‘क्या कुर्बानी का जानवर आ गया है?’ इस्तांबुल शहर में सऊदी दूतावास के अंदर एक डॉक्टर अपने साथी आर्मी जनरल से यह सवाल पूछ रहा था। जब दूतावास के बाहर एक पत्रकार और उसकी मंगेतर अपनी होने वाले शादी की तैयारियां कर रहे थे। बीच में रुकावट थी। एक कागज़ का टुकड़ा, जिसे हासिल करने के लिए पत्रकार सऊदी दूतावास के अंदर गया लेकिन कभी लौटकर नहीं आया।

 

2 अक्टूबर 2018, 36 साल की पीएचडी स्टूडेंट हतीस सेंगिज गहरी नींद में थी, जब उनका अलार्म बजा। घड़ी में 3 बजकर 45 मिनट हो रहे थे। हतीस के लिए यह दिन काफी खास था। वह अपने होने वाले पति से मिलने जा रही थीं, कोई आम शख्स नहीं। जमाल खशोगी। 60 साल का यह उम्रदराज़ पत्रकार अरब दुनिया का मशहूर चेहरा था। कभी सऊदी शाही परिवार का करीबी रहा था लेकिन अब अपने लेखों से सऊदी राजघराने के एक शहजादे की बखियां उधेड़ रहा था। शहजादा जिसे सऊदी सर्कल्स में एक खास नाम से बुलाया जाता था। अबु रसासा यानी फादर ऑफ़ बुलेट्स। सऊदी प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान (MBS) के डर से खशोगी ने अमेरिका में शरण ली। वाशिंगटन पोस्ट में उनका कॉलम छपता था। ट्विटर पर 15 लाख से ज्यादा फॉलोवर्स थे। जिंदगी इसी ढर्रे गुजरती लेकिन फिर खशोगी की मुलाक़ात हतीस सेंगिज से हुई। इस्तांबुल में रहने वाली हतीस और खशोगी में मुहब्बत पनपी, दोनों ने घर बसाने का फैसला किया। हालांकि, शादी के लिए एक दिक्कत थी।। दरअसल, हतीस के पिता इस रिश्ते से चिंतित थे। वह चाहते थे कि खशोगी कागजी तौर पर साबित करें कि अब वह किसी और से शादीशुदा नहीं है। तुर्की के मैरिज ऑफिस को भी ये दस्तावेज चाहिए थे। तुर्की में एक पति की कई पत्नियां होना गैरकानूनी है जबकि सऊदी अरब में एक आदमी चार पत्नियां रख सकता है।

 

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सिंगल स्टेटस को साबित करने के लिए खशोगी को एक दस्तावेज़ की जरूरत थी। 2 अक्टूबर 2018 के रोज़ खशोगी और हतीस इस्तांबुल के सऊदी दूतावास जाने वाले थे। हतीस उस रोज़ सुबह जल्दी उठ गई ताकि अपने मंगेतर को एयरपोर्ट जाकर रिसीव कर सके। सुबह 4:07 बजे हतीस जूते पहन ही रही थी कि खशोगी का फोन आया। उन्होंने हतीस से कहा, 'एयरपोर्ट की बजाय सीधे अपार्टमेंट में मिले।' सूरज निकलने से पहले ही, इस्तांबुल की पीली टैक्सी खशोगी 'यूरोप अपार्टमेंट्स' की तरफ ले गई। घर का यह नाम इसलिए क्योंकि यह इस्तांबुल के उस हिस्से में पड़ता है जो यूरोप में आता है जबकि दूसरा हिस्सा एशिया में पड़ता है। खशोगी ने यह घर नया-नया खरीदा था। जहां हतीस के साथ वह एक नई जिंदगी शुरू करना चाहते थे लेकिन उन्हें पता नहीं था, जिस दिन को खशोगी नई शुरुआत सोच रहे थे। वही तारीख उनके जीवन का अंत करने वाली थी। 

