पटना बिहार की राजधानी है। यहां से सूबे की सियासत तय होती है। 14 विधानसभा, 2 लोकसभा सीटें वाले इस जिले में बीजेपी का प्रभुत्व रहा है। पाटलिपुत्र, कुसुमपुर, पुष्पपुरी, अजीमाबाद या पाटलिग्राम जैसै कई नाम इस शहर से जुड़े हैं। सिर्फ जुड़े नहीं, हर दौर में जो भी सत्ता पर काबिज हुआ, शहर का नाम बदला। 490 ईसा पूर्व मगध के राजा अजातुशत्रु ने इस शहर की स्थापना की थी। मगध की राजधानी तब राजगृह हुआ करती थी, उन्होंने इसे गंगा नदी के किनारे बसे विस्तृत भू-भाग पर बसा दिया। यहां गौतम बुद्ध आए, महावीर आए। 

यह शहर मौर्य, शुंग, गुप्त, नंद जैसे साम्राज्यों की राजधानी रही है। यहां कला, राजनीति, विज्ञान और संस्कृति खूब पली बढ़ी। आजादी में भी पटना का अहम योगदान रहा, मौजूदा सियासत में भी। बिहार की विधानसभा भी यहीं है। यहां 14 विधानसभा सीटें हैं, ज्यादातर पर भारतीय जनता पार्टी काबिज है।

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राजनीतिक समीकरण 

चुनावी नजरिए से यह जिला कांटे की टक्कर वाला जिला है। साल 2020 के चुनाव के बाद यहां महागठबंधन मजबूत हुआ है लेकिन दबदबा एनडीए का रहा है। लोकसभा में एनडीए और महागठबंधन दोनों बराबर और विधानसभा में महागठबंधन, एनडीए पर भारी रहा है। अगर मोकामा विधानसभा की ही बात करें तो यहां से लगातार अनंत सिंह का परिवार जीतता आ रहा है।

 

शुरुआत में यह सीट कांग्रेस का गढ़ रही लेकिन 1990 से यही यह सीट जनता दल और जेडीयू के खेमे में रही। पटना साहिब पर बीजेपी 2010 से ही काबिज है, कुम्हरार बांकीपुर, दीघा, बाढ़, जैसी सीटों पर बीजेपी कायम है। बख्तियारपुर, फतुहा, मनेर और मसौढ़ी पर आरजेडी का दबदबा कई चुनावों से बरकरार है। पालीगंज और फुलवारी में CPI (ML) की पैठ है। 

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विधानसभा सीटें:-

  • मोकामा: नीलम देवी विधायक हैं। वह आरजेडी से थीं लेकिन अब उनके पति अनंत सिंह चुनावी मैदान में उतरे हैं। जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। यह विधानसभा साल 1952 में अस्तित्व में आई थी, उसके पाद 1990 से ही यह सीट जनता दल और जेडीयू के पास है। अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह 1990 में विधायक बने थे तब से लेकर अब तक यह सीट अनंत सिंह के परिवार में ही है। एक बार 2000 में सूरजभान सिंह यहां से चुनाव जीते थे। अब खुद अनंत सिंह चुनावी मैदान में हैं।

  • बाढ़: साल 1952 में यह विधानसभा अस्तित्व में आई थी। शुरुआत में कांग्रेस का दबदबा रहा लेकिन 1990 के बाद से कभी यहां से कांग्रेस नहीं जीती। यह जेडीयू और कांग्रेस के बीच घूमती रही है। 2005 से ही यहां के विधायक ज्ञानेंद्र कुमार हैं। अब  डॉ. सियाराम सिंह को बीजेपी ने उतारा है।

  • दीघा: यह विधानसभा साल 2008 में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी। यहां से संजीव चौरसिया 2015 से लगातार जीत रहे हैं। बीजेपी ने एक बार फिर उन्हें टिकट दिया है। 

  • बांकीपुर: नितिन नबीन यहां से विधायक हैं। साल 2008 में यह सीट अस्तित्व में आई थी। तब से लेकर अब तक नबीन कुमार ही जीतते रहे। 2010 में नितिन नबीन पहली बार जीते थे, तब से लेकर अब तक वही जीतते आ रहे हैं। यहां किसी का जलवा नहीं चलता। 

  • बख्तियारपुर: राष्ट्रीय जनता दल के अनिरुद्ध कुमार यहां से विधायक हैं। बख्तियारपुर में हर चुनाव में विधायक बदल जाते हैं। साल 1952 में यह सीट अस्तित्व में आई थी, कभी कांग्रेस का गढ़ रही यह विधानसभा, 1995 के बाद कभी बीजेपी, कभी आरजेडी के खाते में जाती रही।  

  • कुम्हरार: बीजेपी के अरुण कुमार सिन्हा यहां से विधायक हैं। अब संजय गुप्ता को टिकट मिला है। अरुण कुमार सिन्हा साल 2010 से ही वह यहां से विधायक हैं। इस बार उन्होंने चुनाव न लड़ने का एलान किया है।

