logo

ट्रेंडिंग:

Kissing के इतिहास और विज्ञान का कामसूत्र से क्या कनेक्शन है?

किस यानी चुंबन आम जनजीवन का हिस्सा है। आमतौर पर प्रेम दर्शाने के लिए इसका इस्तेमाल सदियों से होता आया है। आइए इसके अलग-अलग पहलुओं को जानें।

story of kiss

किस की कहानी, Photo Credit: Khabargaon

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

'Any man who can drive safely while kissing a pretty girl is simply not giving the kiss the attention it deserves'

ऐसा कहना था महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंसटीन का। यानी अगर कोई व्यक्ति किसी सुंदर लड़की को किस करते हुए ठीक से गाड़ी भी चला ले रहा है तो इसका एक ही मतलब है। चुंबन पर उसका ध्यान उतना नहीं है, जितना होना चाहिए। किसिंग में इंसान की पांचों इंद्रियों का अटेंशन चाहिए होता है। दो इंसान एक-दूसरे को छूने से पहले। एक-दूसरे को देखते हैं, सुनते हैं, एक-दूसरे के पास आते हैं और फिर जादू होता है- एक इंसान का दूसरे इंसान के शरीर को छूने का।
 
शायर जुरअत क़लंदर बख़्श ने इसको ऐसे लिखा- 
मिल गए थे एक बार उस के जो मेरे लब से लब
'उम्र भर होंटों पे अपने मैं ज़बाँ फेरा किया

ऐसे ही शायर मुनव्वर राना लिखते हैं-
मोहब्बत एक पाकीज़ा अमल है इसलिए शायद
सिमटकर शर्म सारी एक बोसे में चली आई

लेकिन यह मामला कवि की कल्पनाओं तक ही सीमित नहीं है। मसलन कि किसिंग का एक अलहदा साइंस भी है और हिस्ट्री भी। जब मानव शरीर के सेंसेटिव अंगों पर किस किया जाता है तो इसमें साइंस के एंगल तलाशे जाते हैं। मसलन कि होंठ, जीभ या मुंह पर की गई किस- डोपामीन, ऑक्सीटोसिन और सेरोटोनीन जैसे हैप्पीनेस हॉर्मोन्स को रिलीज करती है। जिससे इंसान को खुशी की अनुभूति होती है। अनुभूति ऐसी कि इंसानों ने पूरी मजबूती के साथ दावा कर दिया कि हमने ही खोजा है यह तरीका।

 

यह भी पढ़ें- धुरंधर में अक्षय खन्ना की खूब तारीफ हुई, अब रहमान डकैत का सच जान लीजिए


पर टैबू ऐसा कि कोई पुख्ता शोध या खोज नहीं हुई। कुछ रिसर्चर्स ने दावा किया कि हमारे भारत में ही जन्म हुआ- लिप टू लिप किसिंग का। अब एक नई रिसर्च हुई है- जिसने सारे पुराने शोधपत्रों को सवालों में ला दिया। फिर सवाल ये नहीं उठते कि किसिंग शुरू कैसे और कहां हुई बल्कि सवाल यह हो जाता है कि इसकी शुरुआत इंसानों ने की भी या नहीं। या हमने यह तरीका किसी जानवर से सीखा या किसी सूक्ष्मजीव से और फिर सामने आते हैं कुछ जोखिम। Kissing से जुड़े एक वायरस का नाम आता है, जिससे दुनिया की लगभग 67 प्रतिशत आबादी ग्रसित है लेकिन क्या डोपामीन के उछाल के लिए हम यह रिस्क ले सकते हैं?

 

अलिफ लैला की इस किस्त में आज हम चुंबन के इतिहास और जोखिम के साथ, इसके पूरे साइंस की बात करेंगे। इंसानों के पास इस बात का स्पष्ट जवाब नहीं है कि सबसे पहले किस प्रजाति ने किस किया? क्यों किया और कहां किया लेकिन कुछ कड़ियां हैं जिनको जोड़कर हम एक सारांश तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। कई लोकप्रिय थ्योरीज में से एक है- रंगों की थ्योरी।


लाल रंग का जादू!

