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युद्ध में हाथियों का इस्तेमाल फायदेमंद या अपना नुकसान, इतिहास से समझिए

पुराने युद्धों में हाथी का इस्तेमाल जब से शुरू हुआ उसके बाद यह कई युद्धों में जीत का कारण बना। बाद के समय में कई बार ऐसे मौके भी आए जब युद्ध में हाथियों ने नतीजे पलट दिए।

elephants in war

युद्ध में हाथियों की अहमियत, Photo Credit: Khabargaon

इस्लामिक परंपरा में एक घटना का जिक्र आता है। करीब-करीब 570 ईस्वी की बात है। यमन में एक ईसाई राजा हुआ करता था- अब्रहा। जिसने एक गिरजाघर बनवाया- 'अल-क़लीस' नाम का। कहते हैं अब्रहा चाहता था कि लोग काबा कि बजाय उसके गिरिजाघर में जाएं, इसलिए उसने काबा पर हमला करने की योजना बनाई। एक बड़ी फौज- जिसकी अगुवाई कर रहा था एक हाथी - जिसका नाम था -महमूद। आगे कहानी कहती है कि अब्रहा की फौज मक्का के पास पहुंची, तब एक अजीब घटना घटी। महमूद नाम का हाथी अचानक रुक गया। उसने काबा की तरफ बढ़ने से मना कर दिया और अपने आगे के पैर मोड़कर वहीं बैठ गया। आगे कुरआन में जिक्र आता है कि जब यह घटना घट रही थी, तभी अबाबील नाम के छोटे-छोटे पक्षियों का एक झुंड आया और उसने अब्रहा की फौज पर छोटे-छोटे कंकड़ों से हमला कर दिया। अब्रहा की फौज भाग गई और इस तरह काबा बच गया। इस घटना को एक विशेष नाम से जाना जाता है- ‘अम अल-फिल’। यानी - The Year of the Elephant, यानी हाथी का साल। यह घटना इसलिए ख़ास मायने रखती है क्योंकि इसके चंद वक्त बाद ही पैगम्बर मुहम्मद पैदा हुए।
 
इस्लामिक रिवायत में इस वाकये के धार्मिक महत्व होने के अलावा हमें एक बात और पता चलती है। वह क्या? प्राचीन काल में युद्ध में हाथियों का महत्व। माइटी रोमन एम्पायर को घुटनों पर ले आना वाले हैनिबल का इटली अभियान हो या सिकन्दर और पोरस के बीच लड़ी गई, Hydaspes की लड़ाई, हजारों सालों तक युद्धों में हाथियों ने अहम भूमिका निभाई। दिलचस्प बात ये कि चाहे वह यूरोप हो या मिडिल ईस्ट- जंग में हाथियों के इस्तेमाल का आइडिया भारत से निकलकर इन जगहों तक पंहुचा।


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ब्यास नदी के किनारे खड़ी सिकंदर की फौज, वहीं से वापस लौट गई- इसका एक बड़ा कारण था फौज नंद साम्राज्य के तीन हजार हाथियों का सामना नहीं करना चाहती थी। बाबर हिंदुस्तान में मुग़ल सल्तनत की नींव रख पाया- जब उसने सिकंदर शाह लोधी के एक हजार हाथियों को हराने के लिए तुलुगमा रणनीति का सहारा लिया। भारतीय जंगी इतिहास में ऐसे अनेक ब्यौरे आपको मिलेंगे, जिसमें हाथियों का रोल रहा लेकिन बड़ा सवाल यह कि हाथियों का युद्ध में इस्तेमाल होता कैसे था?

