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स्तंभेश्वर महादेव मंदिर: यहां समुद्र देव करते हैं भगवान शिव का अभिषेक

भगवान शिव को समर्पित स्तंभेश्वर महादेव मंदिर का अपना एक विशेष महत्व है। आइए जानते हैं, इस मंदिर से जुड़ा इतिहास और पौराणिक महत्व।

Image of Stambheshwar Mahadev Mandir

स्तंभेश्वर महादेव मंदिर।(Photo Credit: stambheshwarmahadev.com)

भारत भगवान शिव को समर्पित कई मंदिर स्थित हैं, जिनसे कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। इनमें से कुछ मंदिर ऐसे हैं जहां, से जुड़े रहस्य लोगों को अचंभित कर देते हैं। इन्हीं में से एक स्तंभेश्वर महादेव मंदिर है, जो गुजरात के वडोदरा जिले के जंबूसर तहसील के कावी गांव में स्थित है। यह मंदिर अपनी अनूठी विशेषता के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध है, क्योंकि यह दिन में दो बार समुद्र में विलीन हो जाता है और फिर प्रकट होता है। इस रहस्यमयी घटना के कारण इस मंदिर का धार्मिक और पौराणिक महत्व और भी बढ़ जाता है।

मंदिर का इतिहास और स्थापना

स्तंभेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना का इतिहास प्राचीन हिंदू ग्रंथों से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान कार्तिकेय ने किया था, हालांकि इस मंदिर की खोज 150 साल पहले हुई थी। पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था, तब उस राक्षस के पुत्रों में से एक ताड़कासुर बच गया। ताड़कासुर ने कठोर तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया कि उसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र द्वारा ही हो सकती है। उस समय शिव के कोई पुत्र नहीं थे, इसलिए ताड़कासुर ने अपनी शक्ति से पूरे संसार में आतंक मचा दिया।

 

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जब भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ, तब देवताओं ने उन्हें ताड़कासुर का वध करने के लिए प्रेरित किया। जब कार्तिकेय ने ताड़कासुर का वध कर दिया, तो उन्होंने देखा कि ताड़कासुर एक परम शिव भक्त था। यह जानकर कार्तिकेय को बहुत दुख हुआ। ताड़कासुर की आत्मा की शांति के लिए उन्होंने इस स्थान पर भगवान शिव की एक विशाल शिवलिंग की स्थापना की, जिसे आज स्तंभेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

मंदिर का पौराणिक महत्व

स्तंभेश्वर महादेव मंदिर को ‘समुद्र का मंदिर’ भी कहा जाता है क्योंकि यह समुद्र के किनारे स्थित है और दिन में दो बार समुद्र की लहरों में डूब जाता है। यह घटना प्रतिदिन होती है, जिसे देखने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। ऐसा माना जाता है कि जब समुद्र की लहरें शिवलिंग को छूती हैं, तो इसे भगवान शिव का स्वयं अभिषेक माना जाता है।

 

स्कंद पुराण में इस मंदिर का उल्लेख किया गया है, जहां इसे एक दिव्य स्थान बताया गया है, जहां शिव स्वयं साक्षात विराजमान रहते हैं। हिंदू धर्म में यह माना जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से इस मंदिर में दर्शन करता है, उसके सारे पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

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मंदिर की अनूठी विशेषता

स्तंभेश्वर महादेव मंदिर को खास बनाने वाली चीज़ यह है कि यह प्रतिदिन समुद्र में समाहित हो जाता है और फिर कुछ घंटों के बाद प्रकट होता है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो यह ज्वार-भाटा यानी टाइडल फेनोमेनन के कारण होता है। जब समुद्र में ज्वार आता है, तो पानी मंदिर को पूरी तरह से डूबो देता है और जब भाटा आता है, तो मंदिर फिर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगता है। यह घटना भक्तों के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं लगती और यही कारण है कि लोग इसे शिवजी की महिमा का प्रतीक मानते हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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