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ज्योतिष में महादशाएं क्या होती हैं, क्यों इसे बुरा मानते हैं लोग?

ज्योतिष में महादशा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। लोग इसे बहुत बुरा मानते हैं। लोगों में इसे लेकर कई भ्रांतियां है जिसे जानने की जरूरत है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर, AI Generated Image

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भारतीय वैदिक ज्योतिष में 'महादशा' समय की गणना की एक बहुत ही महत्वपूर्ण पद्धति है। ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की दशा, महादशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा का जिक्र अक्सर किया जाता है जिनका विशेष महत्व है। आइए समझते हैं कि महादशा क्या होती है। इससे किसी के जीवन पर प्रभाव क्या पड़ता है। आखिर लोग इसे इतनी अहमियत क्यों देते हैं। 

 

महादशा को विंशोत्तरी दशा के नाम से भी जाना जाता है। इसे विषय के तौर पर देखे तो इससे यह समझना आसान हो जाता है कि एक विशिष्ट ग्रह आपके जीवन की घटनाओं और मानसिकता को सबसे अधिक प्रभावित कैसे करता है।

 

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महादशा क्या होती है?

वैदिक ज्योतिष में विंशोत्तरी महादशा सबसे अधिक प्रचलित है। इसके अनुसार मनुष्य की पूरी उम्र 120 वर्ष मानी गई है, जिसे 9 ग्रहों के बीच अलग-अलग समय अवधि में बांटा गया है। ऐसी मान्यता है कि आपका जन्म जिस नक्षत्र में होता है उसी के स्वामी ग्रह से आपकी पहली महादशा शुरू होती है। ग्रह जैसे- केतु, शुक्र, सूर्य, चंद्रमा, मंगल, राहु, गुरु, शनि, और बुध। इन सभी ग्रहों का एक विशेष समय होता है जो आपके जीवन पर प्रभाव करता है।

लोग महादशा को 'बुरा' क्यों मानते हैं?

अक्सर लोग ज्योतिषियों के पास तब जाते हैं जब वे संकट में होते है और वहां उन्हें बताया जाता है कि - आपकी अमुक ग्रह की महादशा चल रही है। इसी वजह से लोगों में एक डर बैठ जाता है। इसके कुछ प्रमुख कारण ये हैं:

  • शनि, राहु और केतु का डर: इन तीनों ग्रहों को 'पाप ग्रह' या क्रूर ग्रह माना जाता है। चूंकि इनकी अवधि लंबी होती है (शनि 19 और राहु 18 साल), लोग डरते हैं कि इतने लंबे समय तक केवल कष्ट ही मिलेगा।
  • बदलाव से डर: महादशा बदलने पर व्यक्ति के जीवन की ऊर्जा बदलती है। जैसे ही एक सौम्य ग्रह (जैसे शुक्र) की दशा खत्म होकर एक कठोर ग्रह (जैसे सूर्य) की दशा आती है तो जीवन में अचानक आए बदलाव को लोग 'बुरा' मान लेते हैं।
  • जानकारी की कमी: लोग सोचते हैं कि शनि या राहु की दशा हमेशा बर्बादी लाती है। जबकि वास्तविकता यह है कि शनि की महादशा में कई लोग फर्श से अर्श पर पहुंचे हैं। यदि उनका कर्म और ग्रह की स्थिति अच्छी हो।
  • दशा-संधि का समय: जब एक महादशा खत्म होती है और दूसरी शुरू होती है तो उस मिलन काल में अक्सर उथल-पुथल होती है जिसे लोग अशुभ मान लेते हैं।

 

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सच क्या है?

ज्योतिष के अनुसार, कोई भी महादशा अपने आप में 'बुरी' या 'भली' नहीं होती। इसका फल तीन बातों पर निर्भर करता है:

  • वह ग्रह आपकी कुंडली में किस स्थिति (राशि) में बैठा है।
  • आपके वर्तमान कर्म कैसे हैं (खासकर शनि और राहु के मामले में)।
  • महादशा के अंदर चलने वाली 'अन्तर्दशा' कैसी है।

यदि किसी की कुंडली में शनि शुभ होकर बैठा है तो उसकी 19 साल की महादशा उसे राजा बना सकती है। वहीं, यदि बृहस्पति जैसा शुभ ग्रह गलत घर में बैठा है, तो उसकी दशा में भी व्यक्ति को स्वास्थ्य या धन की समस्याएं हो सकती हैं।

 

नोट: इस खबर में लिखी गई बातें धार्मिक और स्थानीय मान्यताओं पर आधारित हैं। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।


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