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तख्तापलट की साजिश और 27 साल की सजा, क्या है बोल्सोनारो की कहानी?

एक शख्स देश का राष्ट्रपति होता है और चुनाव हारने पर तख्तापलट को कोशिश करता है। समय का फेर देखिए कि वही शख्स सजा पाकर जेल में बंद हो गया है।

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जायर बोल्सोनारो, Photo Credit: Sora AI

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दिसंबर 2022, पूरी दुनिया की निगाहें कतर पर टिकी थीं। फुटबॉल का वर्ल्ड कप अपने शबाब पर था। मेस्सी और एम्बाप्पे का जादू फुटबॉल की दुनिया के सिर चढ़कर बोल रहा था। ठीक इसी समय, सात समंदर पार, एक और वर्ल्ड कप खेला जा रहा था- ब्राजील की राजधानी में। यह मैच किसी स्टेडियम में नहीं, बल्कि मोबाइल की स्क्रीन पर चल रहा था। एक ऐप है- Signal, जिसे दुनिया का सबसे सुरक्षित मैसेजिंग ऐप माना जाता है। वहां एक ग्रुप बना। नाम रखा गया- World Cup 2022, इस ग्रुप में मौजूद लोगों के नाम फ़ुटबाल खेल रही टीमों के नाम पर थे। किसी का नाम था जर्मनी, तो कोई था अर्जेंटीना। कोई जापान बना बैठा था तो कोई घाना।
 
ये लोग फुटबॉल की स्ट्रैटेजी डिस्कस नहीं कर रहे थे। ये पेनल्टी कॉर्नर की बात नहीं कर रहे थे। ये बात कर रहे थे-एक मर्डर की। एक हत्या की। लोकेशन सेट थी। स्नाइपर्स अपनी जगह पर थे। टारगेट था देश के सुप्रीम कोर्ट का सबसे ताकतवर जज। बस एक इशारा होना था। एक ग्रीन सिग्नल और ब्राज़ील का लोकतंत्र हमेशा के लिए बदल जाता लेकिन फिर एक मैसेज आया- 'Abort' यानी 'खेल रोक दो'।

 

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ट्रॉपिकल ट्रम्प कहे जाने वाले ब्राज़ील के पूर्व राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो ने कैसे अपनी कुर्सी बचाने के लिए साजिश की। ब्राज़ील के सुप्रीम कोर्ट के जज को मारने का प्लान कैसे रचा गया? ब्राज़ील में तख्तापलट का प्लान कैसे फेल हुआ और तख्तापलट के रोज़ ब्राज़ील का राष्ट्रपति फ्लोरिडा में एक MMA फाइटर के यहां चिकन फ्राई क्यों खा रहा था? अलिफ लैला की इस किस्त में आज कहानी ब्राज़ील में रची गई उस साजिश की, जिसके चलते पूर्व राष्ट्रपति को 27 साल जेल की क़ैद हुई है।  

सिग्नल पर खेला गया खूनी वर्ल्ड कप

 

तारीख-15 दिसंबर, 2022। जगह-ब्रासीलिया (Brasilia), ब्राज़ील की राजधानी। अक्टूबर में चुनाव हो चुके थे। मौजूदा राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो चुनाव हार चुके थे। वामपंथी नेता लूला डा सिल्वा (Lula da Silva) जीत चुके थे। कायदे से लोकतंत्र में हारने वाला नेता अपनी हार मानता है, हैंडशेक करता है और घर चला जाता है लेकिन बोल्सोनारो का गेम प्लान अलग था। वह हार मानने को तैयार नहीं थे और यहीं से एंट्री होती है एक ब्लैक ऑप्स यूनिट की।

 


 
पुलिस की इन्वेस्टिगेशन बताती है कि दिसंबर की शुरुआत में राजधानी के इलेक्ट्रॉनिक्स बाज़ार में कुछ लोग देखे गए। ये आम लोग नहीं थे। ये मिलिट्री ट्रेनिंग लिए हुए स्पेशल फोर्सेज के लोग थे। उन्होंने वहां से महंगे आईफोन नहीं खरीदे। उन्होंने खरीदे-बर्नर फोन्स यानी सस्ते फोन, जिन्हें अपराधी एक बार इस्तेमाल करके फेंक देते हैं। सिम कार्ड? वे भी फर्जी नामों पर। इन फोन्स पर Signal ऐप इंस्टॉल किया गया। एक ग्रुप बनाया गया जिसका नाम रखा गया-World Cup 2022 और मेंबर्स को कोडनेम्स दिए गए देशों के नाम पर। जर्मनी, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रिया, ब्राज़ील, जापान और घाना। 

 

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इतना तामझाम किसके लिए?

