कोलकाता में हुई एक किडनैपिंग का 9/11 से क्या कनेक्शन है?
साल 2001 में हुए एक किडनैपिंग से लिए गए पैसों का इस्तेमाल 9/11 हमले में करने के आरोप लगे। किपनैप हुए शख्स ने किसी भी आरोपी को पहचानने से ही इनकार कर दिया था।

जूता किंग के अपहरण की कहानी, Photo Credit: Khabargaon
सुबह का चमकता हुआ सूरज। कोलकाता शहर अपनी रफ्तार से जाग रहा था। सड़कें गाड़ियों से भर रही थीं। इन्हीं गाड़ियों के बीच एक टाटा सफारी भी थी। अंदर बैठा था शहर का एक बड़ा बिजनेसमैन। पार्थप्रतिम रॉय बर्मन। खादिम शूज़ के मालिक। अपनी फैक्ट्री के वेयरहाउस जा रहे थे । रोज़ का काम, रोज़ का रूटीन लेकिन उस दिन रूटीन बदलने वाला था। अचानक एक पुरानी सी मारुति 800 ने रास्ता काटा, गाड़ी रुकी, बंदूकें निकलीं, हवा में गोलियां चलीं और मिनटों के अंदर, शहर का 'शू बैरन' किडनैप हो चुका था। इस घटना से भी ज़्यादा हैरानी की बात यह थी रॉय बर्मन जिस तरह अचानक किडनैप हुए थे, उसी तरह एक रोज़ अचानक घर भी लौट आए। घरवालों के अनुसार कोई फिरौती नहीं दी गई। फिर किडनैपिंग हुई क्यों?
असली कहानी हैरान करने वाली थी। सिर्फ़ इंडियन पुलिस के लिए ही नहीं। अमेरिकी एजेंसियों के लिए भी। भारत में हुई एक किडनैपिंग का वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमलों से क्या रिलेशन था? इस किडनैपिंग के तार पाकिस्तान से कैसे जुड़े थे? कौन था वह डॉन जो पत्रकारिता की डिग्री रखता था और जिसकी जेब में टाइम और न्यूज़वीक जैसी मैगज़ीन के ID कार्ड रहते थे? पढ़िए कहानी ख़ादिम किडनैपिंग केस की।
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क्या था प्लान B?
बात है साल 2001 की, जगह- कोलकाता शहर। मुंबई या दिल्ली की तरह कोलकाता ऑर्गनाइज्ड क्राइम का गढ़ नहीं था। हां, छोटे-मोटे गैंग थे, जो लोकल लेवल पर किडनैपिंग जैसी वारदातें करते थे लेकिन सात समंदर पार दुबई में बैठा एक डॉन, कोलकाता के एक बड़े बिजनेसमैन को उठवा लेगा- यह किसी ने सोचा भी नहीं था।
यह डॉन था आफ़ताब अंसारी। उत्तर प्रदेश के वाराणसी से आने वाला अंसारी। जर्नलिज्म की पढ़ाई की। फिर 21 साल की उम्र में उसने तय कर लिया कि जर्नलिज्म से पैसा नहीं मिलेगा, उसने जुर्म का रास्ता चुना। अंसारी ने उगाही को धंधा और दुबई को अड्डा बनाया। 2001 में अंसारी गैंग का टारगेट बने- पार्थ प्रतिम रॉय बर्मन। जूते बनाने वाली कंपनी- खादिम ग्रुप के मालिक। बिजनेस की दुनिया में लोग उन्हें 'शू बैरन' कहते थे।
बर्मन इकलौता निशाना नहीं थे। जांच एजेंसियों के मुताबिक, अकेले साल 2001 में अंसारी के गैंग ने फिरौती से करीब 55 करोड़ रुपये जमा किए थे। रॉय बर्मन की किडनैपिंग से कुछ महीने पहले ही, अंसारी ने मुंबई के एक बिजनेसमैन को उठाया और उसे 55 दिनों तक काठमांडू में बंधक बनाकर रखा था।
रॉय बर्मन, अंसारी की नज़र में कैसे आए?
