रोहतास बिहार के ऐतिहासिक जिलों में शुमार है। पौराणिक भारत से मुगलकालीन भारत तक के इतिहास को समेटे यह नगर, बिहार के 38 जिलों में से एक है। रोहतास पहले शाहाबाद जिले का हिस्सा था। साल 1972 में इसी जिले में दो जिले बनाए गए, एक भोजपुर और दूसरा रोहतास। जिला मुख्यालय सासाराम में है। इस जिले में 3 अनुमंडल हैं, सासाराम, डेहरी ऑन सोन और बिक्रमगंज। यह जिला, पटना प्रमंडल का हिस्सा है। धान, गेहूं, पत्थर और सीमेंट उद्योग के लिए यह जिला देश में मशहूर है।
रोहतास का सियासी समीकरण भी बेहद दिलचस्प है। यहां बीजेपी अपना पांव जमाने की कोशिश कर रही है, जेडीयू भी कमजोर है। एनडीए यहां अपनी खोई जमीन मजबूत करने की कवायद में है। रोहतास जिले के अंतर्गत 3 लोकसभाएं आती हैं। बक्सर, सासाराम और काराकाट। सासाराम, आरक्षित लोकसभा सीट है। बक्सर के सांसद सुधाकर सिंह हैं, वह आरजेडी से हैं। सासाराम के सांसद मनोज कुमार कांग्रेस से हैं, वहीं काराकाट के सांसद राजा राम सिंह हैं, वह सीपीआई (माले) से हैं। जिले में एक विधान परिषद क्षेत्र है, रोहतास-सह-कैमूर, जहां से संतोष कुमार सिंह विधान परिषद सदस्य हैं। वह बीजेपी से हैं।
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विधानसभा में भी एनडीए प्रदर्शन बुरा है। 7 विधानसभा सीटों वाले जिले में सिर्फ एक सीट चेनारी पर बीजेपी के मुरारी प्रसाद गौतम विधायक हैं। 7 विधानसभा सीटों में चेनारी, सासाराम, करगहर, दिनारा, नोखा, डेहरी और काराकाट विधानसभा आती है। सासाराम से राजेश कुमार गुप्ता विधायक हैं, वह आरजेडी से हैं। करगहर से कांग्रेस नेता संतोष कुमार मिश्रा विधायक हैं, दिनारा से आरजेडी के विजय कुमार मंडल, नोखा से आरजेडी की अनीता देवी, डेहरी से आरजेडी के फतेह बहादुर सिंह, काराट से CPI (माले) से अरुण सिंह विधायक हैं। एक सीट पर बीजेपी, 4 सीट पर आरजेडी, एक पर कांग्रेस और एक पर सीपीई (माले) का कब्जा है।
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रोहतास का इतिहास
रोहतास चेरो और उरांव आदिवासियों का गढ़ रहा है। पौराणिक मान्यताएं हैं शहर का नाम राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहतास के नाम पर पड़ा है। छठवीं शताब्दी ईसा पूर्व से 5वीं शताब्दी तक यह मगध साम्राज्य का हिस्सा था। अशोक के शिलालेख भी यहां हैं। शेर शाह सूरी ने सासाराम को अपनी जागीर बनाया। 1857 के विद्रोह में कुंवर सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की। 1972 में रोहतास अलग जिला बना। सासाराम मध्यपाषाण युग से विकसित संस्कृति का केंद्र रहा है।
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यहां की विधानसभा सीटों पर क्या समीकरण है, आइए जानते हैं-
- चेनारी: यह विधानसभा, अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित विधानसभा है। यहां से कांग्रेस पार्टी के मुरारी प्रसाद गौतम विधायक हैं। चेनारी विधानसभा सीट 1962 में अस्तित्व में आई थी। एक उपचुनाव समेत कुल 16 चुनाव यहां हो चुके हैं। कांग्रेस को सबसे अधिक छह बार जीत मिली। समाजवादी दलों को 10 बार जनता का समर्थन मिला, जिसमें जनता दल (2), जेडीयू (3), लोकदल, जनता पार्टी, हिंदुस्तानी शोषित दल, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और आरजेडी को एक-एक बार जीत मिली।