 

भारत में जंगी हाथी आते कहां से थे? उन्हें ट्रेन कैसे किया जाता था? जंग के शोर में महावत हाथी को कंट्रोल कैसे करता था? हाथियों का भारतीय इतिहास में क्या रोल था? कहानी जानेंगे आज के एपिसोड में। 


218 ईसा पूर्व की बात है। उत्तरी अफ्रीका में भूमध्य सागर के तट पर स्थित एक शहर हुआ करता था। कार्थेज - कार्थेज का एक जनरल था हैनिबल- इतिहास के सबसे महान सैन्य रणनीतिकारों में से एक। जिसने रोमन साम्राज्य के खिलाफ लगभग एक असंभव अभियान को संभव कर दिखाया था। कार्थेज और रोम के बीच 300 किलोमीटर लम्बी एक पर्वत शृंखला थी। रोमन मानते थे कि कोई इसे पार करने की हिम्मत नहीं करेगा लेकिन हैनिबल ने 15,000 की फौज के साथ यह यात्रा पूरी की। 8000 फ़ीट की ऊंचाई, वह भी नवम्बर-दिसंबर के महीने में। इस अभियान में हैनिबल के साथ 37 हाथी भी थे। जिनमें सबसे खास था ‘सूरस’। सूरस वह इकलौता हाथी था, जो हन्नीबल के इटली अभियान के दौरान जिन्दा बचा। 

जब हन्नीबल की एक आंख इंफेक्शन में चली गई। वह सूरस पर सवार हुआ। इसी हाथी पर बैठकर 16 साल तक हन्नीबल युद्ध लड़ता रहा और रोमन सेना को झुकने पर मजबूर कर दिया। रोमन इतिहासकार केटो ने सूरस को "युद्ध हाथियों में सबसे वीर" की उपाधि दी। 

 


दिलचस्प बात यह कि सूरस असल में एक एशियाई हाथी था। संभवतः एक भारतीय हाथी क्योंकि सिकंदर के अभियान के बाद मध्य पूर्व और यूरोप की ज्यादातर भारतीय हाथी इस्तेमाल किए जाते थे।

युद्ध में हाथियों का इस्तेमाल शुरू कैसे हुआ?

 

भारत में हाथियों के इस्तेमाल की परम्परा काफी पुरानी है। सिंधु घाटी सभ्यता की सील्स में आपको हाथी मिलेंगे। ऋग्वेद में हाथी का जिक्र है। जिसमें हाथी को "मृग हस्तिन्" कहा गया है - यानी ऐसा जानवर जिसके पास "हाथ" (सूंड) है। वैदिक काल में हालांकि हाथियों से ज्यादा घोड़ों का इस्तेमाल होता था क्योंकि घोड़े रथ में जोते जा सकते थे। हाथियों का इस्तेमाल लेटर वैदिक पीरियड में शुरू हुआ।

 

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महाभारत में एक कथा आती है। सम्राट भगदत्त के पास एक शक्तिशाली हाथी था- सुप्रतीक। कुरुक्षेत्र के युद्ध में भगदत्त इसी हाथी पर सवार होकर लड़ते हैं। जब अर्जुन भगदत्त से भिड़ते हैं तो सुप्रतीक हाथी अपनी सूंड से अर्जुन को पकड़ लेता है। तब कृष्ण अपने चक्र से सुप्रतीक की सूंड काटने के लिए आगे बढ़ते हैं लेकिन अर्जुन उन्हें रोक देता है, यह कहते हुए कि वे एक निर्दोष जानवर की मौत नहीं चाहते।
 
यहां से आगे हम मगध साम्राज्य के समय, यानी 5th सेंचुरी BC में आएं तो हाथियों का महत्व बढ़ता गया। संभवतः इसलिए कि सभ्यता अब गंगा के मैदानों तक फ़ैल गई थी। यहां जंगल थे। जहां से हाथियों की आमद होती थी।
 
अर्थशास्त्र में कौटिल्य एक जगह लिखते हैं 
"राजाओं की विजय हाथियों पर निर्भर करती है।" 
यानी मौर्य काल तक हाथी राजकीय शक्ति के प्रतीक बन चुके थे। लेकिन ये विशालकाय जानवर आए कहां से?
कौटिल्य ने अपनी किताब अर्थशास्त्र में हाथियों के लिए आठ मुख्य इलाकों का जिक्र किया है:
कलिंग (आज का ओडिशा)
अंग (बिहार का कुछ हिस्सा)
प्राच्य (पूर्वी भारत)
चेदि
करूष
दशार्ण
अपरांत (पश्चिमी भारत)
सौराष्ट्र और पंचनद (पंजाब)