 

यह बात है तब की, जब इंसान जंगल में रहा करते थे। फल और मांस खाते थे। जब उन्होंने हरे रंग के फलों को चखा, उसका स्वाद अच्छा नहीं लगा क्योंकि वह पके नहीं थे और जब उन्होंने लालिमा वाले फलों को चखा तो उनको वह स्वाद भा गया क्योंकि वे पके हुए थे। यहां से लाल रंग इंसानों के लिए खास बन गया। एक इनाम की तरह। तब रंगों के कोई नाम नहीं थे।

 


 
1969 में एंथ्रोपोलॉजिस्ट रेंट बर्लिन और लिंगुइस्ट पॉल के ने अपनी किताब 'Basic Color Terms' में लिखा कि इंसानों ने काले और सफेद रंग के बाद लाल रंग को एक नाम दिया। कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट वि. एस. रामचंद्रन का कहना है कि लाल रंग को भोजन से जोड़ने के बाद हमारे पूर्वजों ने इसे अन्य आकर्षण से भी जोड़ा। किसी इंसान के लिए एक मानव शरीर से ज्यादा आकर्षक और क्या ही हो सकता है! लाल रंग पके फल के अलावा, ब्लशिंग (शरमाना) या ऑक्सीजन से भरपूर रक्त प्रवाह के कारण होंठों की लालिमा से भी जुड़ा। चेहरे का उभरा हुआ हिस्सा, जिसकी ऊपरी त्वचा पतली होती है और इसी कारण से इसकी बनावट ज्यादा डिटेलिंग के साथ नजर आती है। इसलिए इंसानों के भीतर स्वभाविक रूप से होंठों को छूने की इच्छा जगी। कई लोकप्रिय थ्योरीज में से यह एक है। इसी तरह की एक थ्योरी कहती है कि बच्चा जब अपनी मां के पेट में होता है तभी से अपना अंगूठा चूसने लगता है। यानी पैदा होने से पहले ही उसको ह्यूमन स्कीन का टच और टेस्ट पता होता है। इसी तरह कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि किसिंग की शुरुआत होंठ या गाल से नहीं बल्कि नाक या सूंघने से हुई।

 

यह भी पढ़ें- कोलकाता में हुई एक किडनैपिंग का 9/11 से क्या कनेक्शन है?

 

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक हालिया रिसर्च से यह सवाल उठा है कि किसिंग का इंसानों के रोमांस से कुछ लेना-देना है भी या नहीं? या यह सिर्फ बीमारी फैलाने के जोखिमों से भरा है और इसकी स्टडी के लिए जानवरों से जुड़े डेटा को आधार बनाया गया है तो जानवरों पर किए गए शोध की बात कर लेते हैं।

बंदका, लोज्जा और कोको की कहानी

 

सेंट्रल अफ़्रीकी देश कांगो के एक चिड़ियाघर में रहता था- बंदका नाम का एक मेल बोनोबो। यह गोरिल्ला जैसी दिखने वाली एक एंडेंजर्ड प्रजाति है। खास बात यह है कि इंसान और बोनोबो का DNA लगभग 98.7 प्रतिशत तक एक जैसा होता है। बंदका का मिजाज शैतान किस्म का था। चिड़ियाघर में वह लोज्जा नाम की एक फीमेल बोनोबो को अक्सर परेशान करता था। उसके बाल नोचता और उसके खिलौने छीन लेता। बोनोबो से जू वाले भी परेशान थे। 2006 की बात है। सबक सिखाने के लिए बोनोबो को जू में ही एक अलग जगह, एक अलग झुंड के साथ शिफ्ट कर दिया गया। उसके नए झुंड के नेता ने उसके साथ सख्ती दिखाई। उसको सजा दी। फिर वह रोता हुआ वहां से भाग निकला लेकिन तब तक उसके पुराने झुंड के साथियों ने भी उसे भाव देना बंद कर दिया था। वह अकेला रहता था और रोता था। फिर एक दिन अचानक सब बदल गया। लोज्जा उसके पास आई और उसने बोनोबो को अपनी बांहों में भर लिया और प्यार से उसे किस किया। फिर उसे दुलार से सजाने-संवारने लगी। यह देखकर सब दंग रह गए लेकिन यहां से ये समझ आया कि बोनोबो प्रजाति में किसिंग एक प्रक्रिया है जिसके जरिए वे एक-दूसरे को सांत्वाना देते हैं और दुलारते हैं लेकिन उनकी किसिंग में जीभ का इस्तेमाल नहीं होता।
 