 

दरअसल, इस ग्रुप का टारगेट था-अलेक्जेंड्रे डी मोरेस (Alexandre de Moraes) का सफाया। मोरेस कोई आम जज नहीं हैं। वह ब्राज़ील के सुप्रीम कोर्ट के जज हैं और वहां के चुनाव आयोग के प्रमुख भी। बोल्सोनारो के समर्थकों की नज़र में मोरेस विलेन नंबर 1 थे। उन्हें लगता था कि मोरेस ने ही चुनाव में धांधली करवाकर उनके नेता को हराया है तो प्लान सिंपल था-15 दिसंबर को मोरेस को अगवा करना है या फिर जान से मार देना है और सिर्फ मोरेस ही नहीं। पुलिस को मिले दस्तावेज़ बताते हैं कि इस हिट-लिस्ट में और भी नाम थे। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति लूला और उनके उपराष्ट्रपति गेराल्डो ऑल्कमिन (Alckmin) भी निशाने पर थे।
 
खैर, वापस चलते हैं 15 दिसंबर की उस रात। घड़ी की सुइयां 8 बजकर 42 मिनट पर पहुंचीं। अंधेरा हो चुका था। सिग्नल ग्रुप पर एक मैसेज फ़्लैश हुआ। भेजने वाला था-कोडनेम घाना। मैसेज था: "I’m in position।" (मैं अपनी जगह पर हूँ)। घाना जज मोरेस के घर के ठीक बाहर, अंधेरे में छिपा हुआ था। वह इंतज़ार कर रहा था कि कब जज साहब की गाड़ी दिखे। ठीक उसी वक्त, शहर के दूसरे हिस्से में कोडनेम अर्जेंटीना हरकत में आया। वह सुप्रीम कोर्ट और मोरेस के घर के बीच पड़ने वाली एक कार पार्किंग में अपनी गाड़ी लगाकर तैयार था। 


कोडनेम ब्राज़ील ने ग्रुप में पूछा: "Whats the situation?" (हालात क्या हैं?) 
जवाब में जर्मनी और जापान ने तुरंत रिप्लाई किया: "Hold, Were in position." (रुको। हम पोज़िशन में हैं) 
मोरेस को रास्ते से हटाने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी थी लेकिन तभी चीजें बदल गई। 
8 बजकर 53 मिनट (8:53 PM), यानी पहले मैसेज के ठीक 11 मिनट बाद। न्यूज़ चैनल्स पर एक ब्रेकिंग न्यूज़ चली। सुप्रीम कोर्ट ने उस दिन की सुनवाई टाल दी। इसका मतलब यह था कि मोरेस का शेड्यूल बदल गया था। वह अब उस रास्ते से नहीं आने वाले थे, जहां साजिशकर्ता उनका इंतज़ार कर रहे थे।

 

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ग्रुप में सन्नाटा छा गया। शिकार हाथ से निकल चुका था। 8 बजकर 57 मिनट (8:57 PM)। कोडनेम ऑस्ट्रिया की घबराहट उसके मैसेज में साफ़ दिख रही थी। उसने पूछा: "Are we going to cancel the game?"(क्या हम खेल रद्द करने वाले हैं?), कुछ पलों की खामोशी। फिर जर्मनी का फाइनल ऑर्डर आया। जर्मनी ने लिखा: "Abort। Austria return to landing site। Ghana- proceed to rescue with Japan। Brazil has already gone to the rescue point।"
  