दरअसल, बर्मन की कंपनी खादिम उस पश्चिम बंगाल से बाहर निकलकर पूरे देश में फैल रही थी। उनकी एक नई ब्रांच खुली थी हैदराबाद में। इसी हैदराबाद से अंसारी का पूरा हवाला नेटवर्क चलता था। उसका सबसे बड़ा फाइनेंसर, अब्दुल करीमुद्दीन उर्फ़ 'करीम डॉलर', हैदराबाद में ही बैठता था। करीम डॉलर ने रॉय बर्मन की जानकारी अंसारी तक पहुंचाई और उनकी फ़ील्डिंग सेट हो गई। हालांकि, एक प्रॉब्लम थी। टारगेट कोलकाता में था और गैंग के ज्यादातर लोग बाहर के। फिर रॉय बर्मन की खबर कौन रखेगा? बर्मन पर नज़र रखने के लिए एक लोकल आदमी चाहिए था।
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यहां कहानी में एंट्री होती है एक योग गुरु की। नाम- रविन्द्रनाथ दास। दास कोलकाता में एक 'मेडिटेशन सेंटर’ चलाता था और रॉय बर्मन खुद उसके क्लाइंट थे, उससे योगा सीखते थे। बाहर से देखने पर दास एक सीधा-सादा गुरु था लेकिन असल में उसके नाम उत्तर प्रदेश में धोखाधड़ी के कई केस दर्ज थे। दास ने अंसारी के लिए 'स्पॉटर' का काम किया। उसने रॉय बर्मन की पल-पल की जानकारी, उनकी गाड़ी का नंबर, उनके आने-जाने का रास्ता, सब कुछ अंसारी के गैंग तक पहुंचा दिया।
तारीख तय हुई 25 जुलाई, 2001, सुबह का वक्त। रॉय बर्मन अपनी टाटा सफारी से फैक्ट्री के लिए निकले। तिलजला इलाके में उनकी गाड़ी पहुंची ही थी कि एक पुरानी मारुति 800 ने रास्ता काट दिया। गाड़ी से हथियारबंद लोग उतरे। हवा में गोलियां चलीं। रॉय बर्मन के एक सिक्योरिटी गार्ड को गोली भी लगी। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, उन्होंने रॉय बर्मन को बालों से पकड़कर बाहर खींचा, अपनी गाड़ी में फेंका और फरार हो गए।
'भूत बंगला' और 3 करोड़ 75 लाख
रॉय बर्मन को किडनैप करके 24 नॉर्थ परगना के एक गांव ले जाया गया। गांव का नाम पुखुरिया- भारत-बांग्लादेश बॉर्डर के बिलकुल करीब। यहीं एक सुनसान घर में उन्हें कैद किया गया। गैंग ने इस ठिकाने को एक नाम दिया था। 'भूत बंगला', देखरेख का इंचार्ज बनाया गया- हरप्रीत सिंह उर्फ़ हैप्पी सिंह। हैप्पी कोलकाता का लोकल गुंडा नहीं था। आफताब अंसारी के नेटवर्क का एक भरोसेमंद आदमी था, जिसे दिल्ली से बुलाया गया था।
जिस वक्त रॉय बर्मन भूत बंगले में कैद थे। उनके घर की फोन की घंटी बज रही थी। रॉय बर्मन को छोड़ने के लिए 5 करोड़ की फ़ैरौती मांगी गई। कुछ रिपोर्ट्स तो कहती हैं कि यह डिमांड 15 करोड़ तक भी गई थी। पूरे आठ दिन तक यह मोलभाव का खेल चलता रहा।
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सार्वजनिक तौर पर रॉय बर्मन परिवार ने हमेशा कहा कि कोई पैसा नहीं दिया गया। एक रुपया भी नहीं लेकिन पुलिस की जांच में कहानी कुछ और सामने बताई। जांच एजेंसियों के मुताबिक, डील पक्की हुई थी। 3 करोड़ 75 लाख रुपये में।