इसी तरह एक गोरिल्ले की कहानी सामने आती है। इंसानों के अलावा यह एक ऐसी प्रजाति है जिस पर हमने भाषा से जुड़े सबसे ज्यादा एक्सपेरिमेंट्स किए हैं और इस मामले में भी एक फीमेल गोरिल्ला खास है। सबसे ज्यादा एक्सपेरिमेंट्स हुए हैं- 1971 में पैदा हुई कोको नाम की एक फीमेल गोरिल्ला पर। वह एक हजार से ज्यादा इंसानी संकेत (Sign) और लगभग दो हजार अंग्रेजी शब्द समझती है और उसी ने किसिंग को लेकर हो रही रिसर्च में एक नया क्लू दिया। एक एक्सपेरिमेंट के जरिए कोको के लिए एक उपयुक्त मेल गोरिल्ला खोजा जाना था। उसके सामने एक स्क्रीन लगाई गई और अलग-अलग मेल गोरिल्ला के वीडियो दिखाए गए। हर वीडियो के बाद कोको अंगूठा उठा कर पसंद, नापसंद या ठीक-ठाक का संकेत दे रही थी। तभी स्क्रीन पर एनडुमे नाम के गोरिल्ले की वीडियो आई। कोको उठी और वह सीधे स्क्रीन के पास गई और एनडुमे को चूम लिया। इससे पता चला कि गोरिल्ला ने अपनी पसंद के स्पष्ट संकेत देने के लिए अंगूठे का इस्तेमाल नहीं किया, जो आम था। उसने किसिंग को चुना ताकि वह इंटेसिटी दिख सके लेकिन इस किस में भी जीभ का इस्तेमाल नहीं था। हम बार-बार जीभ के इस्तेमाल का जिक्र इसलिए कर रहे हैं क्योंकि किस से बrमारी फैलने वाली थ्योरी में इस बात का सबसे ज्यादा रोल है और यहीं पर एक सिरा जुड़ता है- भारत से। किसिंग पर हो रहे रिसर्च भले ही अभी के जमाने में हो रहे हों लेकिन इसका इतिहास काफ़ी पुराना है। भारत में किसिंग का संदर्भ आता है- महर्षि वात्स्यायन की लिखी संस्कृत ग्रंथ- कामसूत्र में।

किसिंग का इंडियन एंगल और कामसूत्र

 

मानव समाज में लगभग 1500 ईसा पूर्व तक किसिंग को लेकर कोई पुख्ता दस्तावेज नहीं मिलता। इसके सबसे शुरुआती प्रमाण भारत के वैदिक संस्कृत ग्रंथों में मिलते हैं। जिनका संकलन लगभग 3500 साल पुराना है। द साइंस ऑफ किसिंग नाम की किताब में अमेरिकी लेखिका शेरिल किर्शेनबाम (Sheril Kirshenbaum) बताती हैं कि शुरुआती वैदिक ग्रंथों में किसिंग के लिए कोई शब्द मौजूद नहीं है लेकिन यह भाव किसी न किसी रूप में मौजूद है। सूंघने, गंध लेने और छूने को इसी अर्थ में लिखा गया है। वह लिखती हैं कि ऋग्वेद का एक अंश 'दुनिया की नाभि को छूने' का वर्णन करने के लिए 'सूंघना या गंध' शब्द का उपयोग करता है। जो संभवतः एक प्राचीन चुंबन का संदर्भ हो सकता है। एक और दिलचस्प पंक्ति है। जिसका अनुवाद है कि एक 'घर का युवा स्वामी बार-बार युवती को चाटता है।' यहां, 'चाटना' (lick) एक प्रकार के चुंबन का संदर्भ हो सकता है। 

 

