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नक्षत्रों का जन्म कैसे हुआ था, कितने तरह के होते हैं नक्षत्र?

खगोल विज्ञान में नक्षत्र एक विशेष जगह रखते हैं। लोगों को नक्षत्रों के बारे में जानने की जिज्ञासा भी होती है। इसलिए इसके बारे में जानना ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण भाग है।

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वैदिक ज्योतिष और खगोल विज्ञान में नक्षत्रों का विशेष और गहरा महत्व माना जाता है। ‘नक्षत्र’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है- न (नहीं) और क्षत्र (नाश), यानी जो कभी नष्ट न हो और सदा स्थिर रहे। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नक्षत्रों की अवधारणा वैदिक काल से चली आ रही है। पुराणों में इन्हें दक्ष प्रजापति की पुत्रियों के रूप में बताया गया है, जो चंद्रमा की पत्नियां थीं। नक्षत्रों की उत्पत्ति और उनके प्रकारों को समझना ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण विषय है।

 

मान्यता है कि नक्षत्र ब्रह्मांडीय व्यवस्था और ज्योतिषीय गणनाओं का हिस्सा हैं, जिनका हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ता है। किसी व्यक्ति का जन्म नक्षत्र उसके जन्म समय और स्थान के आधार पर निर्धारित किया जाता है, जो उसके स्वभाव और जीवन से जुड़े कई पहलुओं को दर्शाता है।

 

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पौराणिक और वैज्ञानिक आधार

पौराणिक कथाओं के अनुसार, नक्षत्रों को प्रजापति दक्ष की पुत्रियां माना गया है। दक्ष ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा के साथ किया था। चंद्रमा अपनी सभी पत्नियों में से रोहिणी नक्षत्र से सबसे अधिक प्रेम करते थे और अपना ज्यादातर समय उन्हीं के साथ बिताते थे। अन्य बहनों ने इसकी शिकायत अपने पिता दक्ष से की। क्रोधित होकर दक्ष ने चंद्रमा को 'घटने का' श्राप दे दिया। बाद में भगवान शिव के हस्तक्षेप से चंद्रमा को इस श्राप से मुक्ति मिली। इसी के कारण चंद्रमा का आकार घटता और बढ़ता है (पूर्णिमा और अमावस्या), जिसे हम कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष कहते हैं।

खगोलीय आधार

वैज्ञानिक आधारों के अनुसार, चंद्रमा पृथ्वी की एक परिक्रमा लगभग 27.3 दिनों में पूरी करता है। आकाश के 360° के घेरे को जब 27 बराबर भागों में बांटा जाता है, तो हर भाग एक 'नक्षत्र' कहलाता है। एक नक्षत्र की लंबाई 13° 20' यानी 13 डिग्री 20 मिनट होती है।

 

नक्षत्र कितने तरह के होते हैं?

ज्योतिष में मुहूर्त्त तय करने के लिए नक्षत्रों को इन सात श्रेणियों में बांटा गया है:

  • रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरभाद्रपद- घर बनाने या पेड़ लगाने जैसे स्थायी कार्यों के लिए शुभ।
  • स्वाति, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा- यात्रा या गाड़ी खरीदने के लिए।
  • भरणी, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वभाद्रपद- विनाशकारी या कठिन कार्यों के लिए।
  • विशाखा, कृत्तिका- आग से जुड़े कामों के लिए।
  • हस्त, अश्विनी, पुष्य- व्यापार या इलाज शुरू करने के लिए।
  • मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा- कला, संगीत और दोस्ती के लिए।
  • मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आश्लेषा- तंत्र-मंत्र या दुश्मन पर विजय के लिए।

 

गण के आधार पर

  • देव गण: शांत और सात्विक स्वभाव वाले।
  • मनुष्य गण: सामान्य मानवीय भावनाओं वाले।
  • राक्षस गण: साहसी और उग्र स्वभाव वाले।

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27 नक्षत्रों के नाम

आकाशमंडल में नक्षत्रों का क्रम इस प्रकार है:

 

अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद, रेवती।

 

एक 28वां नक्षत्र भी है जिसे 'अभिजित' कहा जाता है। इसे बहुत शुभ माना जाता है और विशेष मुहूर्तों में इसकी गणना की जाती है, लेकिन कुंडली विश्लेषण में मुख्य रूप से 27 नक्षत्र ही देखे जाते हैं।

 

नोट: इस खबर में लिखी गई बातें धार्मिक और स्थानीय मान्यताओं पर आधारित हैं। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।


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