 

 

इस्तांबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उसी सुबह कुछ खतरनाक घट रहा था। सुबह 3:13 बजे सऊदी अरब की राजधानी रियाद से उड़ान भरने वाला एक प्राइवेट जेट इस्तांबुल में लैंड किया। प्लेन का नाम HZ-SK2। जिसे डिप्लोमेटिक परमिशन मिली हुई थी। प्लेन से 9 लोग उतरे। दिखने में आम लोग लेकिन असलियत में एक सीक्रेट मिशन पर आए थे और उनका शिकार उनसे सिर्फ एक घंटे की दूरी पर था।
 
अलिफ़ लैला के इस लेख में पढ़िए सऊदी पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या की पूरी कहानी। कैसे हुई थी जमाल खशोगी की हत्या की प्लानिंग? क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान का इसमें क्या रोल था? MBS के फोन मेसेजेस से CIA को क्या पता चला? खशोगी की डेड बॉडी को कैसे ठिकाने लगाया गया? तमाम सवालों के जवाब जानने की लिए शुरुआत करते हैं एकदम शुरू से। 

फादर ऑफ बुलेट्स

 

जोनाथन रगमन अपनी किताब ‘द किलिंग इन द कांसुलेट' में बताते हैं, 'जमाल खशोगी वॉशिंगटन के जिस दो कमरे के अपार्टमेंट में रहते थे, उसके ठीक सामने, सड़क के पार रित्ज-कार्लटन होटल दिखता था। अमेरिका का यह होटल खशोगी को रियाद के उस रित्ज-कार्लटन की याद दिलाता था, जहां से सारी कहानी शुरू हुई थी।' जुलाई 2017, सऊदी प्रिंस मुहम्मद सलमान का उरूज शुरू हुआ। तमाम कॉम्पिटीटर्स को किनारे लगाकर MBS क्राउन प्रिंस बने। दुनिया के सामने MBS की छवि एक प्रगतिशील शहजादे की थी लेकिन असलियत में लोग उनसे खौफ खाते थे। किशोरवस्था में एक बार किसी रजिस्ट्री ऑफिसर ने जमीन के कागज़ात साइन करने में आनाकानी की। तब MBS की तरफ से उसके पास एक खत आया। खत के अंदर गोली थी। यहां से MBS को एक नया नाम मिला -अबु रसासा - द फादर ऑफ़ बुलेट्स। खौफ का यह कारोबार, क्राउन प्रिंस बनने के बाद भी कायम रहा। 

 

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रगमन अपनी किताब में बताते हैं, सऊद अल-कहतानी, क्राउन प्रिंस का दायां हाथ था। उसे 'मिस्टर हैशटैग' और 'लॉर्ड ऑफ द फ्लाइज़' के नाम से जाना जाता था। कहतानी ने सोशल मीडिया पर वफादारों की एक फौज तैयार की। इनका काम, MBS के समर्थन में प्रोपेगंडा चलाना। x - जो तब ट्विटर हुआ करता था- कहतानी ने यूजर्स की एक ब्लैकलिस्ट तैयार की। जिनमें एक नाम जमाल खशोगी का भी था। खशोगी MBS के तौर तरीकों ओर सवाल उठा रहे थे लेकिन उनका बोलना, लिखना एकदम बंद करा दिया गया। लिहाजा खशोगी ने फैसला किया - देश छोड़ने का।
 