कौटिल्य के अनुसार इनमें से सबसे अच्छे हाथी कलिंग (ओडिशा) और अंग (बिहार) के जंगलों से आते थे। कौटिल्य के मुताबिक, पंजाब और सौराष्ट्र के हाथी सबसे कमजोर माने जाते थे। यही वजह थी कि मगध जैसे पूर्वी राज्य हाथियों के मामले में सबसे आगे थे और शायद इसीलिए ज्यादा ताकतवर भी! एक मजेदार बात ये है कि पुराने भारत में राजाओं का फर्ज था कि वे हाथियों के जंगलों की रक्षा करें। रामायण में एक किस्सा है जहां राम भरत से पूछते हैं, 'तुम हाथियों के जंगलों की रक्षा तो कर रहे हो ना?' इससे पता चलता है कि हाथियों के जंगल राज्य की संपत्ति माने जाते थे।

हाथियों को ट्रेन कैसे किया जाता था?

 

किस्सा है कि एक बार चंद्रगुप्त मौर्य ने जंगल में घूमते हुए देखा कि एक विशाल हाथी अपने बच्चे के साथ पानी पी रहा है। चंद्रगुप्त ने अपनी तलवार निकाली और बच्चे पर हमला करने का नाटक किया। मां हाथी गुस्से से चिंघाड़ी और चंद्रगुप्त की ओर दौड़ी। चंद्रगुप्त ने अपनी चतुराई से हाथी को एक पहले से तैयार पिंजरे की ओर भगाया और उसे कैद कर लिया। यह किस्सा बढ़ा-चढ़ा लग सकता है, पर हाथियों को पकड़ना सच में बहुत मुश्किल और खतरनाक काम था। प्राचीन भारत में हाथी पकड़ने के लिए 'खेड़ा' नाम का एक तरीका इस्तेमाल होता था।

 

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ग्रीक इतिहासकार मेगस्थनीज, जो चन्द्रगुप्त के दरबार में कई दिनों तक रहा था, उसने इस तरीके का वर्णन किया है।
 
बड़े खुले मैदान में एक मजबूत बाड़ा बनाया जाता था, जिसमें एक दरवाजा होता था। इस बाड़े में कुछ पालतू मादा हाथियों को रखते थे। जंगली नर हाथी इन मादाओं के चक्कर में बाड़े में घुस जाते थे। जैसे ही वे अंदर आते, दरवाजा बंद कर देते थे। फिर शुरू होता था उन्हें सिखाने का लंबा और मुश्किल दौर। हाथियों की ट्रेनिंग और देखभाल का जिम्मा संभालने वाले को हस्त्यध्यक्ष कहते थे। मौर्य राज में यह एक बड़ा पद था, जिसकी तुलना सेनापति से की जा सकती है। हाथियों को ट्रेन करना आसान काम नहीं था। पकड़े गए हाथियों को पहले भूखा रखते थे ताकि वे कमजोर हो जाएं और सुनने लगें। फिर शुरू होता था ट्रेनिंग का लंबा सिलसिला जो 10 से 15 साल तक चल सकता था! इस दौरान हाथियों को न सिर्फ हुक्म मानना, बल्कि लड़ाई के भयानक शोर और नजारों की आदत डालना भी सिखाया जाता था।

 

मेगस्थनीज के अनुसार, एक ट्रेंड वॉर एलिफेंट को बहुत सी चीजें सिखानी होती थीं। मसलन, दुश्मन के सिपाहियों को सूंड से उठाकर फेंकना, पैरों से कुचलना, दांतों से भालना, महावत के हुक्म पर दुश्मन के सिपाहियों पर हमला करना और लड़ाई के शोर में भी शांत रहना। मौर्य सम्राट बिंदुसार के पास एक नीलकमल नाम का हाथी हुआ करता था, जिसका महावत था पुष्यगुप्त। एक बार तक्षशिला में बगावत हुई। बिंदुसार ने अपने बेटे अशोक को वहां भेजा। अशोक नीलकमल हाथी पर चढ़कर बागियों का सामना करने गया। जब बागी अशोक को घेरने लगे, तो नीलकमल ने अपनी सूंड से कई बागियों को उठाकर फेंक दिया और कुछ को अपने पैरों तले कुचल दिया। बागियों के मन में इतना डर बैठ गया कि उन्होंने बिना लड़े ही हार मान ली। मौर्य काल में हाथियों के महत्त्व की ऐसी कई कहानियां हैं। 

 

क्या थी हाथियों की भूमिका?

