बिहार का सुपौल जिला नेपाल की अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटा हुआ है। पूर्वकाल में सुपौल जिला 'मत्स्य क्षेत्र' कहलाता था। इसका इतिहास वैदिक काल से जुड़ा है, यह इलाका मिथिलांचल क्षेत्र का हिस्सा है। सुपौल शहर इस जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। जिले की स्थापना 14 मार्च 1991 में सहरसा जिले को विभाजित करके की गई थी। यह कोशी प्रमंडल का हिस्सा है और इसकी सीमाएं नेपाल, अररिया, सहरसा और मधुबनी जिलों से लगती हैं। जिला मुख्यालय सुपौल शहर में है और 14 मार्च 1991 को इसका आधिकारिक गठन हुआ था।
कुल 5 विधानसभा सीटों वाला यह जिला बिहार के उन जिलों में आता है, जहां एनेशनल डेमोक्रैटिक अलायंस (NDA) का दबदबा है। खासतौर से यह जेडीयू का गढ़ है। बीजेपी के साथ मिलकर जेडीयू यहां और भी मजबूत हो जाती है। यहां 2020 में जेडीयू और बीजेपी ने एक साथ मिलकर सुपौल से महागठबंधन का सुपड़ा साफ कर दिया था और जिले की पाचों सीटें अपने नाम कर ली थीं। पिछले चुनाव में 4 विधानसभाओं पर जेडीयू और एक सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी।
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सुपौल जिले की बात करें तो यह मिथिला क्षेत्र का हिस्सा है। मैथिली यहां की प्रमुख भाषा है। सुपौल के ठीक उपर नेपाल है और उत्तर-पश्चिम में मधुबनी, दरभंगा और समस्तीपुर जिले हैं। जिले से होकर बिहार की शोक कही जाने वाली कोसी नदी यहीं से होकर बहती है। यहां के कई इलाके कोसी नदी के बाढ़ क्षेत्र में आते हैं। मध्यकाल काल तक सुपौल का इतिहास गौरवशाली रहा है। यहां छोटे-छोटे राजाओं का राज हुआ करता था। यहां गणपत सिंह, नरपत सिंह, सुरपत सिंह, भूपेन्द्र नारायण सिंह जैसे कई राजाओं की अपनी गढ़ी रही है।
राजनीतिक समीकरण
इस जिले में 5 विधानसभा सीट और एक लोकसभा सीट आती है। 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में जेडीयू ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, जिसमें उसे जीत मिली थी। जेडीयू ने आरजेडी के उम्मीदवार को बड़े वोटों से हराकर सांसदी जीत ली थी। जबकि, पांच विधानसभा सीटों में से चार पर जेडीयू और एक पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। इसमें निर्मली, पिपरा, सुपौल और त्रिवेणीगंज में जेडीयू और छातापुर पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था।
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हालांकि, जिले में आरजेडी और कांग्रेस दोनों मिलकर भी एनडीए के सामने संघर्ष कर रही हैं। कांग्रेस के पास पूर्व सांसद रंजीता रंजन जैसी बड़ी नेता होने के बावजूद भी कामयाबी नहीं मिल रही है। रंजीता रंजन पर क्षेत्र में आरोप लगता रहा है कि वह सुपौल से ज्यादा दिल्ली में समय बिताती हैं।
विधानसभा सीटें:-
निर्मली विधानसभा: निर्मली विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र संसदीय एवं विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन आदेश के बाद साल 2008 में अस्तित्व में आई थी। निर्मली से जेडीयू के अनिरुद्ध प्रसाद यादव लगातार तीन बार से विधायक हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने जेडीयू के यदुवंश कुमार यादव को हराया था।
पिपरा विधानसभा: पिपरा विधानसभा भी 2008 के परिसीमन के बाद साल 2008 में अस्तित्व में आई थी। इस पर अभी तक कुल 3 ही चुनाव हुए हैं, जिसमें से दो बार जेडीयू और एक बार आरजेडी ने जीत दर्ज की है। यहां से वर्तमान में जेडीयू के राम बिलास कामत विधायक हैं।
सुपौल विधानसभा: सुपौल विधानसभा काफी पुरानी सीट है। यहां सबसे पहली हार साल 1952 में चुनाव हुए थे। इस पर अभी तक कुल 18 विधानसभा चुनाव हुए हैं, जिसमें साल 2000 से ही जेडीयू का कब्जा है। पिछले 20 सालों से सुपौल विधानसभा से जेडीयू का ही प्रत्याशी जीतता आया है। वर्तमान में यहां से बिजेंद्र प्रसाद यादव विधायक हैं। वह सुपौल से आठ बार के विधायक हैं।
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त्रिवेणीगंज विधानसभा: त्रिवेणीगंज विधानसभा में पहली बार 1957 में चुनाव हुए थे। शुरुआती चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस यहां गर्त में चली गई है।16 चुनावों में से आरजेडी यहां से केवल दो बार ही जीती है। त्रिवेणीगंज में 2009 से लगातार जेडीयू जीतती आ रही है।
छातापुर विधानसभा: छातापुर विधानसभा में 2005 से जेडीयू और बीजेपी के प्रत्याशी विधायक रहे हैं। 2015 और 2020 में बीजेपी ने यहां से चुनाव जीता था, जबकि 2005 और 2010 का चुनाव जेडीयू ने जीता था। वर्तमान में यहां से बीजेपी के नीरज कुमार सिंह विधायक हैं।
जिले का प्रोफाइल
लगभग 23 लाख की जनसंख्या वाले सुपौल जिले में 11 ब्लॉक, 181 ग्राम पंचायतें, एक नगर निगम और 4 सब-डिवीजन हैं। सुपौल में कुल 20 पुलिस थाने हैं, जो जिले की कानून व्यवस्था को संभालते हैं। जिले का कुल क्षेत्रफल 2,425 Sq किलोमीटर है।
कुल सीटें-5
मौजूदा स्थिति-
JDU- 4
BJP- 1