इसके बाद हिटमैन अंधेरे में गायब हो गए लेकिन कहानी यहां खत्म नहीं होती। बाद में जब ब्राज़ील की फेडरल पुलिस ने इस मामले की जांच की, तो एक सवाल उठा। क्या इतना बड़ा ऑपरेशन, जिसमें मिलिट्री ग्रेड के हथियार और ट्रेंड कमांडो शामिल थे, सिर्फ इसलिए रोक दिया गया क्योंकि जज घर पर नहीं मिले? नहीं असली वजह कुछ और थी। वजह यह थी कि साजिशकर्ताओं को ऊपर से वह सिग्नल नहीं मिला, जिसका उन्हें इंतज़ार था। बोल्सोनारो और उनके साथी चाहते थे कि पहले सड़कों पर दंगे हों, आगजनी हो, ताकि वे मिलिट्री को यह कह सकें, 'देखो, देश जल रहा है, अब सेना को टेकओवर करना ही पड़ेगा।' लेकिन ऐसा हुआ नहीं। प्लान A फेल होने के बाद बोल्सोनारो ने क्या किया? क्या वे डर गए? क्या उन्होंने हार मान ली? नहीं। वे एक नए प्लान की तरफ बढ़े। एक ऐसा प्लान जो सड़कों पर नहीं, बल्कि बंद कमरों में रचा जा रहा था। राष्ट्रपति भवन के उन कमरों में जहां 40 दिनों तक सूरज की रोशनी नहीं पहुंची।

40 दिन का मौन व्रत और महलों की साजिश

 

अक्टूबर 2022 के आखिर में जब चुनावी नतीजे आए और लूला डा सिल्वा (Lula da Silva) जीत गए तो उम्मीद थी कि राष्ट्रपति बोल्सोनारो टीवी पर आएंगे। शायद गुस्से में ही सही लेकिन कुछ बोलेंगे लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा। बोल्सोनारो अलवोराडा पैलेस (Alvorada Palace) यानी अपने सरकारी आवास में गए और दरवाज़ा बंद कर लिया। पूरे 40 दिन तक वह वहां से बाहर नहीं निकले। ब्राज़ीलियन मीडिया ने कहा, 'बोल्सोनारो मुंह फुलाकर बैठ गए हैं।' हालांकि, बंद दरवाज़ों के पीछे भी बोल्सोनारों की कुर्सी बचाने की कोशिश जारी थी।

 

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बोल्सोनारो का प्लान सिंपल था-चुनाव नतीजों को पलटना और इसके लिए उन्हें ज़रूरत थी-बंदूक की यानी सेना की। जांचकर्ताओं के मुताबिक, इन 40 दिनों के दौरान बोल्सोनारो ने तीनों सेनाओं (Army, Navy, Air Force) के प्रमुखों को अपने महल में बुलाया। उन्होंने टेबल पर एक कागज़ रखा। एक दस्तावेज़। जिसे Coup Decree" (तख्तापलट का आदेश)के नाम से जाना गया। Coup डिक्री जारी करते हुए बोल्सोनारो ने अपने जनरल्स से कहा, 'इस पर साइन करो। हम चुनाव आयोग के पावर को खत्म करेंगे और मैं राष्ट्रपति बना रहूंगा।' यहां कहानी में एक ट्विस्ट आया। 


बोल्सोनारो को लगा था कि सेना उनके इशारों पर नाचेगी लेकिन कमरे में मौजूद दो लोगों ने उनका खेल बिगाड़ दिया। ये थे-आर्मी चीफ मार्को फ्रेयर गोम्स (Freire Gomes) और एयर फोर्स चीफ बैप्टिस्टा जूनियर। इन दोनों जनरल्स ने उस कागज को देखा और साफ मना कर दिया। उन्होंने कहा, 'हम संविधान के साथ गद्दारी नहीं करेंगे।' सिर्फ नेवी (Navy) के चीफ थे, जो इस प्लान के लिए थोड़े राजी दिखे लेकिन बिना आर्मी के कूच करना फ़िज़ूल था। मीटिंग फेल हो गई। बोल्सोनारो का गुस्सा सातवें आसमान पर था लेकिन उनका गुस्सा सिर्फ चीखने-चिल्लाने तक सीमित नहीं था। उनके सबसे खास सहयोगी, उनके वाइस-प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट ब्रागा नेटो (Braga Netto) ने मोर्चा संभाला।