  • पटना साहिब: साल 2008 में यह सीट अस्तित्व में आई थी। यहां से लगातार नंद किशोर यादव चुनाव जीत रहे थे। अब बीजेपी ने यहां से रत्नेश कुशवाहा को टिकट दिया है। 

  • फतुहा: फतुहा विधानसभा सीट साल 1957 में अस्तित्व में आई थी। यहां अब तक 18 चुनाव हो चुके हैं। आरजेडी ने 5 और जेडीयू ने 3 बार चुनाव में जीत हासिल की। यहां से रामानंद यादव साल 2010 से ही चुनाव जीतते आ रहे हैं।

  • दानापुर: साल 1957 में यह विधानसभा सीट अस्तित्व में आई थी। कांग्रेस और जनता दलों का दबदबा रहा। 2020 में रीत लाल राय चुनाव जीते। अब एक बार फिर उन्हें मौका मिला। बीजेपी ने इस बार रामकृपाल यादव को टिकट दिया है। 

  • मनेर: मनेर विधानसभा सीट साल 1952 में अस्तित्व में आई थी। शुरुआथ में कांग्रेस का दबदबा रहा लेकिन 2005 से ही यह सीट आरजेडी का गढ़ बनी है। 2010 से भाई वीरेंद्र यादव यहां से विधायक चुने जा रहे हैं।  

  • फुलवारी (एससी): फुलवारी आरक्षित सीट है। यहां से सीपीआई-एमएल के गोपाल रविदास विधायक हैं। 1977 में यह विधानसभा अस्तित्व में आई थी, शुरुआत के 4 चुनाव में कांग्रेस का दबदबा रहा, फिर जेडीयू, आरजेडी और लेफ्ट को जीत मिली। एनडीए में यह सीट जेडीयू के खाते में गई है। जेडीयू ने श्याम रजक को उतारा है, सीपीआई (एमएल) की ओर से गोपाल रविदास चुनावी मैदान में हैं। जन सुराज ने प्रोफेसर शशिकांत प्रसाद को उतारा है।

  • मसौढ़ी (एसटी): आरजेडी की रेखा देवी विधायक हैं। यह भी आरक्षित सीट है। 1957 में यह सीट अस्तित्व में आई थी। कांग्रेस, जनसंघ और वामपंथ की पार्टियों को जीत मिली। 2015 से ही लगातार आरजेडी की रेखा देवी यहां से जीत रहीं हैं। 

  • पालीगंज: यहां से संदीप सौरव सीपीआई-एमएल से विधायक हैं। साल 1952 में यह सीट अस्तित्व में आई थी। कभी लेफ्ट, कभी बीजेपी के खाते में यह सीट आई। 

  • बिक्रम: साल 1957 में यह सीट अस्तित्व में आई थी। शुरुआत में कांग्रेस का दबदबा रहा लेकिन 1980 से लेकर 1995 तक यह सीट वामपंथ का गढ़ बन गई थी। बीजेपी को भी 2 बार जीत मिली लेकिन अब यहां से कांग्रेस के सिद्धार्थ सौरव विधायक हैं। 


किसका दबदबा?
पटना में एनडीए और महागठबंधन, दोनों दलों में कांटे की टक्कर रहती है। 14 विधानसभाओं में सिर्फ 5 सीटें एनडीए खेमे में हैं।  6 सीटों पर आरजेडी, एक पर कांग्रेस और 2 सीटों पर वामदलों का दबदबा है।  

लोकसभा चुनावों के बाद क्या बदला?

पटना जिले में दो लोकसभाएं आती हैं। पहला पाटलिपुत्र और दूसरा पटना साहिब संसदीय क्षेत्र। पाटिलपुत्र। पटना साहिब से भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता रविशंकर प्रसाद सांसद हैं। दूसरे नंबर पर यहां कांग्रेस प्रत्याशी अंशुल अविजित रहे थे। जीत हार का अंतर 153846 है। पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र से मीशा भारती सांसद हैं। उन्होंने बीजेपी के दिग्गज नेता राम कृपाल यादव को हराया था। जीत हार का अंतर 85174 से ज्यादा था।

जिले का प्रोफाइल

  • पटना जिले 32020 किलोमीट स्क्वायर में फैला है। साल 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी करीब 5,838,465 है। शहरी इलाके में रहने वाली आबादी की संख्या 2,514,590  है। पाटलिपुत्र, पटना साहिब और मुंगेर लोकसभाएं इसके अंतर्गत आती हैं। 14 लोकसभा सीटें हैं। यहां 6 तहसील हैं। पटना साहिब, पटना सिटी, बाढ़, मसूढ़ी, दानापुर और पालीगंज। 23 ब्लॉक भी हैं। हिंदुओं की आबादी 91.74 फीसदी है, मुसलमान 7.54 प्रतिशत हैं। ज्यादातर आबादी भोजपुरी और मगही बोलती है। साक्षरता दर 70.68 फीसदी है। 

  •  कुल सीटें- 14
  • बीजेपी- 5
  • कांग्रेस- 1
  • आरजेडी- 6
  • CPI (ML)- 2