पैसा देना था लेकिन कोलकाता में नहीं। अंसारी ने हैदराबाद पैसे मंगवाए। रॉय बर्मन की फ़ैमिली से एक शख्स हैदराबाद गया और पैसे दिए- 'करीम डॉलर' को। करीम डॉलर जैसा पहले बताया, हवाला का नेटवर्क चलाता था। रॉय बर्मन की फिरौती का पैसा कलेक्ट करके, करीम डॉलर ने कुछ ही घंटों में वो पैसा हवाला के रास्ते दुबई पहुंचा दिया। 2 अगस्त, 2001 की सुबह। किडनैपर्स रॉय बर्मन को गाड़ी में बिठाकर निकले और उन्हें हरूआ के पास एक सुनसान सड़क पर उतार दिया। वहां से उन्होंने पहले एक साइकिल-रिक्शा पकड़ा। फिर मेन रोड से एक टैक्सी ली और अपने घर पहुंचे।
हैदराबाद कनेक्शन और 'करीम डॉलर'
रॉय बर्मन घर लौट आए थे। किडनैपर्स अपने पैसे लेकर गायब हो चुके थे। कहानी यहीं ख़त्म हो सकती थी लेकिन फिर कोलकाता पुलिस ने फोन नंबर्स और कॉल रिकॉर्ड्स को खंगालना शुरू किया। पुलिस को उम्मीद थी कि सुराग बंगाल के ही किसी लोकल गैंग तक जाएगा लेकिन जब कॉल्स को ट्रेस किया गया तो लाइन सीधे पहुंच गई हैदराबाद। यह केस में पहला बड़ा ब्रेकथ्रू था। अब यह साफ हो गया था कि यह किसी लोकल गैंग का काम नहीं, बल्कि एक मल्टी-स्टेट नेटवर्क है। फौरन पश्चिम बंगाल CID की एक टीम हैदराबाद के लिए रवाना हुई।
रॉय बर्मन की रिहाई के ठीक 15 दिन बाद। एक जॉइंट टीम ने हैदराबाद में कई ठिकानों पर एक साथ छापा मारा और यहीं पुलिस के हाथ लगा अब्दुल करीमुद्दीन उर्फ़ 'करीम डॉलर'।
करीम के पास से सेल फोन और गाड़ियां भी मिलीं, जिनका इस्तेमाल फिरौती के पैसे लाने-ले जाने में हुआ था। पूछताछ में करीम ने कबूल किया कि रॉय बर्मन के परिवार ने करीब 3 करोड़ रुपये कैश दिए थे। करीम डॉलर ने एक और बात बताई। उसका हवाला नेटवर्क इस्तेमाल करने वालों में दाऊद इब्राहिम की डी-कंपनी भी थी। D कंपनी का नाम आते ही यह साफ़ हो गया कि केस के तार मुंबई अंडरवर्ल्ड से जुड़े हैं। करीम डॉलर की गिरफ्तारी के दो दिन बाद 19 अगस्त को पुलिस ने मुंबई में भी छापा मारा और यहां उनके हाथ लगे तीन और किरदार। इनमें पहली थी स्वाति पाल। एक कैबरे डांसर। स्वाति इस गैंग के लिए एक इंटरनेशनल कूरियर का काम कर रही थी। वह दुबई और मुंबई के बीच मैसेज और पैसा, इधर से उधर करती थी। उसके अलावा मुंबई के पुलिस के हाथ दो और लोग लगे, इन सबका कनेक्शन D-कंपनी के साथ था।
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कोलकाता हैदराबाद से होती हुई कहानी मुंबई पहुंच चुकी थी लेकिन केस की कई गुत्थियां अब भी अनसुलझी थीं। इन्हें सुलझाया दिल्ली में हुई एक गिरफ्तारी ने। अक्टूबर, 2001 में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने आसिफ रज़ा खान को पकड़ा। आसिफ कोलकाता के बेनियापुकर का रहने वाला। उसके कनेक्शन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया, SIMI और और हिज्ब-उल-मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठनों से थे। आसिफ रज़ा खान ने रॉय बर्मन किडनैपिंग को लेकर कई बातें बताई। इनमें से एक बात ऐसी थी, जिसने दिल्ली से लेकर वॉशिंगटन तक कान खड़े कर दिए।
