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त्रिदेवों के निवास स्थान का शास्त्रों में क्या है अर्थ? यहां जानें

भगवान विष्णु, भगवान शिव और भगवान ब्रह्मा जिस स्थान पर निवास करते हैं, उनका अपना एक विशेष महत्व है और उनसे जुड़ी कई मान्यताएं हैं।

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भगवान शिव(Photo Credit: Creative Image)

हिंदू धर्म में त्रिदेव- भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव को सृष्टि, पालन व संहार के अधिपति माने जाते हैं। शास्त्रों में त्रिदेवों की उपासना के महत्व को विस्तार से बताया गया है। साथ ही वेद और पुराणों में इनके निवास स्थान का भी विशेष वर्णन मिलता है, जो न केवल उनके मूल पहचान का विवरण करते हैं, बल्कि इसके आध्यात्मिक अर्थ को दर्शाते हैं। आइए विस्तार से समझते हैं कि इनके निवास स्थान का क्या महत्व और अर्थ बताया गया है।

भगवान ब्रह्मा का निवास स्थान- ब्रह्मलोक

शास्त्रों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा का निवास ब्रह्मलोक है, जिसे सत्यलोक भी कहा जाता है। इसे 14 लोकों में सबसे ऊपर माना जाता है। पुराणों में वर्णन है कि ब्रह्मलोक त्रिदेवों की रचना शक्ति का केंद्र है। बता दें कि 'ब्रह्म' का अर्थ है सृजनकर्ता और 'लोक' का अर्थ है स्थान या लोक। इसका गहरा अर्थ यह है कि यह स्थान ज्ञान और सृष्टि का प्रतीक है।

 

ब्रह्मलोक को सत्यम, ज्ञानं, अनंतं का निवास कहा गया है, अर्थात सत्य, ज्ञान और अनंतता का मिलन स्थल। यह स्थान बुद्धि और विवेक का भी प्रतीक है, जिससे सृष्टि का प्रारंभ होता है। साथ ही यहां दिन और रात की कोई गणना नहीं होती। भगवान ब्रह्मा के एक दिन में मानव के हजारों युग बीत जाते हैं। इसलिए ब्रह्मलोक को कालातीत यानी समय से परे बताया गया है।

 

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भगवान विष्णु का निवास स्थान- वैकुण्ठधाम

भगवान विष्णु का निवास वैकुण्ठलोक है, जिसे परमधाम और शाश्वत लोक भी कहा जाता है। वैकुण्ठ शब्द का अर्थ होता है — जहां कोई बाधा, दुख या मरण नहीं हो। 'वैकुण्ठ' दो शब्दों से बना है — 'वि' (विशेष) और 'कुण्ठ' (बाधा या दुःख)। अर्थात ऐसा स्थान जहां कोई चिंता या पीड़ा नहीं होती। विष्णु पुराण और भागवत पुराण में कहा गया है कि वैकुण्ठ स्वर्ण और रत्नों से निर्मित है।

 

वैकुण्ठधाम समय, मृत्यु, रोग, और मोह का अस्तित्व नहीं होता। वैकुण्ठ का भावार्थ आत्मिक शांति और निर्वाण है। यह स्थान पालन और संतुलन का प्रतीक है। भगवान विष्णु के चरणों में भक्त को पूर्ण शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। वैकुण्ठ में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर क्षीर सागर में विश्राम करते हैं। यह ब्रह्मांडीय जल क्षीर सागर, चैतन्य और सत्व गुण का प्रतीक है।

भगवान शिव का निवास स्थान- कैलाश पर्वत

भगवान शिव का निवास कैलाश पर्वत बताया गया है। यह भौतिक रूप में हिमालय क्षेत्र में स्थित है, परंतु शास्त्रों में इसका आध्यात्मिक अर्थ भी महत्वपूर्ण है। बता दें कि  'कैलाश' शब्द का अर्थ होता है- आनंद का स्थान, जहां केवल शांति और समाधि है। कहा जाता है कि इस स्थान को परम शून्यता और वैराग्य का प्रतीक माना जाता है।

 

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शिवपुराण में बताया गया है कि कैलाश पर्वत स्वर्ण, रत्न और मणियों से जड़ा हुआ है लेकिन भगवान शिव वहां बैरागी रूप में, मृगचर्म पर, ध्यान मुद्रा में रहते हैं। कैलाश पर्वत वैराग्य, तप और समाधि का प्रतीक है। भगवान शिव के निवास स्थान का अर्थ है- संसार के मोह-माया से परे रहकर आत्मा की खोज करना। योग और ध्यान साधना में कहा गया है कि कैलाश पर्वत हर व्यक्ति के भीतर भी है- मन का वह शांत स्थान, जहां आत्मा शिव से मिलती है।

तीनों निवास स्थान का गहरा अर्थ

  • ब्रह्मलोक (ब्रह्मा) — ज्ञान और सृष्टि का केंद्र
  • वैकुण्ठलोक (विष्णु) — पालन, संतुलन और मोक्ष का स्थान
  • कैलाश (शिव) — वैराग्य, तप और आत्मज्ञान का प्रतीक

इन तीनों स्थानों का वर्णन केवल बाहरी लोकों के रूप में नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक मार्गदर्शन के रूप में भी है। जब हम ज्ञान अर्जित करते हैं, संतुलित जीवन जीते हैं और अंत में आत्मज्ञान की ओर बढ़ते हैं, तब हम त्रिदेवों के मार्ग का पालन करते हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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