 

ब्रागा नेटो को जब पता चला कि एयर फोर्स चीफ बैप्टिस्टा जूनियर ने कूप का साथ देने से मना कर दिया है, तो वह बौखला गए। उन्होंने एक आर्मी रिज़र्विस्ट को मैसेज किया और कहा, 'बैप्टिस्टा जूनियर के खिलाफ एक ऑनलाइन Hate Campaign शुरू करो। उसे देश का गद्दार बताओ। उसकी और उसके परिवार की ज़िंदगी नर्क बना दो।'

 

जब उस रिज़र्विस्ट ने पूछा कि क्या मुझे एयर फोर्स चीफ का "सिर शेरों के आगे डाल देना चाहिए?" (Metaphorically) तो ब्रागा नेटो ने जवाब दिया, 'Offer his head' यानी उसका सिर पेश करो। भाषा देखिए। एक वाइस-प्रेसिडेंट लेवल का आदमी देश के एयर फोर्स चीफ का सिर उतारने की बात कर रहा है। महल के अंदर ये सब चल रहा था और बाहर उनके समर्थक पागल हो रहे थे। बोल्सोनारो ने पब्लिकली कुछ नहीं कहा लेकिन उनके इशारे काफी थे। उनके समर्थकों ने मिलिट्री बैरकों के बाहर डेरा डाल दिया। वह चिल्ला रहे थे, 'सेना बचाओ! कम्युनिस्टों से देश बचाओ!' उन्हें लग रहा था कि उनका नेता किसी मास्टरस्ट्रोक की तैयारी कर रहा है लेकिन हकीकत यह थी कि महल के अंदर का मास्टरस्ट्रोक फेल हो चुका था। जनरल्स ने मना कर दिया था। हिटमैन वाला प्लान, जिसकी बात हमने शुरू में की। वह भी Abort हो चुका था।

 

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दिसंबर खत्म हो रहा था। 1 जनवरी करीब आ रही थी। वह तारीख जब लूला डा सिल्वा को शपथ लेनी थी। ब्राज़ील में परंपरा है, पिछला राष्ट्रपति नए राष्ट्रपति को सैश पहनाता है लेकिन जब लूला के शपथ लेने की बारी आई, बोल्सोनारो नदारद थे। 1 जनवरी 2023 को जब पूरा ब्राज़ील नए राष्ट्रपति का स्वागत कर रहा था, बोल्सोनारो उससे एक रात पहले ही देश छोड़ चुके थे। यह एक अजीबोगरीब एंटी-क्लाइमेक्स था। एक तरफ उनके समर्थक ब्राज़ील में सड़कों पर रो रहे थे, कू का इंतज़ार कर रहे थे और दूसरी तरफ, उनका मसीहा, उनका मिथ (Myth - जैसा उन्हें उनके समर्थक बुलाते थे), देश छोड़कर भाग गया था। बोल्सोनारो चले गए लेकिन उनके समर्थक अभी भी चुप बैठने को तैयार न्हीं थे। अमेरिका की एक पुरानी स्क्रिप्ट ब्राज़ील में रिपीट करने की तैयार चल रही थी।   

डिज़्नी और दंगे 

 

8 जनवरी की तारीख़। ब्राज़ील में अमेरिका वाली घटना रिपीट हुई।  2021 में ट्रंप के चुनाव हार जाने के बाद उनके समर्थकों ने अमेरिकी संसद पर धावा बोला था। ठीक वैसा ही, मंज़र ब्राज़ील की संसद में दिखा। ब्राज़ील की राजधानी ब्रासीलिया में हज़ारों की भीड़ उमड़ पड़ी। ये सब बोल्सोनारो के अंधभक्त थे। उनके सिर पर खून सवार था। वह चिल्ला रहे थे, 'सेना को बुलाओ! लूला को हटाओ! हमारे कैप्टन को वापस लाओ!'

