुए थे, जिस वजह से यह मंदिर आकाश तत्व से संबंध रखता है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां भगवान शिव किसी मूर्ति के रूप में नहीं, बल्कि अदृश्य रूप में उपस्थित हैं।

बृहदेश्वर मंदिर

तमिलनाडु में स्थित बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण चोल राजवंश के प्रथम राजा ने करवाया था, जिसे "बड़ा मंदिर" भी कहा जाता है। इस निर्माण के पीछे यह मान्यता है कि चोल राजा भगवान शिव के अनन्य भक्त थे और उन्होंने एक स्वप्न देखा था, जिसमें भगवान शिव ने उनसे एक भव्य मंदिर में प्रतिष्ठित होने की इच्छा व्यक्त की थी। राजा ने इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया और शिवलिंग की स्थापना की। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां दुनिया का सबसे विशाल शिवलिंग स्थापित है, जिसकी प्रतिदिन उपासना की जाती है। यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में भी शामिल है।

 

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श्रीकालहस्ती मंदिर

आंध्र प्रदेश के तिरुपति के पास स्थित श्रीकालहस्ती मंदिर को "दक्षिण का काशी" भी कहा जाता है। यह पंचभूत लिंगों में से वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इस मंदिर से जुड़ी कथा यह है कि एक भक्त ने अपने गुरु के कहने पर भगवान शिव की घोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे वरदान दिया। एक मान्यता यह भी है कि यहां स्वयं वायु देवता ने भगवान शिव की आराधना की थी, इसलिए यह मंदिर वायु लिंग के रूप में प्रसिद्ध हुआ। इस मंदिर की एक खास बात यह है कि यहां एक अखंड ज्योति सदैव जलती रहती है, जो तेज हवा के झोंकों से भी नहीं बुझती।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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