वैदिक काल के अंत तक, हमें शुरुआती भारतीय चुंबन के बारे में और भी अधिक आकर्षक सुराग मिलता है। इसमें महाभारत का भी जिक्र आता है लेकिन यह सब और अधिक स्पष्ट होता है- कामसूत्र में। सारे टैबूज को तोड़ते हुए, इस किताब में चुंबन को लेकर एक पूरा चैप्टर है। इसमें 26 प्रकार के चुंबन का वर्णन मिला है। इनमें से 3 प्रकार के चुंबन, वात्स्यायन उन लड़कियों के लिए बताते हैं, जिनकी शादी नहीं हुई। ये हैं- निमितक (Nimitaka), स्फुरितक (Sphuritaka) और घट्तिटक (Ghattitaka)। कामसूत्र के मुताबिक, अधिक उत्तेजना जगाने के लिए किसिंग के तीन अलग-अलग तरीके हैं। 2 विलास यानी आनंद के लिए, सम्मान जताने के लिए और 1 सामान्य भाव के लिए। इसके अलावा 9 अन्य तरह की चुंबन का भी जिक्र है। यानी दुनियाभर में जितनी तरह का भी चुंबन लोकप्रिय है, उनमें से अधिकतर का जिक्र कामसूत्र में मिलता है। 

 

यह भी पढ़ें- क्या सोचकर बनाया गया था सुपर कमांडो ध्रुव? पढ़िए पूरी कहानी

 

दिलचस्प बात यह है कि किसिंग के जिन जोखिमों को लेकर अभी की रिसर्च के जरिए सावधान किया जा रहा है, वात्स्यायन ने उनमें से कुछ का जिक्र पहले ही कर दिया है। जैसे कि वह चेतावनी देने के लहजे में लिखते हैं कि पहली मुलाकात में चुंबन, नखच्छेद्य (Nakhachchhedya), और दंतच्छेद्य (Dantachchhedya) में बिल्कुल भी लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिए। अब यह किसिंग के शुरुआती कॉन्सेप्ट को और ब्रॉड करता है। नखच्छेद्य का मतलब है नाखून के निशान और दंतच्छेद्य का अर्थ है दांत के निशान। ये दोनों किसिंग या इसके तुरंत बाद की प्रक्रियाओं में बहुत पहले से शामिल हैं। वात्स्यायन लिखते हैं कि इस प्रक्रिया में धैर्य दिखाना चाहिए क्योंकि यह कई जोखिमों से भरा है। लापरवाही बरतने पर इसके बड़े नुकसान हो सकते हैं। कामसूत्र में यह भी स्पष्ट लिखा गया है कि किन अंगों पर किस करना चाहिए।

 

संस्कृत महाकवि जयदेव भी मानव अंगों की एक लिस्ट पेश करते हैं, जहां किस किया जा सकता है। इसमें आंखें (Netra), कंठ (Kantha), कपोल (Kapola), हृदय (Hrid), नाभि (Nabhi), मुख (Mukha), आदि शामिल हैं। ऐसे ही कल्याणामल्ला (Kalyanamalla) और प्रौढ़ादेवराय (Praudhadevaraya) जैसे रचनाकर भी इस बारे में लिखते हैं। ये सब बहुत पहले लिखी जा चुकी हैं लेकिन सवाल यह कि क्या उस वक्त में सिर्फ भारतीय ही ऐसा क र रहे थे?


सामाजिक हैसियत का प्रतीक बना चुंबन

 

अब आप मेसोपोटामिया के एक प्रसिद्ध महाकाव्य एनुमा एलिश के बारे में जानिए। जिसमें बेबीलोनियन सभ्यता की कहानी दर्ज है। इसके चैप्टर्स पत्थर पर तराशे हुए मिले थे। इसको लेकर कई किंवदंतियां हैं लेकिन इसमें भी कई तरह की चुंबन का वर्णन है। मसलन कि अभिवादन का चुंबन और दमन में जमीन या पैरों पर चुंबन। 

 

यूनानी कवि होमर ने लगभग तीन हजार साल पहले प्राचीन महाकाव्य ओडिसी (Odyssey) लिखी, जिस पर हॉलीवुड डायरेक्टर क्रिस्टफर नोलन इन दिनों फ़िल्म बना रहे हैं। इसमें, नायक ओडीसियस का वर्णन किया गया है कि घर लौटने पर उसके गुलामों ने सम्मान में उसे चूमा लेकिन उसके होंठों पर नहीं क्योंकि वे उसके अधीनस्थ थे। एक और उदाहरण यूनानी महाकाव्य इलियड (Iliad) में मिलता है। अकिलीज़ द्वारा हेक्टर को मारने के बाद, राजा प्रियम अपने मृतक बेटे के शरीर को वापस पाने की विनती करते हैं और इसके लिए वे अपने दुश्मन के हाथों को चूमते हैं।

