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रमजान के महीने में तौबा और जकात की क्या है अहमियत? यहां जानिए

रमजान के महीने में तौबा और जकात की अहमियत बहुत अधिक है। आइए जानते हैं क्या है इसका मतलब।

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सांकेतिक चित्र।(Photo Credit: Canva)

रमजान इस्लाम धर्म का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। यह अल्लाह की इबादत, नेकी और उनकी रहमत पाने का समय होता है। इस महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा रखते हैं, कुरआन की तिलावत करते हैं और अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं। रमजान में दो चीजों का खास माना जाता है– तौबा और जकात।

तौबा का मतलब

इस्लाम में तौबा का मतलब होता है गुनाहों से सच्चे दिल से माफी मांगना और दोबारा गलती न करने का वादा करना। कहा जाता है कि इंसान से जाने-अनजाने में बहुत से गुनाह होते हैं लेकिन अल्लाह की रहमत इतनी बड़ी है कि वह सच्चे दिल से तौबा करने वालों को माफ कर देता है। कुरआन में कई जगह तौबा की अहमियत बताई गई है। कुरआन की सूरह अज-ज़ुमर (39:53) में बताया गया है कि:


'ऐ मेरे बंदो, जिन्होंने अपनी जानों पर जुल्म किया है! अल्लाह की रहमत से मायूस न हो जाओ, बेशक अल्लाह सारे गुनाह माफ कर देता है।'

 

रमजान तौबा करने का सबसे अच्छा मौका होता है। इस्लाम में बताया गया है कि अगर कोई इंसान सच्चे दिल से अल्लाह से माफी मांगे और आगे से गुनाह न करने का इरादा करे, तो अल्लाह उसे जरूर माफ कर देता है। इसलिए रोजा रखने के साथ-साथ लोग नमाज, तिलावत और तौबा में ज्यादा समय बिताते हैं।

 

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जकात का मतलब

जकात इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। यह एक तरह का दान है, जिसे हर मुसलमान का फर्ज बताया गया है, जो आर्थिक रूप से सक्षम हो। कुरआन में सूरह अल-बकरा (2:110) में बताया गया है कि:

 

'नमाज कायम करो और जकात दो और जो भलाई तुम अपने लिए आगे भेजोगे, उसे अल्लाह के पास पाओगे।'

 

इस्लामिक जानकार बताते हैं कि इस्लाम में जकात देने का मकसद सिर्फ गरीबों की मदद करना ही नहीं, बल्कि इंसान के दिल से लालच और दुनिया की मोहब्बत को कम करना भी है। जब इंसान अपनी कमाई का एक हिस्सा जरूरतमंदों को देता है, तो उससे समाज में बराबरी और भाईचारा बढ़ता है। जकात आमतौर पर गरीबों, अनाथों, विधवाओं और जरूरतमंदों को दी जाती है।

 

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रमजान में तौबा और जकात की खास अहमियत क्यों?

रमजान के महीने को ‘रहमत और बरकत का महीना’ कहा गया है। इस महीने में अल्लाह अपने बंदों की दुआ और तौबा को ज्यादा कबूल करता है। इसलिए मुसलमान इस महीने में अपने गुनाहों से माफी मांगते हैं और ज्यादा से ज्यादा जकात और सदका (दान) देते हैं ताकि अल्लाह की रहमत हासिल कर सकें।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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