 

देखते ही देखते यह भीड़ सुनामी बन गई। पुलिस बैरिकेड्स को तिनके की तरह उड़ा दिया गया। उपद्रवी संसद भवन में घुस गए। सुप्रीम कोर्ट के कांच तोड़ दिए। राष्ट्रपति भवन के कालीन कीचड़ से रौंद दिए। इतिहास गवाह है, जब भी किसी देश में तख्तापलट की कोशिश होती है तो उसका नेता सबसे आगे खड़ा होता है या तो टैंक पर चढ़कर या बालकनी से हाथ हिलाकर लेकिन यहां एक अजीबोगरीब ट्विस्ट था। जिस कैप्टन के लिए ये हज़ारों लोग लाठियां खा रहे थे, आंसू गैस झेल रहे थे और जेल जाने को तैयार थे। वह कैप्टन युद्ध के मैदान से गायब था। वह ब्राज़ील से हज़ारों मील दूर, अमेरिका के फ्लोरिडा में मजे कर रहा था।

 

बोल्सोनारो फ्लोरिडा में एक ब्राजीलियाई MMA फाइटर Jose Aldo के घर पर मेहमान बनकर रह रहे थे। तस्वीरें सामने आईं। बोल्सोनारो अमेरिका की सुपरमार्केट में अकेले घूम रहे थे। KFC में अकेले बैठकर खाना खा रहे थे। यह नज़ारा अपने आप में एक व्यंग्य था। ब्राज़ील में उनके समर्थक सोच रहे थे कि नेताजी कोई मास्टरस्ट्रोक प्लान कर रहे हैं। उन्हें लग रहा था कि अभी कोई सीक्रेट सिग्नल आएगा और सेना टेकओवर कर लेगी लेकिन नेताजी वहां अपने फैंस के साथ सेल्फी ले रहे थे और चिकन विंग्स चबा रहे थे।

 

अमेरिका के एक अखबार ने उस वक्त एक बहुत करारा तंज कसा था, 'बोल्सोनारो ने कसम खाई थी कि उनके पास तीन ही ऑप्शन हैं-मौत, जेल या जीत। मुझे याद नहीं आता कि उन्होंने डिज़्नी जाना चौथा ऑप्शन बताया था।' दरअसल, बोल्सोनारो ने एक सुरक्षित रास्ता चुना था। उन्होंने सोचा था कि अगर दंगे सफल हो गए और सेना ने सत्ता संभाल ली तो वह फ्लाइट पकड़कर हीरो की तरह लौट आएंगे और अगर प्लान फेल हो गया (जो कि हुआ) तो वह कह देंगे, 'अरे मैं तो यहां था ही नहीं, मेरा इससे क्या लेना-देना?'

 

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कानून के हाथ फ्लोरिडा तक भी पहुंच सकते हैं, यह उन्होंने नहीं सोचा था। 8 जनवरी के दंगे फेल हो गए। लूला की सरकार नहीं गिरी। 1500 से ज्यादा उपद्रवी गिरफ्तार हुए और फ्लोरिडा में बैठे बोल्सोनारो को समझ आ गया कि अब पॉलिटिकल करियर का द एंड हो चुका है। अब बारी थी हिसाब-किताब की। ब्राज़ील में सुप्रीम कोर्ट के जज, अलेक्जेंड्रे डी मोरेस (वही जज जिन्हें मारने का प्लान सिग्नल ग्रुप पर बना था), अब पूरी ताकत से जांच में जुट गए। पुलिस ने बोल्सोनारो के क़रीबीं लोगों से पूछताछ की। ऐसी ही एक पूछताछ में एक फ़ोन में मिले मेसेजेस ने बोल्सोनारों का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख गया । यह सब संभव हुआ-  एक गवाह की बदौलत -मौरो सिड (Mauro Cid)। एक लेफ्टिनेंट कर्नल, जो कभी बोल्सोनारो का साया बनकर रहता था।

घर का भेदी और जासूसी अंगूठी

 

लेफ्टिनेंट कर्नल मौरो सिड बोल्सोनारो का राइट हैंड मैन था। उनका निजी सहायक। राष्ट्रपति कहां जाएंगे, किससे मिलेंगे, कौन सा कागज साइन करेंगे- यह सब मौरो सिड तय करता था। बोल्सोनारो का फोन भी अक्सर उसी के हाथ में होता था। अगस्त 2023, फेडरल पुलिस ने मौरो सिड को घेर लिया और उनके डिवाइसेज- फोन और कंप्यूटर ज़ब्त कर लिए। सिड ने चालाकी दिखाई थी। उसने कई मैसेज डिलीट कर दिए थे। उसे लगा कि डिजिटल सबूत मिटा दिए गए हैं लेकिन फॉरेंसिक लैब में वे डिलीटेड मैसेज रिकवर कर लिए गए।