 

यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस ने पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में The Histories of Herodotus नाम की किताब लिखी। इसमें उन्होंने बताया कि उस वक्त कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कहां चूमता था, इससे उसकी सामाजिक हैसियत का पता चलता था। बराबर के लोग अभिवादन के लिए होंठों पर चुंबन करते थे। अगर दोनों की हैसियत में थोड़ा अंतर हुआ, तो वे गाल पर किस करते थे। अगर बहुत ज्यादा अंतर हुआ तो कम हैसियत वाला व्यक्ति दण्डवत होता था। ऐसा ही एक किस्सा इथियोपियाई राजाओं के बारे में भी है। लोग उनके पैरों को चूमते थे जबकि न्यूमिडियन राजाओं को इतना सर्वोच्च माना जाता था कि उन्हें बिल्कुल भी चूमा नहीं जा सकता था।

 

यह भी पढ़ें- आत्मा का वजन तौला गया तो क्या पता चला? चौंका देगी रिसर्च


 
चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में हमें फ्लाईंग किस के संकेत मिलते हैं। सिकंदर ने प्रोस्कुनिस (proskunêsis) नाम के एक प्रतीकात्मक चुंबन की शुरुआत की थी। जिसमें एक श्रेष्ठ व्यक्ति या सम्राट को जमीन पर झुककर सम्मान दिया जाता था और हवा में एक किस उड़ाया जाता था। हालांकि, कई यूनानियों ने इस प्रथा को घृणा की दृष्टि से देखा। इसे पूर्वी तानाशाही पतन के प्रतीक से जोड़ा गया। अब यहां दो बातें ऐसी हैं, जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। पहली यह कि भारत के बाहर की अधिकतर रचनाओं में रोमांटिक किस का विवरण नहीं मिलता है या उतना तो बिल्कुल ही नहीं मिलता, जितना कामसूत्र में है। दूसरी बात यह कि बहुत पहले से इंसान एक-दूसरे को किस करते रहे हैं। वैसे ही बहुत पहले से इसे नापंसद करने वाले या इससे असहज होने वाले लोग भी मौजूद रहे हैं।

किसिंग पर पाबंदी!

 

पहली शताब्दी ईस्वी में रोमन कवि मार्शल ने अपने प्रसिद्ध एपिग्राम्स में किसिंग का घृणित वर्णन किया। उन्होंने अलग पेशे के लोगों के बारे में लिखा कि वे गंदी चीजों को अपने मुंह से छूते हैं और फिर उसी मुंह से किस करते हैं। रोमन सम्राट टाइबेरियस ने भी चुंबन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। उनका कहना था कि इससे बीमारी फैलती है। इसी समय में एक रोमन राजनेता काटो ने उपहास में कहा कि घर लौटने पर पतियों को अपनी पत्नियों को चूमना चाहिए। प्यार से नहीं, बल्कि यह देखने के लिए कि क्या उन्होंने शराब पी है। आलोचनाओं और उपहास के बावजूद, रोमन सभ्यता में तीन तरह का चुंबन शामिल हुआ। 
ऑस्कुलम (OSCULUM): सामाजिक या दोस्ती का चुंबन। 
बेसियम (BASIUM): परिवार के सदस्यों के लिए प्रेम भरा चुंबन। 
सेवियम (SAVIUM): यौन या कामुक चुंबन।

 

रोम में इसको लेकर कई कानून भी थे। मसलन कि ऑस्कुलम इंटरवेनिएन्स (osculum interveniens)। इसके अनुसार, अगर दो लोगों की शादी तय हो गई और मंगेतर जोड़े का एक सदस्य शादी से पहले मर जाता है तो उपहारों का बंटवारा कैसे होगा। यह तय होता था इस बात से कि उन दोनों ने सार्वजनिक रूप से किस किया था या नहीं? अगर किया था तो उपहारों का आधा हिस्सा मृतक के वारिस को मिलता था।