जुलाई 2017 - सिर्फ दो सूटकेस लेकर खशोगी अमेरिका चले आए। यहां पहले से एक घर था। सितम्बर में खशोगी ने वाशिंगटन पोस्ट में कॉलम लिखना शुरू किया और यहीं से वह MBS की नज़र में आ गए। MBS का तानाशाही रवैया दुनिया ने पहली बार नवंबर 2017 में देखा। सऊदी अरब के लगभग 200 व्यापारियों, शहजादों और पूर्व अधिकारियों को गिरफ्तार कर रित्ज-कार्लटन होटल में नजरबंद कर दिया गया। बकौल MBS ये तमाम लोग कैंसर की तरह थे, जिनका इलाज़ किया जाना जरूरी था। तमाम लोगों को महीनों कैद रखकर उगाही की गई। उसके बाद ही रिहाई मिली। खशोगी ने अपने कॉलम में इस घटना के बारे में लिखा - ‘द नाईट ऑफ लॉन्ग नाइव्स’। यह नाम ओरिजनली नाजी जर्मनी में हुई एक घटना को दिया गया था। साल 1934 में जब एक ही रात में हिटलर ने अपने तमाम प्रतिद्वंद्वी ठिकाने लगा दिए थे। 


खशोगी की कलम ने जैसे ही MBS के खिलाफ बोलना शुरू किया, इसकी कीमत सऊदी में उनके परिवार को चुकानी पड़ी। परिवार के ट्रेवल पर रोक लगा दी गई। इसके बाद सोशल मीडिया में खशोगी के खिलाफ कैम्पेन शुरू हुए। उन्हें 'कैंसर', 'गद्दार', 'जायोनिस्ट'- कहा जाने लगा। 

 

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हालांकि, इसके बाद भी खशोगी लगातार लिखते रहे। यह सोचकर कि शायद अमेरिका में वह सुरक्षित हैं, यह गलतफहमी थी। मई 2018 में खशोगी के पास एक कॉल आया। फोन के दूसरी तरफ MBS का भरोसेमंद सऊद अल-कहतानी था। कहतानी ने खशोगी को पेशकश की। लौट आओ, सलाहकार का पद मिलेगा। खशोगी ने इनकार कर दिया। इसके बाद शुरू हुआ डिजिटल जासूसी का सिलसिला। खशोगी को पता चला कि उनके मोबाइल कम्युनिकेशन पर सऊदी की पूरी नज़र है। कैसे? 

 

दसअसल, अपने लेखन के अलावा भी खशोगी सऊदी अरब में जागरूकता बढ़ाना चाहते थे। एक थिंक टैंक बनाना चाहते थे। खशोगी और उनके हमवतन ओमर अब्दुलअजीज ने एक योजना बनाई। ‘साइबर बीज’ नाम से। इसके तहत सऊदी युवाओं को विदेशी सिम कार्ड भेजे जाते थे ताकि वे सोशल मीडिया पर सऊदी राजपरिवार की खुलकर आलोचना कर सकें लेकिन यह प्लान भी सऊदी अधिकारियों के हाथ लगा गया। अगस्त 2018 में खशोगी को पता चला कि सऊदी अधिकारीयों ने अब्दुल अजीज के फोन में स्पायवेयर इंस्टॉल किया था और इसके जरिए वह सारी जानकारियां निकाल रहे थे। खशोगी के 400 वॉट्सऐप मेसेज भी सऊदी के पास थे, जिनमें से एक में वह MBS के बारे में लिखते हैं, 'वह पैकमैन की तरह है - जितने अधिक शिकारों को खाता है, उतनी भूख बढ़ती जाती है।'
 
इन प्रकरण के बाद खशोगी समझ गए कि अमेरिका में भी वह सुरक्षित नहीं। सावधानी जरूरी थी लेकिन फिर खशोगी से एक बड़ी गलती हो गई - उन्हें प्यार हो गया। 

ऑटोमोन सुलतान की कब्र 

 