 

हाथियों को कंट्रोल करने के लिए "अंकुश" नाम का एक औजार होता था। जिसमें दो नुकीले सिरे होते थे। इसे हाथी के संवेदनशील हिस्सों पर दबाकर उसे काबू में किया जाता था। हालांकि, अंकुश का इस्तेमाल सिर्फ जरूरत पड़ने पर ही किया जाता था क्योंकि हाथी अपने महावत से गहरा रिश्ता बना लेते थे। एक अच्छा महावत अपने हाथी से इतना जुड़ जाता था कि वे दोनों एक-दूसरे के मन की बात समझ जाते थे। महावत अपने पैरों से हाथी के कानों को दबाकर उसे इशारा करता था - दाएं मुड़ने के लिए दायां कान, बाएं मुड़ने के लिए बायां कान, और रुकने के लिए दोनों कान। ये तरीके जरूरी थे क्योंकि लड़ाई के मैदान में शोर इतना होता था कि आवाज से हुक्म देना नामुमकिन होता था।

 

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अब अगला सवाल। युद्ध के मैदान पर हाथियों का रोल क्या होता था? प्राचीन काल में सेना के चार हिस्से होते थे। इन्हें चतुरंग बल कहा जाता था- पैदल सेना, घुड़सवार, रथ और हाथी। हाथी मॉडर्न टैंक्स की तरह इस्तेमाल किए जाते थे। रास्ता खोलने के लिए। यूनानी इतिहासकार डायोडोरस ने पोरस और सिकंदर के बीच हुई झेलम की लड़ाई का जिक्र करते हुए लिखा है, 'हाथी अपने बड़े शरीर और ताकत का इस्तेमाल करके, कभी अपनी सूंड से दुश्मन के सिपाहियों को उठाकर फेंकते, कभी अपने दांतों से छेदते और कभी अपने बड़े पैरों से कुचल देते। दुश्मन की फौज में भगदड़ मच जाती और सिपाही इधर-उधर भागने लगते। ये बड़े-बड़े जानवर, लोहे के कवच पहने, पीठ पर हौदे और तीरंदाज लिए, एक जिंदा किले की तरह लगते थे।'

 

लड़ाई के मैदान में हाथी कई तरह से काम आते थे:

दुश्मन की फौज को तोड़ना: हाथी अपने बड़े साइज से दुश्मन की फौज की लाइनों को तोड़ सकते थे। महाभारत में बताया गया है कि कैसे भीम के बेटे घटोत्कच ने अपने हाथियों की मदद से कौरव फौज की लाइनें तोड़ दी थीं।

 

दिमागी असर: हाथियों की दहाड़ और बड़ा आकार दुश्मनों में डर पैदा करता था। खासकर, हाथियों को देखकर घोड़े भाग जाते थे, जिससे दुश्मन की घुड़सवार फौज बेकार हो जाती थी। सिकंदर की मौत के बाद उसके दो सेनापतियों में अधिकार को लेकर एक लड़ाई हुई- इसे इप्सस की लड़ाई कहा जाता है। इस जंग में हाथियों ने ऐसे ही निर्णायक भूमिका निभाई थी।

हौदे से हमला: हाथियों की पीठ पर हौदे रखे जाते थे जिनमें 3-4 तीरंदाज या भालाधारी सिपाही बैठते थे। ये सिपाही ऊंचाई का फायदा उठाकर दुश्मन पर तीर और भाले बरसाते थे। कौटिल्य के बाद भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण विद्वान माने जाने वाले कामंदक की किताब नीतिसार में बताया गया है कि एक अच्छे हौदे में चार सिपाही बैठते थे - एक आगे, एक पीछे और दो बगल में।

किलों पर हमला: हाथी दरवाजों और दीवारों को तोड़ सकते थे। कौटिल्य लिखते हैं कि हाथियों का इस्तेमाल "किला तोड़ने" के लिए किया जाता था। सिकंदर के साथी ऐरियन ने लिखा है कि भारतीय हाथी अपने सिर से धक्का देकर मजबूत दरवाजों को तोड़ सकते थे।