- सासाराम: राजेश कुमार गुप्ता यहां से विधायक हैं। वह आरजेडी के चर्चित नेता हैं। यह विधानसभा साल 1957 में अस्तित्व में आई थी। कांग्रेस ने 1962 और 1967 में जीत हासिल की। बीजेपी ने सबसे ज्यादा 5 बार जीत दर्ज की। आरजेडी को 2000, 2015 और 2020 में सफलता मिली। जनता दल 2 बार, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी 2 बार, किसान मजदूर प्रजा पार्टी और लोकदल 1-1 बार जीते। जेडीयू को अभी तक जीत नहीं मिली। जवाहर प्रसाद कुशवाहा पांच बार, बिपिन बिहारी सिन्हा तीन बार, अशोक कुमार कुशवाहा और राम सेवक सिंह दो-दो बार विधायक बने।
- करगहर: कांग्रेस के संतोष कुमार मिश्रा यहां से विधायक हैं। साल 2010 के चुनाव में जेडीयू के रामधनी सिंह ने लोक जनशक्ति पार्टी के शिवशंकर सिंह को हराकर पहली बार जीत हासिल की थी। साल 2015 में जेडीयू के बशिष्ठ सिंह ने RLSP के बीरेंद्र कुमार सिंह को मात दी और दूसरी बार विधायक बने। 2020 के चुनाव में जेडीयू को हार मिली। कांग्रेस के संतोष कुमार मिश्र चुनाव जीत गए।
- दिनारा: आरजेडी के विजय कुमार मंडल यहां से विधायक हैं। साल 1952 में पहली बार चुनाव हुए तो रामानंद उपाध्याय जीते। वह कांग्रेस से चुने गए। 1957 और 1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी जीती। दोनों बार राम आशीष सिंह चुने गए। 1969 में कांग्रेस फिर जीती। 16 चुनावों में कांग्रेस को 5, जेडीयू को 4, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और जनता दल को 2-2, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी, बीएसपी और आरजेडी को 1-1 बार जीत मिली। बीजेपी कभी नहीं जीती। रामधानी सिंह 4, राम आशीष सिंह 3, लक्ष्मण राय और जय कुमार सिंह 2-2 बार विधायक बने।
- नोखा: आरजेडी की अनीता देवी यहां से विधायक हैं। नोखा विधानसभा में 17 चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 6 बार जीत हासिल की। 2000 से 2010 तक बीजेपी ने लगातार 4 बार कब्जा जमाया। जनता पार्टी 3 बार, जनता दल और आरजेडी को 2-2 बार जीत मिली। जेडीयू को अभी तक जीत नहीं मिली। रामेश्वर चौरसिया 4 बार विधायक बने, जबकि गुथुली सिंह, जगदीश ओझा, जंगी सिंह चौधरी और अनीता देवी ने 2-2 बार चुनाव जीता।
- डेहरी: आरजेडी के फतेह बहादुर कुशवाहा यहां से विधायक हैं। साल 1952 और 1957 में दो बार सोशलिस्ट पार्टी बसावन सिंह चुनाव जीते। कांग्रेस को साल 1962 के चुनाव में पहली जीत मिली। 1985 के बाद कांग्रेस दोबारा नहीं जीती। सोशलिस्ट पार्टी को 2 बार जीत मिली, 5 बार कांग्रेस, जनता पार्टी और जनता दल ने दो-दो बार जीत हासिल की। RJD 4 बार जीती। 2019 के उपचुनाव में, आरजेडी विधायक मोहम्मद इलियास हुसैन के अयोग्य होने के बाद, बीजेपी ने पहली बार जीत दर्ज की। 2020 में यह सीट फिर फतेह बहादुर के पास चली गई।
- काराकाट: यह विधानसभा CPI (ML) का गढ़ बन गई है। यहां से अरुण सिंह विधायक हैं। साल 1967 में पहली बार इस विधानसभा सीट पर चुनाव हुए। 1967 और 1969 के विधानसभा चुनावों में दो बार लगातार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी को जीत मिली। अब तक 14 चुनाव हुए हैं। पहले दो चुनावों में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी जीती। 1972 में कांग्रेस की मनोरमा पांडे पहली बार विधायक बनीं। 1977 और 1980 में जनता पार्टी ने जीत हासिल की। सीपीआई (माले) ने सबसे ज्यादा चार बार जीत दर्ज की। 1990 और 1995 में जनता दल ने लगातार दो बार कामयाबी हासिल की। जेडीयू और आरजेडी को एक-एक बार जीत मिली।
जिले का प्रोफाइल
रोहतास 3881 वर्ग किलोमीटर में फैला इलाका है। यहां की जनसंख्या 29,59,918 है। इस जिले की साक्षरता दल 73.37 प्रतिशत है। जिले में 19 प्रंखंड, 229 पंचायत, 2101 गांव और 11 नगर निकाय हैं। कुल 42 थाने हैं।
- विधानसभा सीटें- 7
- BJP-1
- RJD-4
- कांग्रेस-1
- CPI(ML)- 1