उसने बताया कि रॉय बर्मन से मिली फिरौती का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में बैठे एक आतंकी को भेजा गया था। उस आतंकी का नाम था उमर सईद शेख। यह वही उमर सईद शेख था, जिसे भारत ने 1999 में कंधार प्लेन हाईजैक के बदले रिहा किया था और जिसने बाद में अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या की थी। आफताब अंसारी और उमर शेख, दोनों एक दूसरे को पहले से जानते थे। दोनों की दोस्ती दिल्ली की तिहाड़ जेल में हुई थी। उमर शेख 1994 में कुछ विदेशी टूरिस्ट्स को किडनैप करने के आरोप में तिहाड़ में बंद था। वहीं, आफताब अंसारी भी कुछ छोटे-मोटे मामलों में तिहाड़ में बंद था। 1999 में अंसारी जमानत पर बाहर आया और फर्जी पासपोर्ट बनवाकर दुबई भाग गया। दुबई से अंसारी ने उमर शेख से दोबारा कांटैक्ट किया। अंसारी उमर के लिए पैसों का इंतज़ाम करता था। वहीं उमर अंसारी के लिए हथियारों का बंदोबस्त। जो इंडिया में स्मगल किए जाते थे।
आंतक और अंडरवर्ड का यह गठजोड़ कितना असरदार था ऐसे समझिए कि रॉय बर्मन किडनैपिंग से जो फिरौती मिली थी, उसका एक हिस्सा अमेरिका में हुए 9/11 अटैक में इस्तेमाल किया गया यहा। यह बात आसिफ रज़ा खान ने पुलिस को बताई। उसने बताया कि उमर शेख ने फिरौती के पैसों में से 1 लाख डॉलर, यानी करीब 47 लाख रुपये, मोहम्मद अता को भेजे थे। ईजिपट का वही मोहम्मद अता, जो 11 सितंबर 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले का मास्टरमाइंड था।
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इतना ही नहीं, इसी फिरौती का एक हिस्सा दिसंबर, 2001 को भारतीय संसद पर हुए हमले को फाइनेंस करने के लिए भी हुआ था। जांच एजेंसियों को इस बात के भी सबूत मिले कि 13 दिसंबर को संसद पर हमला करने वाले आतंकियों ने हमले से ठीक पहले दुबई में एक फोन कॉल किया था। यह कॉल आफताब अंसारी को ही किया गया था, जिसे आगे उमर शेख को फॉरवर्ड किया गया। यह एक ऐसा खुलासा था, जिसने इस किडनैपिंग केस को दो बड़े आतंकी हमलों से जोड़ दिया था। आसिफ रज़ा खान इस केस का सबसे बड़ा गवाह था लेकिन वह कभी कोर्ट नहीं पहुंच पाया। दिसंबर 2001 में गुजरात के राजकोट में एक पुलिस एनकाउंटर में वह मारा गया। पुलिस ने कहा कि उसने भागने की कोशिश की थी।
आखिरी गलती
आसिफ रज़ा खान की मौत के साथ ही, पुलिस के हाथ से सबसे बड़ा गवाह निकल गया था। अब जांच एजेंसियां एक अजीब सी मुश्किल में थीं। आफताब अंसारी तो दुबई में बैठा था। भारत के कानून की पहुंच से बहुत दूर। अंसारी को भी यही लगा। इसी गुरूर में उसने एक बहुत बड़ी गलती कर दी। उसने अपने आदमी आसिफ की मौत का बदला लेने की ठानी। 22 जनवरी, 2002, 9/11 हमले को हुए अभी सिर्फ चार महीने हुए थे। पूरी दुनिया में अमेरिका को लेकर माहौल बहुत सेंसिटिव था। ठीक उसी वक्त, कोलकाता में मोटरसाइकिल पर आए कुछ आतंकियों ने अमेरिकी वाणिज्य दूतावास से जुड़ी एक बिल्डिंग- अमेरिकन कल्चरल सेंटर पर फायरिंग कर दी। इस हमले में ड्यूटी पर तैनात पांच पुलिसकर्मी मारे गए।