कमांड पोस्ट: राजा और सेनापति अक्सर हाथी पर बैठकर लड़ाई देखते थे, जिससे उन्हें ऊपर से सब दिखता था। हम्पी में मिले एक शिलालेख में जिक्र है कि विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेव राय अपने मशहूर हाथी "रामभद्र" पर बैठकर लड़ाई चलाते थे।


हाथी युद्ध में क्या महत्व रखते थे? यह जानने के लिए एक और लड़ाई के बारे में बताते हैं। 

 

सिकंदर की मौत के बाद, उसके जनरल सेल्यूकस ने भारत पर हमला किया। चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को बुरी तरह हराया। समझौते में सेल्यूकस को न सिर्फ अपने चार इलाके - हेरात, काबुल, कंधार और बलूचिस्तान - चंद्रगुप्त को देने पड़े, बल्कि अपनी बेटी की शादी भी चंद्रगुप्त से करानी पड़ी। बदले में, चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 युद्ध हाथी गिफ्ट किए!ये हाथी सेल्यूकस के लिए वरदान साबित हुए। 301 ईसा पूर्व में इप्सस की लड़ाई में, सेल्यूकस ने इन हाथियों का इस्तेमाल अपने दुश्मन एंटिगोनस के खिलाफ किया। सेल्यूकस के इन हाथियों ने एंटिगोनस की घुड़सवार सेना को भगा दिया और लड़ाई का रुख बदल दिया!

 

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अपग्रेड किए गए थे हाथी

 

ऐसे तमाम उदाहरण हाथियों की इम्पोर्टेंस बताते हैं। शुरुआत में हाथी युद्ध में अपनी ताकत के लिए इस्तेमाल किए जाते रहे लेकिन वक्त के साथ इनका रोल बदला भी। मसलन समय के साथ हाथी अपग्रेड भी किए गए।
 
सूंड़ में तलवार: कई पुराने चित्रों और बयानों में हाथियों की सूंड़ में तलवार या दांतों पर तेज ब्लेड जुड़े हुए दिखाए गए हैं। इससे हाथी के हमले का दायरा बढ़ जाता था।

जहरीली तलवारें: दुश्मनों का मनोबल तोड़ने के लिए कभी-कभी हाथियों के दांतों पर लगी तलवारों को जहर में डुबोया जाता था।

जंजीर: मुगल जमाने के चित्रों में हाथियों को सूंड़ में भारी जंजीरें पकड़े हुए दिखाया गया है, जिन्हें वे दुश्मन सिपाहियों पर बरसाते थे।

 

नशीले पदार्थ और शराब: लड़ाई से पहले हाथियों को अक्सर शराब और खास दवाएं पिलाई जाती थीं ताकि उनमें जोश आए और वे लड़ाई के दौरान दर्द महसूस न करें। चालुक्य राजा इसमें माहिर थे। हाथियों को शराब पिलाना हालांकि हमेशा अच्छा नहीं होता था। कई बार नशे में धुत हाथी अपनी ही फौज पर हमला कर देते थे।

 

हाथियों का इस्तेमाल केवल युद्ध ही नहीं, राजनीतिक ताकत और शान दिखाने के लिए भी किया जाता था। किसी साम्राज्य की ताकत का अंदाजा उसके पास मौजूद हाथियों की संख्या से लगाया जाता था। विजयनगर साम्राज्य के पुर्तगाली मेहमान डोमिंगो पाइस ने लिखा, 'राजा कृष्णदेव राय के पास 900 हाथी हैं और हर रोज 100 हाथी महल के सामने खड़े रहते हैं।'

 

'सफेद हाथी' का खास महत्व हुआ करता था। सफेद हाथी असल में पूरी तरह सफेद नहीं होते, बल्कि हल्के रंग के होते हैं। इन्हें बहुत शुभ माना जाता था। मुगल बादशाह अकबर के पास भी हवाई नाम का एक सफेद हाथी हुआ करता था। कुछ राजा तो अपने हाथियों के लिए मंदिर तक बनवाते थे! यूनानी इतिहासकार स्ट्रैबो लिखते हैं कि तक्षशिला के पास एक मंदिर था जहां राजा पोरस के मशहूर हाथी 'अजैक्स' की पूजा की जाती थी, जिसने सिकंदर के खिलाफ लड़ाई में बहादुरी दिखाई थी। चालुक्य राजवंश में प्रथा मिलती है। कई छोटे राजाओं और जागीरदारों को अपने मालिक को हाथी देने पड़ते थे। वे अपने हर जागीरदार से सैकड़ों हाथी मांगते थे। इससे न सिर्फ राजा को हाथी मिलते थे, बल्कि जागीरदार के पास बगावत के लिए हाथी भी नहीं बचते थे!