 

इन मेसेज से पुलिस को सबसे पहले सबूत मिले उस असैसिनेशन प्लॉट के, जिसका ज़िक्र हमने शुरुआत में किया था। दिलचस्प बात यह है कि शुरुआत में मौरो सिड ने पुलिस को इस मर्डर प्लान के बारे में कुछ नहीं बताया था। वह चुप था लेकिन जब पुलिस ने उसके फोन से रिकवर किए गए डिलीटेड मैसेज उसे दिखाए, तो वह टूट गया। सिड ने प्ली डील साइन कर ली यानी सरकारी गवाह बनना स्वीकार कर लिया और फिर शुरू हुआ खुलासों का दौर। सिड ने बताया कि कैसे राष्ट्रपति भवन के अंदर एक जासूसी गिरोह चल रहा था। जांच में सामने आया कि बोल्सोनारो ने एक ऐसे ऑपरेशन को मंजूरी दी थी, जिसका काम था देश के पत्रकारों, पर्यावरण रक्षकों और विरोधी सांसदों की जासूसी करना।

 

यह एक समानांतर सरकार जैसा था। जानकारी जुटाई जाती थी और आरोप है कि इसे कार्लोस- जो बोल्सोनारो का बेटा और सोशल मीडिया स्पिन-डॉक्टर था-उसे भेज दिया जाता था। मकसद? विरोधियों की इमेज खराब करना। उन्हें ब्लैकमेल करना। मुसीबतें यहीं नहीं रुकीं। जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ी तो पता चला कि मामला सिर्फ तख्तापलट या जासूसी का नहीं था। मामला पैसों की हेराफेरी का भी था। बोल्सोनारो पर राष्ट्रपति की संपत्ति के दुरुपयोग के आरोप लगे। आरोप थे कि बोल्सोनारो को मिले गिफ्ट- जैसे ज्वैलरी और  घड़ियां- जिन्हें सरकारी खजाने में जमा होना चाहिए था लेकिन वे निजी खातों में पहुंच गए।

 

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जून 2023 आते-आते बोल्सोनारो की सियासी ज़मीन खिसक चुकी थी। देश की इलेक्टोरल कोर्ट ने उन पर 8 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। वजह? उन्होंने विदेशी राजदूतों की मीटिंग में वोटिंग मशीनों के बारे में झूठ फैलाया था लेकिन यह तो सिर्फ ट्रेलर था। असली पिक्चर अभी बाकी थी। बोल्सोनारो का ट्रायल शुरू हुआ। उनके साथ उनके सात सबसे करीबी साथी, कटघरे में खड़े थे। बोल्सोनारो के वकीलों ने कोर्ट में दलील दी, 'हमारे क्लाइंट का मर्डर प्लॉट या 8 जनवरी के दंगों से कोई लेना-देना नहीं है। पुलिस और जज बायस्ड हैं।'

 

उन्होंने यह भी कहा, 'वह कोई तख्तापलट का ड्राफ्ट नहीं था, वे तो बस संविधान के दायरे में चर्चा कर रहे थे।' लेकिन कोर्ट के सामने सबूतों का पहाड़ था। मौरो सिड की गवाही थी। डिलीटेड मैसेज थे। फैसला सुरक्षित रख लिया गया।


27 साल की सज़ा और एंकल मॉनिटर

 