हमले के कुछ ही देर बाद, कोलकाता के मीडिया दफ्तरों में एक फोन बजा। फोन दुबई से था। लाइन पर मौजूद शख्स ने इस हमले की ज़िम्मेदारी ली। उसने कहा, 'यह हमला आसिफ रज़ा खान की मौत का बदला है।' फोन करने वाला खुद आफताब अंसारी था और यह उसकी आखिरी गलती थी। इस एक फोन कॉल ने सारे डॉट्स कनेक्ट कर दिए। भारतीय जांच एजेंसियों के लिए अब यह बिलकुल साफ हो गया। खादिम किडनैपिंग का मास्टरमाइंड राजू और अमेरिकन सेंटर पर हमले की ज़िम्मेदारी लेने वाला आफताब अंसारी, एक ही आदमी है।
एक अमेरिकी ठिकाने पर हमला, वह भी 9/11 के फौरन बाद। यह एक ऐसी रेड लाइन थी जिसे पार करके अंसारी ने अपने लिए सारे दरवाज़े बंद कर लिए थे। अब उसके पीछे सिर्फ भारत की पुलिस नहीं, बल्कि FBI और दुनिया भर की एजेंसियां पड़ गईं। भारत और अमेरिका, दोनों ने UAE सरकार पर भारी दबाव बनाया। कुछ ही दिनों के अंदर, भारतीय और UAE की एजेंसियों ने उसे दुबई में ट्रैक करके गिरफ्तार कर लिया। 9 फरवरी, 2002 को उसे भारत डिपोर्ट कर दिया गया।
आफताब अंसारी भारत की गिरफ्त में था। उस पर केस चला। पूरा मामला उलझा हुआ था, टोटल 33 आरोपी, कई राज्यों और देशों से जुड़े तार और आतंकवाद का एंगल। पुलिस और वकीलों के सामने सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब खुद विक्टिम, पार्थप्रतिम रॉय बर्मन कोर्ट में गवाही देने आए। उन्होंने अदालत में किसी भी आरोपी को पहचानने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें कुछ याद नहीं है, उनकी याददाश्त चली गई है।
हालांकि, पुलिस के पास दूसरे बहुत सारे सबूत थे। फोन कॉल्स के रिकॉर्ड, हवाला लेन-देन के सबूत और पकड़े गए गैंग मेंबर्स के कबूलनामे। इन्हीं सबूतों के आधार 2009 में पहला बड़ा फैसला आया। कोर्ट ने आफताब अंसारी और उसके चार खास गुर्गों, जिनमें दिल्ली का हरप्रीत 'हैप्पी' सिंह भी शामिल था, को उम्रकैद की सज़ा सुनाई। हैप्पी सिंह की मई 2014 में जेल के अंदर ही हत्या कर दी गई। अंसारी को अमेरिकन सेंटर वाले केस में पहले फांसी की सज़ा सुनाई गई। जिसे बाद में उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया।
ख़ादिम किडनैपिंग केस में आख़िरी फैसला 2017 में आया। 8 और लोगों को सजा हुई, जिनमें तीन पाकिस्तानी नागरिक भी शामिल थे। इस फैसले ने साज़िश के इंटरनेशनल आतंकी कनेक्शन पर आखिरी मुहर लगा दी। कुल मिलाकर, इस अपहरण कांड में 13 लोगों को उम्रकैद हुई। कुछ, जैसे आसिफ रज़ा खान एनकाउंटर में मारे गए। कुछ, जैसे हैप्पी सिंह, जेल के अंदर गैंगवार का शिकार हो गए।
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