 

क्यों कम हो गया हाथियों का चलन?

 

आन, बान, शान का प्रतीक, युद्ध में चलता फिरता जिंदा टैंक - प्राचीन भारत में हाथी इतने खास थे तो फिर इनका चलन कम क्यों हो गया? 1500 ईस्वी से पहले, यानी बाबर के आगमन से पहले आप देखेंगे कि तमाम लड़ाइयों में हाथियों का महत्व काफी ज्यादा था लेकिन लेटर मेडिवल पीरियड हाथियों की इम्पोर्टेंस कम होती गई। हाथी भले ही ताकतवर थे लेकिन हर बार नहीं जीतते थे। एक दिलचस्प कहानी है राजा खारवेल की। खारवेल कलिंग के राजा थे। अशोक के कलिंग हमले का बदला लेने के लिए खारवेल ने कलिंग पर हमला किया था। चूंकि कलिंग की सेना अपने हाथियों के लिए जानी जाती थी। इसलिए खारवेल ने उनसे निपटने के लिए एक खास तरीका निकाला था। उन्होंने अपने सिपाहियों को छोटे-छोटे ग्रुप में बांट दिया, जो हाथियों के पैरों के बीच से निकलकर उनके पेट पर हमला करते थे। इस ट्रिक से कई मौर्य हाथी मारे गए और खारवेल को युद्ध में जीत हासिल हुई। बाद के समय में दुश्मनों ने हाथियों से निपटने के तरीके ईजाद कर लिए।

 

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पायनालिका (तेल के गोले): ये तेल से भरे मिट्टी के गोले थे जिन्हें जलाकर हाथियों पर फेंका जाता था। हाथी आग से बहुत डरते हैं, और ऐसे गोलों से अक्सर भागने लगते थे।
जलते हुए सूअर: ये अजीब लगता है, लेकिन इतिहास बताता है कि सूअरों को जलाया जाता था और हाथियों की तरफ भगाया जाता था। सूअरों की चीख और जलती आग हाथियों को भगा देती थी।
कंटक (कील): ये लोहे के तेज कांटे थे जिन्हें जमीन पर बिछाया जाता था। जब हाथी इन पर चलते थे, तो उनके नरम पैर घायल हो जाते थे।
खाइयां: हाथी कूद नहीं सकते, इसलिए अक्सर उनके रास्ते में गहरी खाइयां खोदी जाती थीं।

 

इन तरीकों के चलते हाथियों की फौज के बावजूद कई बड़ी लड़ाइयां हारी गई। 1299 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी और गुजरात के राजा करण वाघेला के बीच लड़ाई हुई । गुजरात के पास 3,000 लड़ाकू हाथी थे। अलाउद्दीन ने एक चाल चली - उन्होंने अपने सिपाहियों को हुक्म दिया कि वे मुख्य हाथी 'नीलगज' की तरफ 'नफ्त' या जलते तीर चलाएं। जब 'नीलगज' घायल होकर भागने लगा, तो बाकी हाथी भी उसके पीछे भागने लगे। इस भगदड़ में गुजरात की फौज हार गई। समय के साथ टेक्नोलॉजी में और इजाफा हुआ। बंदूकें और तोपें आईं, और हाथियों की अहमियत कम होने लगी। सबसे बड़ी मिसाल है 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई।

 