Old Testament में भी किसिंग का जिक्र मिलता है। हालांकि, ईसाई धर्म के उदय के साथ, किसिंग के लिए बड़ी समस्याएं उत्पन्न हुईं। एक डर फैला कि चुंबन शरीर में ऐसी गतिविधियों को जन्म देगा, जिसे पाप जैसा माना जाता था। 1665 में लंदन में प्लेग फैला। इसमें लाखों लोग मारे गए। इस समय किसिंग को लेकर लोग ज्यादा सावधान हो गए। इसकी लोकप्रियता लगभग खत्म हो गई। लोग किस करने की बजाय, अभिवादन के लिए एक-दूसरे को देखकर हाथ हिलाने लगे, झुकने लगे या अपनी टोपी झुकने लगे ताकि बीमारी ना फैले।

 

इसी बीच जर्मनी में मार्टिन वॉन केम्पे नाम के एक लेखक ने किसिंग पर एक ग्रंथ रच दिया। उन्होंने ओपस पॉलीहिस्टोरिकम, डी ऑस्कुलिस (Opus Polyhistoricum… de Osculis) नाम की एक किताब लिखी। जिसमें एक हजार से ज्यादा पन्ने थे और इन सबमें चुंबन का ही वर्णन था। 

 

यह भी पढ़ें- राज्यपाल का इस्तीफा, नेताओं में खौफ, क्या है टी एन शेषन की कहानी?

 

उसी समय जर्मनी में किस को वैध और गैरकानूनी कैटगेरी में बांटा गया। कानून बनाए गए। महिलाएं उन पुरुषों पर मुकदमा कर सकती थीं जिन्होंने उन्हें धोखे से, वासना से, या दुर्भावना से किस किया हो या किस करके उनको परेशान किया हो। औद्योगिक क्रांति तक, इंग्लैंड में हाथ पर किस करने का चलन लोकप्रिय हो गया और यही प्रथा फिर हैंडशेक में बदल गई और फिर दुनियाभर में जैसे-जैसे व्यापार फैला, लोगों ने नई सभ्यताओं को अपनाना शुरू किया। इन्हीं में से एक थी- किसिंग। यूरोप की कई संस्कृतियों में लंबे समय तक माउथ-टू-माउथ किस गायब रहा। यूरोपीय शैली में माउथ-टू-माउथ किस का कॉन्सेप्ट साहित्य और फिल्मों से आया। यह कल्चर उनसे पहले कुछ अफ्रीकी जनजातियों में देखा गया। जो एक-दूसरे को काटते थे, चाटते थे या चेहरा रगड़ते थे लेकिन यह भी अभिवादन के लिए ही था। रोमांटिक किस का कॉन्सेप्ट यहां भी नहीं था।
 
अंग्रेजी उपन्यासकार रीड (Reade) ने एक अफ्रीकी राजा की सुंदर बेटी के प्यार में पड़ने का वर्णन किया है। उन्होंने लिखा कि रीड ने महीनों तक राजा की बेटी का दिल जीतने की कोशिश की। अंत में, एक शाम, हिम्मत करके उसे चूम लिया। उस लड़की ने ऐसा पहले कभी ना देखा था और ना ही महसूस किया था। वह डर गई और जोर से चिल्लाने लगी। फिर रोते हुए वहां से भाग गई। उसे लगा रीड उसे खाने वाले हैं। बाद में रीड को पता चला लड़की की जीवनशैली में चुंबन का प्रचलन बिल्कुल भी नहीं था।

 

अब इतनी सारी बातों के बाद एक अहम सवाल उठता है कि जब इंडियन लिटरेचर में प्राचीन समय से किसिंग का जिक्र है तो फिर लोग इसको लेकर आज भी असहज क्यों हैं? जैसे इस खबर की हेडिंग देखकर भी कुछ लोग असहज हुए होंगे! इसके कई जवाब हो सकते हैं। इन्हीं में से एक जवाब यह है कि भारतीय समाज में अभिवादन के लिए और दुलार-प्यार के लिए एडल्ट्स के बीच किसिंग का कल्चर नहीं है या बहुत कम है क्योंकि किसिंग को सीधे जोड़ा जाता है- सेक्स से और सेक्स आज भी हमारे समाज में अधिकतर लोगों के लिए टैबू बना हुआ है।


किस के रिस्क!