मई 2018 की बात है। खशोगी एक कॉन्फ्रेंस में भाग लेने तुर्की के इस्तांबुल गए हुए थे। यहां उनकी मुलाकात हतीस सेंगिज से हुई। जैसा शुरुआत में बताया, हतीस पीएचडी स्कॉलर थीं। दोनों ने शादी का फैसला किया। यहां से यह कहानी पहुंचती है सीधे 2 अक्टूबर 2018 की तारीख पर। इस रोज़ खशोगी और हतीस, दोनों को सऊदी दूतावास जाना था। सुबह करीब 11:50 बजे, खशोगी ने सऊदी दूतावास को फोन किया और बताया कि वह आ रहे हैं। खशोगी को बताया गया कि दोपहर 1 बजे तक उनके दस्तावेज तैयार हो जाएंगे। दोपहर 12:42 बजे, खशोगी और हतीस अपने अपार्टमेंट से बाहर निकले। एक टैक्सी में बैठकर दोनों रवाना हो गए। रास्ते में दोनों ने कॉन्स्टेंटिनोपल की उन दीवारों को देखा, जिस पर चढ़कर 500 साल पहले तुर्की के ओटोमन साम्राज्य ने कॉन्स्टेंटिनोपल (इस्तांबुल का पुराना नाम) पर विजय हासिल की थी। खशोगी, इतिहास के शौकीन थे और खुद ओटोमन वंश से आते थे। लगभग एक महीने पहले इस्तांबुल में ऑटोमन सुलतान महमद के मकबरे पर जाकर उन्होंने कहा था, 'अगर मैं अभी मर जाऊं तो क्या वे मुझे यहां दफनाएंगे?'

 

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यही सब सोचते-सोचते खशोगी की टैक्सी विंडम ग्रैंड होटल के पास से गुजरी। खशोगी के पास इसपर ध्यान देने की वजह नहीं थी लेकिन असलियत में यह वही होटल था, जहां खशोगी के हत्यारों ने पिछली रात बिताई थी। 15 लोगों की एक ख़ुफ़िया टीम, सऊदी अरब से पहुंची थी। टीम का प्रमुख - ब्रिगेडियर जनरल महेर मुत्रेब, MBS का खास आदमी था। जो इस घटना से छह महीने पहले ही MBS के बॉडीगार्ड के रूप में ब्रिटेन और अमेरिका गया था। इसके अलावा- लेफ्टिनेंट कर्नल सलाह अल-तुबाइगी- नाम से डॉक्टर लेकिन इस्तांबुल उसे कसाई का काम कराने के लिए लाया गया था।
 
मुस्तफा अल-मदानी - 57 साल का यह शख्स टीम का सबसे उम्रदराज़ मेंबर था और उसे उसकी उम्र और शक्ल-सूरत के लिए ही चुना गया था। क्यों? आगे कहानी सुनिए लेकिन पहले सुनिए घटना ही सुबह क्या हुआ? 9 से 11 बजे के बीच ये लोग अलग-अलग गुटों में सऊदी दूतावास के अंदर घुसे। वहां इन्हें दो ग्रुप में बांटा गया। एक टीम काम को अंजाम देती जबकि दूसरी का काम लॉजिस्टिक्स देखना था। दूतावास में जब यह टीम मौजूद थी। उस समय वहां कोई और नहीं था। सभी गैर-सऊदी कर्मचारियों को या तो दोपहर 12 बजे घर भेज दिया था या वहां आने से मना किया था।

 

जो सऊदी कर्मचारी रह गए थे, उन्हें अचानक बुलाई गई एक मीटिंग में बैठा दिया गया। यह मीटिंग करीब एक घंटे तक चली। इस बीच ख़ुफ़िया टीम प्लानिंग दुरुस्त करने में लग गई। दोपहर 1:02 बजे, डॉ. तुबाइगी ने टीम लीडर मुत्रेब से पूछा, ‘उम्मीद है काम आसान होगा’ 
मुत्रेब ने हां में जवाब दिया। इसके बाद उसने डॉक्टर से कहा, 'क्या शरीर और कूल्हों को इस तरह एक बैग में डालना संभव होगा?'

डॉ. तुबाइगी ने जवाब दिया- 'नहीं, जमाल लंबा है, करीब 1.8 मीटर। वह बहुत बड़ा है। उसका पिछवाड़ा घोड़े जैसा है। अगर हम दो प्लास्टिक बैग में पैक करेंगे, तो कोई शक नहीं करेगा।'


इसके बाद दोनों के बीच 'चमड़े के बैग' के इस्तेमाल पर बात हुई। 
डॉक्टर नाराज़ था, उसने मुत्रेब से कहा, 'यह पहली बार है कि मैं किसी को जमीन पर काटूंगा। एक कसाई भी जानवर को काटने के लिए लटका देता है।'
इसके बाद उसने टीम के एक सदस्य से अपने हेडफोन मांगे। बोला, 'म्यूजिक सुनते हुए काम करना आसान होता है'

 

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यह पूरी बातचीत घटना के काफी दिनों बाद दुनिया के सामने आई। दरअसल, हत्यारों को पता नहीं था कि तुर्की इंटेलिजेंस ने दूतावास में बग लगाए हुए थे, जिनमें उनकी सारी बातें रिकॉर्ड हो रही थीं। इस्तांबुल में सऊदी दूतावास एक दो मंजिला इमारत है। खशोगी और उनकी मंगेतर दोपहर लगभग एक बजकर 10 मिनट पर यहां पहुंचे। रिकार्ड्स के अनुसार 1 बजकर 13 मिनट पर मुत्रेब ने पूछा, 'क्या कुर्बानी का जानवर अब तक पहुंचा?'

दूसरी तरफ से जवाब आया- 'हां, वह आ गया है'


बाहर खशोगी ने अपने दोनों मोबाइल फोन हतीस को दिए। उनसे इंतज़ार करने को कहा और खुद दूतावास की बिल्डिंग के धूसर रंग के उस गेट से अंदर चले गए। जिस पर पर सोने की दो तलवारों वाला निशान बना हुआ था।

 
कुर्बानी का जानवर 

 

दोपहर 2:30 बजे खशोगी को अंदर गए डेढ़ घंटा हो चुका था। हतीस बाहर फुटपाथ पर इंतजार में बैठी थीं। उन्होंने पास के एक सुपरमार्केट से दो बोतल पानी खरीदा। एक अपने लिए और एक अपने मंगेतर के लिए लेकिन मंगेतर बाहर आया ही नहीं। दूतावास के अंदर, मौत का खेल पूरा हो चुका था। जमाल खशोगी का शरीर फर्श पर पड़े थे। डॉ. तुबाइगी ने अपने हेडफोन पहन लिए थे और अब वह लाश के टुकड़े करके उन्हें प्लास्टिक के काले बैग में भर रहा था। जनरल मुत्रेब ने उससे जल्दी-जल्दी काम निपटाने को कहा। इसके बाद एक कॉल गया। सीधा रियाद। कहा गया, 'काम पूरा हो गया है। हम जल्द ही निकल जाएंगे।' मुत्रेब ने इत्तिला दी।
 
टीम के एक सदस्य मुस्तफा अल-मदानी, के बारे में हमने बात की थी। जो अपनी उम्र और चेहरे के लिए चुना गया था। अल-मदानी की शक्ल और शरीर खशोगी से मिलता-जुलता था। काम पूरा होने के बाद उसने खशोगी के कपड़े पहने। जैकेट, पैंट, और शर्ट। साथ में एक नकली दाढ़ी भी लगाई। मुत्रेब ने उसे आगे का काम समझाया - 'तुम्हें बस ब्लू मस्जिद तक जाना है, वहां कुछ देर बिताना है और फिर होटल वापस आना है।'

 

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पूरा आयोजन इसलिए था ताकि किसी को शक न हो और बाद में वे दावा कर सकें कि खशोगी सही सलामत दूतावास से बाहर निकल गए थे। दूसरी तरह दूतावास के बाहर, हतीस सेंगिज पूरी तरह से परेशान हो चुकी थीं। शाम 4 बजे तक जब खशोगी नहीं लौटे, हतीस ने अपनी बहन को फोन मिलाया। बहन ने इंटरनेट पर चेक किया तो पता चला दूतावास की टाइमिंग 3 बजकर 30 मिनट थी। यानी दूतावास बंद हुए 30 मिनट हो चुके थे लेकिन खशोगी का कहीं कोई नामों निशान नहीं था। हतीस ने दूतावास के गार्ड से पूछा। गार्ड अंदर गया, लौटकर उसने बताया कि अंदर कोई नहीं है।
 
शाम 5:50 बजे, हतीस दूतावास के पास एक पुलिस स्टेशन पहुंची। गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज़ करवाने। इस बीच यह खबर तुर्की हाई ऑफिसियल तक पहुंच गई। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन के सलाहकार, यासिन अकताय, खशोगी के दोस्त थे। उन्होंने सीधे सऊदी राजदूत को फोन किया। राजदूत ने कहा कि दस मिनट में वापिस कॉल करेगा लेकिन अगले दो महीने तक उसका कॉल नहीं आया।
 
इस बीच तुर्की राष्ट्रपति एर्दोआन भी एक्टिव हुए। वह दो बार खशोगी से मिल चुके थे। इतना बड़ा पत्रकार दिन-दिहाड़े इस्तांबुल के बीचोंबीच गायब हो गया। एर्दोआन ने तुरंत जांच के आदेश दिए। अगले दिन जांच शुरू हुई। तुर्की अधिकारियों ने दूतावास के बाहर लगे कैमरों के फुटेज की जांच शुरू की। फुटेज में उन्होंने खशोगी को अंदर जाते हुए तो देखा लेकिन बाहर निकलते नहीं। खशोगी चूंकि अमेरिका में रहकर काम कर चुके थे। लिहाजा मामले को इंटरनेशनल होने में देरी नहीं लगी। वाशिंगटन पोस्ट की तरफ से अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के दामाद जेरेड कुशनर को फोन गया। कुशनर मिडिल ईस्ट के जिम्मा संभाले हुए थे और MBS से उनकी अच्छी दोस्ती थी। 

 

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MBS से जब इस बाबत सवाल हुआ, उन्होंने कहा, 'जमाल खशोगी सऊदी नागरिक था। वह दूतावास में गया लेकिन उसके हम जानना चाहते हैं कि उसके साथ क्या हुआ।' खशोगी की मौत के 24 घंटे के अंदर MBS ये बात कह रहे थे लेकिन तुर्की इंटेलिजेंस पहली ही समझ गई थी कि MBS को खशोगी का हश्र मालूम था। दूतावास में लगे बग से सारी कहानी सामने आ चुकी थी। दो दिन के बाद ही पूरी दुनिया को खशोगी की हत्या का चल चुका था। न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक तुर्क अधिकारी के हवाले से लिखा, 'खशोगी को आरी से टुकड़े-टुकड़े किया गया था।' खशोगी की हत्या हुई- यह बात पूरी दुनिया के सामने थी। MBS का हाथ- सबको शक था लेकिन इसे साबित करने के लिए अधिकारियों को पहले खशोगी की बॉडी चाहिए थी।
 
कैसे हुआ खुलासा?

 

खशोगी की हत्या के दो हफ्ते बाद तुर्की पुलिस को दूतावास में जाने की परमिशन मिली। इससे पहले सऊदी अरब की तरफ से तमाम बहाने बनाए गए। कभी कहा, 'खशोगी दूतावास छोड़ चुका है', कभी कहा- 'शायद अंदर ही है', फिर कहा, 'हमारे पास कोई जानकारी नहीं है'- असलियत जांच से ही पता चल सकती थी। जांच के नाम पर आई सऊदी टीम इस्तांबुल आई थी। बाद में तुर्की अधिकारीयों को पता चला इनमें से एक केमिस्ट और एक पाइजन एक्सपर्ट था। दो दिन दूतावास में बिताने के बाद ही उन्होंने तुर्की विशेषज्ञों को एंट्री की परमिशन दी।

हत्या के 13 दिन बाद यानी 15 अक्टूबर के रोज़ फॉरेंसिक विशेषज्ञ दूतावास के अंदर घुसे। एक स्निफर डॉग फ्रिज की तरफ बढ़ा लेकिन उसको अंदर कुछ नहीं था। असलियत में कुछ मिल ही नहीं सकता था क्योंकि वारदात की जगह को पूरी तरफ सफाचट कर दिया गया था। पूरी बिल्डिंग केमिकल से महक रही थी। बरामदे को ब्लीच कर दिया गया था जबकि दीवारों पर पेंट पोता था। सीसीटीवी रिकॉर्डिंग मांगी गई तो कहा गया कि 2 अक्टूबर को इमारत के सभी सीसीटीवी कैमरे खराब थे जबकि बिल्डिंग के बाहर का फुटेज पहले ही देखा जा चुका था। तुर्की विशेषज्ञों ने दूतावास में मौजूद गाड़ियों की जांच करनी चाही। इसके लिए सिर्फ 13 घंटे दिए गए।
 
अंदर एक कुआं भी था, 21 मीटर गहरा जिसमें सिर्फ 9 मीटर पानी भरा था। खशोगी की लाश के टुकड़े उसमें छिपाए गए हो सकते थे लेकिन सऊदी अधिकारियों ने कुएं को खाली करने से मना कर दिया। सिर्फ पानी का एक नमूना लेने की अनुमति दी गई। यहां से भी कोई सबूत हाथ नहीं आया। तुर्की जांच टीम को पता चला कि घटना से पहले सऊदी टीम जंगल और कुछ दूर के इलाकों में रेकी करने गई थी। शायद वे बॉडी को छुपाने का ठिकाना ढूंढ रहे थे। अगले 30 दिनों तक 500 लोगों के टीम ने चप्पा-चप्पा छान डाला, कचरे में, कुएं में, शहर के बाहर के जंगलों में लेकिन तुर्की पुलिस खशोगी के शरीर को कभी नहीं ढूंढ पाई। सारे प्रयास विफल रहे। 

 

खशोगी की बॉडी कहां गई? इसका ठीक-ठीक जवाब किसी के पास नहीं है। हां कुछ थ्योरी हैं, साल 2019 में अलजजीरा ने खशोगी मर्डर पर एक इन्वेर्टिगेटिव डाक्यूमेंट्री रिलीज़ की। जिसमें इस्तांबुल के सऊदी दूतावास में मौजूद एक अवन (चूल्हा भट्टी) के बारे में बताया गया है। दिलचस्प बात ये कि ये अवन हाल ही में बना था और शायद इसे खास खशोगी के बॉडी के टुकड़ों को डिस्पोज़ करने के लिए ही बनाया गया था। डाक्यूमेंट्री में अवन बनाने वाला बताता है कि अवन को गहरा बनाया गया था और यह हजार डिग्री सेल्सियस टेम्प्रेचर तक सहन कर सकता था। डॉक्यूमेंट्री में दावा किया गया है कि खशोगी की बॉडी को जलाने में कुल तीन दिनों का समय लगा और यह पूरा उपक्रम टुकड़ों में अंजाम दिया गया। बाकायदा बॉडी जलाने के बाद उसी जगह पर बड़ी मात्रा में मीट पकाया गया ताकि कोई सबूत बाकी न रहे।
 
सबूत न होने की स्थिति में यह कहानी भी बस अंदाजा भर है। सस्पेंस अभी भी कायम है। इसी के साथ एक और सवाल था जो खशोगी की मौत के कई समय बाद तक कायम रहा? खशोगी की हत्या किसने करवाई थी- दुनिया कहती है MBS ने। इसका सबूत क्या है? यहां से इस कहानी में एंट्री होती है अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी की, जिनके हाथ एक ऐसा मेसेज लगा, जिसने सारे राज से पर्दा गिरा दिया। 

रिकॉर्डिंग ने खोल दी पोल

 

खशोगी के साथ हुआ क्या था। इस असलियत का शायद कभी पता ही नहीं चलता, अगर तुर्की के पास कॉन्सुलेट की रिकॉर्डिंग न होती। रिकॉर्डिंग में काटने की आवाजें आ रही थी। टाइमकोड से तुर्की अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि खशोगी को ड्रग दिया गया था। दूतावास में पहुंचने के अठारह मिनट बाद। इसके छह मिनट बाद आरी की आवाज सुनी गई थी। रिकॉर्डिंग पक्का प्रूफ था। लिहाजा कुछ हफ़्तों की आनाकानी के बाद सऊदी अरब ने माना कि खशोगी मारा गया था। उन्होंने दावा किया कि यह एक रॉग ऑपरेशन था यानी कुछ बेकाबू अति उत्साहित लोगों ने यह काम किया था और सरकार का इसमें कोई दखल नहीं था।
 
असली कहानी क्या थी? यह CIA की जांच में बाहर आया। CIA की डायरेक्टर जीना हैस्पेल ने को खशोगी के आखिरी पलों की रिकॉर्डिंग सुनाई गई। CIA की जांच में कई बातें सामने आई। मसलन क्राउन प्रिंस ने हत्या से पहले और बाद अपने मीडिया सलाहकार सऊद अल-कहतानी को कम से कम ग्यारह मैसेज भेजे थे। CIA को MBS और उनके एक सहायक के बीच एक फोन कॉल का भी सबूत मिला। यह बातचीत घटना से एक साल पहले हुई थी। जिसमें MBS खशोगी को जबरदस्ती सऊदी अरब वापस लाने की बात कह रहे थे। कॉल में एक जगह वह कहते हैं, 'अगर वह न माने तो ब्रिंग हिम विद अ बुलेट।'
 
यह कॉल सितंबर 2017 में की गई थी। खशोगी के भागने के कुछ महीनों बाद। CIA ने पाया कि खशोगी के हत्यारे, MBS के अंदरूनी सर्कल के मेंबर थे। तुर्की राष्ट्रपति के सलाहकार यासिन अकताय के अनुसार 'MBS से पूछे बिना वे टॉयलेट भी नहीं जा सकते थे।' CIA के विश्लेषण से ये निष्कर्ष निकला कि खशोगी की हत्या की योजना लम्बे वक्त से बन रही थी और MBS का इसमें बड़ा रोल था। हालांकि, अमेरिकी सरकार ने आधिकारिक रूप से कभी इसे स्वीकार नहीं किया। न ही सऊदी अरब के खिलाफ कोई एक्शन लिया गया। कार्रवाई के नाम पर सऊदी सरकार ने 11 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए और 5 को फांसी की सजा सुना दी। 

 

हालांकि, चंद दिनों बाद ही अचानक खशोगी का बेटा, सलाह खशोगी सामने आया और उसने आरोपियों को माफ़ कर दिया। सऊदी क़ानून के तहत परिवार वाले चाहें तो माफी दे सकते हैं। लिहाजा इस केस में फांसी रोक दी गई। रिपोर्टस के अनुसार, कुछ समय बाद सलाह और उनके परिवार को MBS की तरफ से 4 मिलियन डॉलर दे दिए गए।

खशोगी और उनकी मंगेतर का क्या?

 

खशोगी की मंगेतर आज भी न्याय की अपील कर रही हैं। खशोगी की बॉडी आज तक नहीं ढूंढी जा सकी है। खशोगी की कहानी के बारे में और डिटेल में जानना चाहते हैं तो द डिसिडेंट नाम की एक डाक्यूमेंट्री है, देख सकते हैं।