इब्राहिम लोदी के पास एक बड़ी फौज थी जिसमें हजारों हाथी शामिल थे लेकिन बाबर ने अपनी छोटी फौज के साथ एक नया दांव चला - उसने तोपों का इस्तेमाल किया! इतिहासकार बदायूनी के मुताबिक, "बाबर की तोपों से निकले गोलों ने हाथियों में भगदड़ मचा दी और वे अपनी ही फौज को कुचलते हुए भागने लगे।" एक और किस्सा है 1565 में हुई तालीकोटा की लड़ाई का। विजयनगर साम्राज्य के राजा रामराय के पास 2,000 लड़ाकू हाथी थे लेकिन दक्कन के सुल्तानों ने अपनी तोपों से हाथियों पर गोले बरसाए। पहले ही हमले में सैकड़ों हाथी मारे गए या भाग गए। इस लड़ाई में विजयनगर की हार के साथ ही दक्षिण भारत में हाथियों के युग का अंत हो गया।

 

हाथी लेकर भी हार गए युद्ध

 

पानीपत का दूसरा युद्ध भी हाथियों की हार का एक उदहारण है। हेम चंद्र विक्रमदित्य के पास 500 हाथी थे। खुद हेमू भी हाथी पर बैठे थे लेकिन जैसे ही एक तीर उनकी आंख से लगा, हेमू हाथी से उतर गए। हौदा खाली देख फौज घबरा गई और अकबर की जीत हो गई। कुछ ऐसा ही वाकया पानीपत की तीसरी जंग में भी हुआ। पेशवा के पुत्र विश्वास राव को युद्ध में गोली लगी। यह देख मराठा कमांडर सदाशिव राव हाथी से उतर कर घोड़े पर बैठ गए ताकि सेना की कमान संभाल सकें। इस चक्कर में हौदा खाली हुआ और मराठा फौज में अफरा-तफरी मच गई। मराठाओं को इस युद्ध में हार का मुंह देखना पड़ा।
 
इस मामले में मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब का भी एक प्रंसंग है। उत्तराधिकार की लड़ाई के दौरान औरंग़ज़ेब की लड़ाई जब अपने भाई शाह शुजा से हुई। एक मौका ऐसा आया जब मदमस्त हाथी औरंगज़ेब की ओर दौड़ा। औरंगज़ेब जो खुद हाथी पर बैठे थे, अगर उनका हाथी मुड़ गया होता तो खेल वहीं ख़त्म हो सकता था लेकिन औरंगज़ेब ने अपने हाथी के पैर जंजीरों से बंधवा दिए, ताकि वह मुड़ न पाए। इस जंग में औरंगज़ेब को जीत मिली थी।
 
तो हम देखते हैं कि हाथी जंग में अक्सर दोधारी तलवार होते थे। हाथी जंग जिता भी सकते थे लेकिन खतरा भी था। इसी कारण भारत में जैसे-जैसे तोप बारूद का आगमन हुआ, हाथियों का इस्तेमाल कम होता गया। हालांकि लम्बे समय तक हाथी, शोहरत और ताकत का प्रतीक बने रहे। मुग़ल बादशाह अकबर के पास 5,000 से ज्यादा हाथी थे। उन्होंने एक नई तकनीक निकाली- हाथियों के हौदों पर छोटी तोपें रखना! इन 'गजनाल' से अकबर की फौज ने कई जीत हासिल कीं। शाहजहां के पास 913 हाथी थे, जिनमें से हर एक की कीमत एक लाख रुपये से ज्यादा थी। हाथियों की कीमत इतनी ज्यादा थी कि एक अच्छे युद्ध हाथी के लिए कई गांव दिए जा सकते थे!

 

मुग़लों के बाद अंग्रेज़ों का राज़ आया तो वॉर एलीफैंट्स का इस्तेमाल ख़त्म ही हो गया। ब्रिटिश फौज हाथियों का इस्तेमाल करती थी लेकिन लड़ाई के लिए नहीं, बल्कि तोपें और सामान ढोने के लिए। 1857 के विद्रोह में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के पास कुछ युद्ध हाथी थे, जिन्हें उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ इस्तेमाल किया लेकिन ये आखिरी युद्ध हाथी थे। भारत में हाथियों का युद्ध में इस्तेमाल रिकॉर्ड किया गया आखिरी उदाहरण 1859 में मिलता है, जब ग्वालियर के महाराजा जयाजीराव सिंधिया ने अपने हाथियों का इस्तेमाल किया था। 
इसी के साथ इस एपिसोड को यहीं समाप्त करते हैं। 

 

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