 

इस पूरी कहानी का सिरा अब तक कहां पहुंचा? हमने दुनियाभर के प्राचीन लिटरेचर पर ध्यान दिया। इससे एक बात समझ आई- यह हो सकता है कि किसिंग का प्रचलन भारत के अलावे दुनिया के किसी और हिस्से में भी रहा हो लेकिन रोमांटिक किसिंग का जिक्र सबसे पहले भारतीय लिटरेचर में ही मिलता है और पूरे विस्तार से मिलता है। अब तक तो सिरा यहीं पहुंचा है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक हालिया रिसर्च में इस बात पर सवाल उठाया गया है कि किसिंग की शुरुआत इंसानों ने की बल्कि इसमें यह संभावना जताई गई है कि चुंबन की शुरुआत संभवतः लगभग 1.6 से 2.1 करोड़ साल पहले हुई होगी। यानी कि मॉडर्न ह्यूमन्स के अस्तित्व में आने से भी पहले से। इसी रिसर्च में ये भी कहा गया है कि किसिंग का व्यवहार निएंडरथल्स में भी मौजूद था। जो प्राचीन मानवों की एक विलुप्त प्रजाति थी और लगभग 40,000 साल पहले यूरोप और एशिया के कुछ हिस्सों में रहती थी। इसके अलावा, एक दिलचस्प बात यह भी बताई गई है कि निएंडरथल्स और मॉडर्न ह्यूमन्स दोनों में, अपने एवॉल्युशन में एक-दूसरे से अलग होने के बहुत बाद तक, एक ही तरह के ओरल माइक्रोब्स पाए जाते थे। जो ह संकेत देता है कि ये दोनों प्रजातियां एक-दूसरे को चूमती थीं। यह संभावना भर है।
 
दिलचस्प बात यह है कि इस शोध में किसिंग की शुरुआती परिभाषा को रोमांस से अलग रखा गया है। इसको ओरल टू ओरल कॉन्टैक्ट बताया गया है। जो संभवत: भोजन के आदान प्रदान पर आधारित है। इसी रिसर्च में यह भी कहा गया है कि सामान्य और सेक्सुअल किसिंग, दोनों से ही रोगाणुओं (microbes) का ट्रांसमिशन होता है। हालांकि, रिसर्चर्स ने यह भी डिस्क्लेमर दिया है कि सीमित आंकड़ों के कारण, उनके निष्कर्ष अपरिपक्व हो सकते हैं लेकिन इस शोध से कम से कम इतना तो वह चाहते ही हैं कि किसिंग की हिस्ट्री और साइंस पर जोरशोर से बातचीत शुरू हो। 

 

यह भी पढ़ें- इतिहास का वह खौफनाक युद्ध जिसमें 95 पर्सेंट मर्द खत्म हो गए

 

यहां WHO का भी एक आंकड़ा प्रासंगिक हो जाता है। दुनिया की लगभग 67 प्रतिशत आबादी HSV-1 वायरस से ग्रस्त है। ये वायरस ओरल हर्पीज़ का मुख्य कारण हैं, जिसके लक्षण मुंह के अंदर और आसपास छाले या छाले जैसे होते हैं। इसके फैलने का मुख्य कारण किसिंग को बताया जाता है। हालांकि, अब तक ऐसा कुछ सामने नहीं आया है कि इसको बहुत बड़ा खतरा मान लिया जाए लेकिन सावधानी बरतने में क्या ही नुकसान है।
 
लेकिन क्या हमको इस सवाल का जवाब मिल पाया है कि सबसे पहला किस किसने, कब और कहां किया? अगर इंसानों ने किया तो क्यों किया? जवाब है कि हम अब भी इसका जवाब खोज रहे हैं। हालिया शोधों ने इस ओर ध्यान आर्कर्षित जरूर किया है लेकिन अब भी हमारे पास कुछ पुख्ता नहीं है। हालांकि, रोमांटिक, लिप-टू-लिप किसिंग का सबसे विस्तृत और शुरुआती विवरण भारतीय ग्रंथों में (खासकर कामसूत्र) में मिलता है, जो इस बात की ओर इशारा करता है कि प्रेम-आधारित चुंबन को एक कला और विज्ञान के रूप में विकसित करने में भारत की एक अग्रणी भूमिका हो सकती है।

Related Topic:#Alif Laila

और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap