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सेहतमंद या मार्केटिंग स्ट्रेटजी? क्या है 'फुल मून घी' जिस पर छिड़ी बहस

'फुल मून घी' पर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। इसे बनाने वाली कंपनी इस घी को सेहतमंद बताती है जबकि कुछ लोगों ने इसे मार्केटिंग स्ट्रेटजी बताया है।

full moon ghee

प्रतीकात्मक तस्वीर। (Photo Credit: Two Brothers Organic Farms)

पुणे का एक स्टार्टअप 'फुल मून घी' बेच रहा है। 500 मिली लीटर के डिब्बे में बिकने वाले इस घी की कीमत 2,495 रुपये है। कंपनी का दावा है कि इस घी को पूर्णिमा की रात को ही तैयार किया जाता है। इस कंपनी में जेरोधा के फाउंडर नितिन कामथ ने भी पैसा लगाया है। इसे लेकर कंपनी चर्चा में आ गई है। कंपनी दावा करती है कि यह पूरी तरह से सेहतमंद है, जबकि सोशल मीडिया पर कुछ लोग इसे मार्केटिंग स्ट्रेटजी बता रहे हैं।


कंपनी दावा करती है कि इस फुल मून घी को साल में सिर्फ 12 बार बनाया जाता है। इस घी को पुणे का स्टार्टअप 'टू ब्रदर्स ऑर्गनिक फार्म' बनाती है। इस कंपनी को दो भाइयों- सत्यजीत हांगे और अजिंक्य हांगे ने 2018 में शुरू किया था। दावा है कि कंपनी सिर्फ ऑर्गनिक प्रोडक्ट ही बनाती है। घी के अलावा कंपनी और भी कई सारे प्रोडक्ट्स बेचती है।

 

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क्या है यह फुल मून घी?

इस घी को सिर्फ पूर्णिमा की रात को तैयार किया जाता है, क्योंकि उसी रात फुल मून होता है। दावा है कि पूर्णिमा की रात चांद की ऊर्जा और सकारात्मकता इस घी में समा जाती है।


कंपनी की वेबसाइट पर दावा किया गया है कि यह फुल मून घी दुर्लभ है और किसी चमत्कार से कम नहीं है। इसके को-फाउंडर सत्यजीत हांगे ने एक वीडियो में दावा किया है कि 'यह एक आयुर्वेदिक अमृत है, जिसे साल में सिर्फ 12 बार तैयार किया जाता है।'

 

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कैसे बनाया जाता है यह घी?

इस घी को गाय की एक खास नस्ल 'गिर' के दूध से बनाया जाता है। इस घी को तैयार करने की प्रक्रिया के बारे में सत्यजीत हांगे बताते हैं कि सुबह 4 से 6 बजे के बीच इस दूध में घी डाला जाता है और फिर मक्खन बनाया जाता है। इस मक्खन से घी बनता है। यह सब कुछ फुल मून यानी पूर्णिमा के दिन होता है।


दावा है कि यह घी 'कल्चर्ड' होता है यानी इसे दही से बनाया जाता है। आम घी को क्रीम या मलाई से तैयार किया जाता है। दावा है कि इस घी को आयुर्वेदिक परंपराओं से बनाया जाता है।

 


घी के फायदों को लेकर कंपनी का दावा है कि हर दिन एक चम्मच घी खाने से सुखद अनुभव होता है और पूर्णिमा की रात को तैयार होने से इसकी शक्ति भी बढ़ जाती है। घी बनने के बाद इसे रिसाइकल होने वाले कांच के जार में पैक किया जाता है। घी में कोई मिलावट नहीं है। 


कंपनी का दावा है कि इस घी को बनाने के लिए गाय से दूध हाथ से निकाला जाता है। दूध निकालने से पहले गाय को भी दूध पिलाया जाता है। 

 

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सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस

इस घी को लेकर सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई है। कुछ लोग इसकी तारीफ कर रहे हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जो इस पर सवाल उठाते हैं। डॉ. नंदिता अय्यर ने X पर पोस्ट करते हुए इसे 'मार्केटिंग स्ट्रेटजी' बताया है। उनका कहना है कि यह घी को महंगा बनाने का तरीका है।

 


एक यूजर को जवाब देते हुए नंदित अय्यर ने लिखा, 'मुझे लगता था कि यह बाकी ब्रांड्स से बेहतर है।' आनंद शंकर नाम के एक यूजर ने लिखा, 'उन्होंने कई अच्छे काम किए हैं लेकिन दुर्भाग्य से यह शर्मनाक है।' इस पर जवाब देते हुए डॉ. अय्यर ने कहा यह ग्राहकों को मूर्ख बनाने जैसा है।

 

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नितिन कामथ ने भी की है फंडिंग

टू ब्रदर्स ऑर्गनिक फार्म को जेरोधा के फाउंडर नितिन कामथ ने भी फंडिंग की है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, नितिन कामथ के रेनमैटर फाउंडेशन ने इस स्टार्टअप को 58.2 करोड़ रुपये का फंड दिया है।

 


कंपनी की वेबसाइट पर नितिन कामथ का एक नोट भी है। नितिन कामथ लिखते हैं, 'हम अक्सर इस तरह के सवाल पूछते हैं कि क्या हम जो आटा खाते हैं, वह सुरक्षित है? या क्या दूध में हानिकारक एंटीबायोटिक्स हैं? इन सवालों ने हमें भारतीयों को स्वस्थ बनाने की कोशिश कर रहे भारतीय स्टार्टअप को खोजने और उनका समर्थन करने के लिए प्रेरित किया है।'


कामथ आगे लिखते हैं, 'टू ब्रदर्स ऑर्गनिक फार्म्स एक ऐसा ही स्टार्टअप है। इसमें हमने न केवल निवेश किया है, बल्कि हम इनके ग्राहक भी हैं। टू ब्रदर्स की टीम छोटे किसानों के साथ काम करती है और उनकी आजीविका में सुधार लाती है।'

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