बोल्सोनारो को तख्तापलट की कोशिश और नवनिर्वाचित राष्ट्रपति लूला को शपथ लेने से रोकने की साजिश के आरोप में 27 साल जेल की सजा सुनाई गई। बोल्सोनारो अब सजा काट रहे हैं। कुछ वक्त तक उन्हें हाउस अरेस्ट में रखा गया था लेकिन हाल ही में कोर्ट ने आदेश दिया है कि बोल्सोनारो को जेल जाना पड़ेगा। वजह दिलचस्प है। इस फैसले के पीछे वजह बना- एक एंकल मॉनिटर (Ankle Monitor)। हुआ यूं कि जब बोल्सोनारो हाउस अरेस्ट में थे तो कोर्ट ने उनके पैर में एक ट्रैकिंग डिवाइस बंधवा दिया था। ताकि वह भाग न सकें लेकिन कुछ दिन पहले, पुलिस को सिग्नल मिला कि बोल्सोनारो ने उस मॉनिटर के साथ छेड़छाड़ की है। उसे हटाने या तोड़ने की कोशिश की है।

 

जब पुलिस उनसे सवाल करने पहुंची, तो पूर्व राष्ट्रपति ने बताया कि उन्होंने जानबूझकर ऐसा नहीं किया। वजह थी- 'दवाइयों का असर'। उन्होंने कहा कि वह डिप्रेशन और एंजायटी की दवाइयां ले रहे हैं, जिसकी वजह से उन्हें  Paranoia और Hallucinations हो रहे थे।


सरल भाषा में कहें तो, उन्हें भ्रम हो रहा था। उनका दावा था कि उन्हें लग रहा था कि मशीन उनसे बातें कर रही है या उनके दिमाग पर असर डाल रही है। इसलिए उन्होंने उसे छेड़ा। उनके वकीलों ने कोर्ट के सामने बीमारियों की एक पूरी लिस्ट रख दी। कहा गया, 'साहब, हमारे क्लाइंट की हालत बहुत खराब है। उन्हें लगातार हिचकी आती रहती है। उन्हें स्किन कैंसर है। उन्हें स्लीप एपनिया है, जिसकी वजह से वो CPAP मशीन लगाकर सोते हैं।' वकीलों ने दलील दी कि अगर उन्हें जेल भेजा गया, तो उनकी जान को खतरा हो सकता है। अदालत में तमाम दलीलों को किनारे रखते हुए - हाउस अरेस्ट की अर्जी खारिज कर दी और आदेश दिया -सीधे जेल लेकिन हां, पूर्व राष्ट्रपति होने के नाते उन्हें आम कैदियों वाली कोठरी नहीं मिली। उन्हें ब्रासीलिया के पुलिस हेडक्वार्टर में एक स्पेशल रूम में रखा गया है। जहां बेड है, टीवी है, AC  लगा हुआ है और अपना प्राइवेट बाथरूम है।

 

एक तरह से यह फाइव स्टार जेल है लेकिन है तो जेल ही। संभव है यह बोल्सोनारो की कहानी का पटाक्षेप हो सकता है लेकिन कौन जाने, किस्मत कब वक्त बदले। इस मामले में नोटिस करने वाली बात है कि अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप ने 2021 में इसी तरह चुनावों के बाद नए राष्ट्रपति की शपथ प्रक्रिया को रोकने की कोशिश की थी। उन्हीं के उकसावे पर उनके समर्थक कैपिटल हिल पहुंचे थे।  ऐसे आरोप हैं। ट्रंप और उनके समर्थक आज तक नहीं मानते कि 2020 का चुनाव वह हारे थे। इसके बावजूद ट्रंप को इसका ज़्यादा नुकसान नहीं उठाना पड़ा। मुक़दमे रद्द हो गए या ठंडे बस्ते में चले गए और इसी बीच ट्रंप ने दोबारा चुनाव जीत लिया।

 

उनके ही नक़्शे कदम पर चलने वाले बोल्सोनारो को ब्राज़ील ने अदालती प्रक्रिया के तहत सजा सुनाई। वह भी तब जब ट्रंप लगातार धमकी देते रहे कि अगर बोल्सोनारो को सजा हुई तो वह ब्राज़ील को कड़ी सजा देंगे। उन्होंने ब्राज़ील पर कड़े टैरिफ लगाए लेकिन ब्राज़ील ने एक सुपर पावर की धमकी के बावजूद सैंक्टिटी ऑफ़ इलेक्शंस को बरकरार रखा और दुनिया के सामने एक नजीर पेश की कि ताक़तवर से ताक़तवर नेता की भी अकाउंटेबिलिटी की जा सकती है। क़ानून सबके लिए एक है। 

 

 

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